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पहले पूरानी बातों को सब नज़र अंदाज़ करते थे, पर अब सबको पता चल चुका है कि पूर्वज जो करते थे, वो शरीर की निरोगी काया के लिए महत्त्वपूर्ण था।
पहले पूरानी बातों को सब नज़र अंदाज़ करते थे, पर अब सबको पता चल चुका है कि पूर्वज जो करते थे, वो शरीर की निरोगी काया के लिए महत्त्वपूर्ण था। अब शरीर बीमारियों से घिर गया और खान-पान में मिलावट ने पैर जमा लिए है। लेकिन अब भी छोटी-छोटी चीज़ों से शरीर स्वस्थ रह सकता है।
सब तभी खुश होते हैं जब उनका तन और मन स्वस्थ होता है। अगर आहार और विहार सही है तो हमारी काया निरोगी रहेगी और निरोगी काया कौन नहीं चाहता?
आजकल खान-पान और दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो चुके हैं। सब काम बैठे-बैठे हो जाते हैं। एक बटन दबाते ही कपड़े धुल जाते हैं। एक बटन दबाते ही मसाले पिस जाते हैं। एक बटन दबाने से पानी आप के गिलास में आ जाता है। पहले के लोग यही काम, हमारी दादी, नानी मसालों को धूप में सुखाकर ओखली से कूटा करती थीं। कपड़े धोने के लिए हाथों की अच्छी कसरत हो जाया करती थी। पानी या तो मीलों से लाना पड़ता था या फिर कूंए से निकालना पड़ता था।
यह सब शारीरिक व्यायाम ही थे, महिलाएं घर के कामों में व्यस्त रहतीं, जिम एरोबिक्स, योगा नहीं करना होता था। और आदमी खेतों पर हल चलाने का काम करते थे। साइकिल या पैदल ही जाना अक्सर होता था। समय से खाना, उनकी दिनचर्या निश्चित होती थी। आजकल शिफ्ट में काम करने की वजह से घर में आने और जाने का, खाने का कोई समय निर्धारित नहीं है।
कभी-कभी खाना ना खा कर आप उल्टा-पुल्टा खा लेते हैं इसीलिए आजकल हर घर में बीमारी है, गैस, मोटापा, शुगर, बी.पी तो जैसे आम हो गए। मोटापा बहुत तेज़ी से फैल रहा है और बीमारियों को जन्म दे रहा है। अगर किसी ने आपको कह दिया कि लगता है आपकी शादी नहीं हुई, तो खुशी से सारी रात सो नहीं पाएंगे।
सब अपने को स्वस्थ रखने के लिए योगा और प्राणायाम कर रहे हैं और करना भी चाहिए क्योंकि पहले यह काम करने के लिए हमें बाहर नहीं जाना पड़ता था। हमारे घर का रोज़ाना का काम ही व्यायाम होता था। और पहले बीमारियां भी इतनी ज्यादा नहीं होती थीं और सब का मन भी खुश रहता था। एक साथ बैठकर रसोई में गर्म खाना खाया करते थे। नीचे पलौथी बनाकर बैठने से भी आपका पाचनतंत्र सही से काम करता था। अब कुर्सी पर बैठते हैं।
सारी बीमारियों का की शुरुआत पेट से ही होती है। खाना ठीक से पचता नहीं तो बहुत बीमारियां जन्म लेती हैं।पहले काॅ॑सी, पीतल, तांबा, मिट्टी के बर्तन प्रयोग हुआ करते थे। आजकल बाजार में मिट्टी से बने भी खूब बर्तन आ रहे हैं, जो आपके शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक हैं। लेकिन उनकी जगह अभी भी प्लास्टिक-थरमोकोल ने ले रखी है जो शरीर के लिए हानिकारक है।
आज सब काम हम बैठे-बैठे ही करते हैं जिससे जोड़ों के दर्द शुरू हो गए हैं, हमारे शरीर का खून दौड़ना रुक जाता है और दवाइयां जिंदगी चलाने लगी हैं। और खाना तो बिलकुल पचना बंद हो गया है। हमारे पूर्वज रेशेदार पोषक तत्व से भरा भोजन होता खाते थे। समय से खाना, सोना, जागना होता था।
अब रिफाइंड तेल प्रयोग होने लगे हैं जो बहुत ज़्यादा शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। पहले के लोग देसी घी और सरसों का तेल ही प्रयोग में लाते थे। अब लोग गरिष्ठ भोजन करते हैं। जलवायु भी तो दूषित हो चुकी है जिससे हमें मानसिक परेशानियों ने घेर लिया है।
पहले के घर में हवादार रोशनदान हुआ करते थे। अब तो बहुत सारे घर आपको ऐसे मिल जाएंगे जिसमें रोशनी नहीं आती। रोशनी आने से हमारे शरीर हमारे घर के कीटाणु मर जाते हैं। ताज़ी हवा सुबह शाम की हमारे घर का वातावरण को बढ़िया बनाया करती है। आजकल तो घर के आगे घर बन जाने से हवा भी आनी बंद हो गई है।
जो हमारे पूर्वज करा करते थे, वह हमारा अतीत था। पर अब उन्हीं पुरानी बातों को हम आज फिर से अपना रहे हैं। आप सब अपने घर में तांबे के जग और बर्तन प्रयोग करने लगे हैं। प्लास्टिक को दूर कर रहे हैं। जगह-जगह शहरों में साइकिलें किराए पर मिल रही हैं। पार्किंग से अपने ऑफिस तक जाने के लिए लोग साइकिल का सहारा ले रहे हैं।
प्लास्टिक की प्लेटों की जगह पत्ते से बनी हुई थाली-कटोरियां प्रयोग की जा रही हैं। फ्रिज की जगह घड़े का पानी पीना पिया जा रहा है। सब हरे पत्तेदार सब्जियां, उबली हुई सब्जियां, सलाद कच्ची सब्जियां खा रहे हैं। कोल्डड्रिंक की जगह नारियल पानी, नींबू पानी, गुलाब का बना शरबत पी रहे हैं हम। प्रोबायोटिक्स की जगह मट्ठा या छाछ ले रहे हैं। अब सब मान रहे हैं, खाते उतना, जितना आसानी से पचा पाएं।
पूराने मंदिरों के चक्कर लगाने से चुम्बकीय ऊर्जा मिलती थी जो मन को एकाग्र करती थी। उपवास हमारे शरीर की मशीनरी को साफ सफाई का काम करता था। हाथों से खाना, शरीर के लिए लाभदायक होता है, इसे हम भी जानते हैं। नीम की दातुन बाहर देशों में बेची जा रही है, ये भी यहीं इस्तेमाल होती थी।
अपने काम खुद करने की आदत डालें। किसी के आने पर दरवाज़ा खोलें। रोज़ाना बिस्तर की चादर तकिये का कवर बदलें जो पसीने-धूल से किटाणु को जगह देता है। थोड़ा चलना आपका शरीर जाम नहीं होने देगा। छोटे-छोटे घर के काम शरीर में रक्त का संचार करेगें। शरीर हष्ट-पुष्ट होगा। बीमारी नहीं रहेगी। बुढ़ापे में किसी पर र्निभर होने से अच्छा है, अपने को स्वस्थ रखें।
सब बातें अतीत की ही हैं, पर भविष्य में स्वस्थ रहने के लिए हमें अतीत की बातों को अपनाना होगा।
जब जागो तभी सवेरा।
मूल चित्र : Pexels
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