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अब फूलों सी नाज़ुक नहीं हैं ये बेटियाँ

तीन तलाक का दर्द न सहेंगी अब ये बेटियाँ, दहेज रूपी दैत्य को भी मसल फेंकेंगी अब ये बेटियाँ, अब फूलों सी नाज़ुक नहीं हैं ये बेटियाँ। 

तीन तलाक का दर्द न सहेंगी अब ये बेटियाँ, दहेज रूपी दैत्य को भी मसल फेंकेंगी अब ये बेटियाँ, अब फूलों सी नाज़ुक नहीं हैं ये बेटियाँ। 

माना फूलों सी नाज़ुक होती हैं बेटियाँ

माता-पिता की दुलारी होती हैं बेटियाँ

दो कुलों का मान बढ़ाती हैं बेटियाँ

सबको गले लगाती हैं ये बेटियाँ

इक्कीसवीं सदी में जन्मी हैं ये बेटियाँ

बड़ी हो, सब कुछ कर दिखाएँगी अब ये बेटियाँ

चौंका-चूल्हे तक अब न सिमट,

अपना पथ खुद बनाएँगी अब ये बेटियाँ

अंतरिक्ष को भी अपने आँचल में समेट लेंगी अब ये बेटियाँ

तीन तलाक का दर्द न सहेंगी अब ये बेटियाँ

दहेज रूपी दैत्य को भी मसल फेंकेंगी  अब ये बेटियाँ

अन्याय पर न्याय की पताका फेहराएँगी अब ये बेटियाँ

पढ़ लिख कर कानून की मुख्य धारा में बह

दरिंदों को उनके अंजाम तक पहुँचाएँगी अब ये बेटियाँ

भेड़ का चोला ओढ़े, भेड़ियों में फर्क जान पाएँगी अब ये बेटियाँ

देवी बन पूजा का अधिकार न माँगेंगी अब ये बेटियाँ

बेटी के जन्म पर नाखुश होने वालो सुन लो,

नन्ही कली से फूल बन जब खिलेंगी ये बेटियाँ

तब वसुधा के आँगन को महकायेंगी ये बेटियाँ

असम्भव को भी सम्भव कर दिखाएँगी अब ये बेटियाँ

अब फूलों सी नाज़ुक नहीं हैं ये बेटियाँ।

मूल चित्र : Google/Canva 

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