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आपको अपने घर में तो बेटियां नहीं चाहियें फिर ये कंचक पूजन का ढोंग क्यों

मेरी सास का भी एक ही बेटा है और मेरा भी एक बेटा और आगे तुम्हारा भी एक बेटा हो इसलिए, शुरूआत में ही जांच करवाकर, बच्चा पैदा करने में ही होशियारी है।

मेरी सास का भी एक ही बेटा है और मेरा भी एक बेटा और आगे तुम्हारा भी एक बेटा हो इसलिए, शुरूआत में ही जांच करवाकर, बच्चा पैदा करने में ही होशियारी है।

शादी के चार महीने बाद निशा के पांव भारी हो गए। सास और ससुर दोनों निशा की खूब खातिरदारी में लग गए। तरह तरह के फलों के जूस और हरी सब्जियां निशा की सास शांति खुद उत्साह से बनाती और निशा को खिलाती थी। दूसरा महीना चल रहा था। इसलिए सभी निशा की खूब देखभाल करते थे।

उसी समय नवरात्रि भी आ गयी तो निशा की सास ने घर की साफ-सफाई कर देवी का सप्तशती पाठ बिठाया। स्वयं नौ दिन का व्रत रखा। धूम-धाम से अंतिम दिन कंचक खाने के लिए आस-पड़ोस और मुहल्ले की लड़कियों को न्यौता दिया। उनकी कोशिश थी कि कोई भी कन्या रूपी देवी छूट न जाए। एक-एक घर से बुलाकर-बुलाकर बारह से पंद्रह कन्याएं इकट्ठा कर लाईं।

एक दिन पहले ही निशा को साथ लेकर बाज़ार जाकर, सभी लड़कियों के लिए हेयरबैंड, माता की चुनरी, मिल्क चाकलेट, फ्रूटी के पैकेट के साथ, कान के झुमके और ब्रेसलेट भी लिए। निशा के सुझाव पर मांजी ने सब बच्चियों के लिए लंच बाक्स और छोटे-छोटे पर्स भी ले लिये।

अगले दिन अष्टमी थी। सारा घर धोया गया, तड़के सुबह उठकर शांति ने घी में भूनकर सूजी का हलवा, काले चने, दही बड़े, और पूड़ियाँ बनायीं। निशा भी साथ-साथ लगी रही। सब तैयार हो जाने पर सब कन्याओं के आंगन में घुसते ही शांति ने सभी के पैरों को बेटा अखिल और बहू से धोने को कहा। निशा ने अच्छे से सभी कन्याओं के पांव धोए। तोलिए से पोंछा फिर रोली तिलक लगाया और कलावा बांधकर सबकी आरती उतारकर सबको एक लाइन से आसन पर बिठाया।

निशा बहुत खुश थी कि मां जी नवरात्रों का कितना विधिवत पूजन करती हैं। और सभी कन्याओं का कितना सम्मान भी करतीं हैं। सबको प्यार से भोजन परोसने का काम भी सासू मां ने निशा और अखिल से ही करवाया।
उसके बाद सबको बीस-बीस रूपये, हलवा-पूड़ी और चने एक एक लंच बाक्स में रखकर पर्स सहित हाथ में देकर
सारी कन्याओं को बिदा किया।

मां जी के कहने पर बेटे-बहू ने जाते समय सभी कन्याओं के चरण छूकर दक्षिणा दी। उन सब कन्याओं का हाथ सिर पर रखवा कर बहू को हरेक से सासू-मां ने आशीर्वाद दिलवाया। इस तरह बड़े शानदार ढंग से निशा की पहली नवरात्री बीती।

अगले सप्ताह मांजी के साथ निशा नर्सिंग होम गयी। नियमित जांच व डाक्टरी सलाह के लिए। तो जांच के बाद निशा को बाहर बैठने को बोल शांति नर्स से कुछ खुसुर-फुसुर करने लगी। जब निशा ने कुछ-कुछ सुना कि मां जी गर्भ का लिंग जांच करवाना चाहती हैं, तो सन्न रह गयी।

घर आकर निशा ने अखिल को बताया तो वह भी बोला कि मां कह रही हैं तो कुछ सोच कर ही कह रही होंगी।
शाम को खाने के समय निशा को उदास देखकर शांति ने कारण पूछा तो निशा ने सहज ही बता दिया, ‘मैंने अस्पताल में आपकी बात सुन ली थी। लड़का है या लड़की, ये जानने की आखिर जरूरत क्या है मां जी?’

शांति ने प्यार से निशा को पहले खाना खाने को कहा और खाने के बाद उसे समझाया, ‘ये तुम्हारे ही भले के लिए है। अगर पहली बार ही बेटा हो जाए तो फुर्सत हो जाएगी। नहीं तो बेटी होने के बाद फिर बेटे के लिए दूसरा बच्चा भी करना पड़ेगा। और आजकल एक किसी से नहीं संभलता तो दो किसके बस की बात है?’

निशा को हैरान देखकर मांजी ने उसे समझाया, ‘देखो बेटा, मेरी सास का भी एक ही बेटा है और मेरा भी एक बेटा और आगे तुम्हारा भी एक बेटा हो इसलिए, शुरूआत में ही जांच करवाकर, बच्चा पैदा करने में ही होशियारी है।’

निशा अब भी मुंह लटकाए दिखी तो उन्होने उसे दिलासा दिया, ‘देखना इस घर में तो बेटा ही आएगा। तुम निश्चिंत रहो, मेरी पूजा और पाठ व्यर्थ नहीं करेंगी देवी मां।’

निशा ने मां जी की बात सुन फीकी मुस्कराहट दे दी, पर अनमनी हो उठी कि पिछले हफ्ते ही तो मांजी ने कितने धूमधाम से कंचक पूजा की थी और अब ‘बेटा-बेटी’ जैसी बातें कर अपने को ओछा कर रहीं हैं।

मूल चित्र : Pexels

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