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जीवन जब थक हार कर बैठ जाता है, अच्छे बुरे ख़यालों का ताना-बाना बुनता है, हवा का झोंका झकझोर देता है, सब थकान उदासी को उधेड़ देता है।
पहाड़ों की भी अपनी भाषा होती है, जितनी ऊंचाई, उतनी ही गहराई होती है। धीरे-धीरे पहाड़ बात करने लगते हैं, एक अनजानी डोर से बांधें रखते हैं॥
पहाड़ों की गोद से झीलें झलकती हैं। पानी की बूँदें आंखों में चमकती हैं॥
इनका ठंडा शीतल जल आत्मा तृप्त कर देता है। थके हुए राही को मंज़िल पर बढ़ने की गति देता है॥
तन्हा कभी मह्सूस नहीं होता, पहाड़ों की ख़ामोशी में एक गूंज होती है। मानो कोई बुला राह हो नाम मेरा, तू क्यूं भटक रही है, तू किसे ढूंढ़ती है॥
हर मुड़ती राह एक पहेली है, ये खूबसूरत वादियां ही अब मेरी सहेली हैं। कभी बादलों की घटा ज़मीं पर उतर आती है, कभी सफ़ेद बर्फ की चादर अठखेलियों करती है। किसे पता था प्रकृति भी इस कदर हंसती है॥
जीवन जब थक हार कर बैठ जाता है, अच्छे बुरे ख़यालों का ताना-बाना बुनता है। हवा का झोंका झकझोर देता है, सब थकान उदासी को उधेड़ देता है॥
जब दिवाकर दस्तक देता है दूर कहीं ऊँची चोटी पर, उजालों की किरणों से मन का सब अंधकार छंट जाता है। किसे पता था पहाड़ों से लिपट कर घर-परिवार मिलता है॥
पहाड़ों की भी अपनी भाषा होती है, एक अनजानी डोर से बांधें होती है।
मूल चित्र : Unsplash
My name is Indu. I am a computer engineer by profession and qualification. I am also a very analytical person and have interests in analyzing the things from a different perspective which convince me to read more...
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