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बस बहुत हुआ ‘दहेज दो या रहने दो’ का नाटक, अब तुम रहने ही दो!

पैसे की चाह और एक गाड़ी आलीशान, इतने की ख्वाहिश की दंभ में चूर, उछाल कर पगड़ी धमकी स्वरूप 'दो या रहने दो' के भेड़ियों पर आज है समाज शर्मसार!

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पैसे की चाह और एक गाड़ी आलीशान, इतने की ख्वाहिश की दंभ में चूर, उछाल कर पगड़ी धमकी स्वरूप ‘दो या रहने दो’ के भेड़ियों पर आज है समाज शर्मसार!

पर्दे की ओट से
कदमों को दाब के
उसकी दमकती आभा देखकर
और मिठी वो खिली मुस्कान
मंत्रमुग्ध मैं ठिठक गया।

सुर्ख रंग लाल में
आंचल को संभाल के
टीके की दमक
नथ के मोती
और उसके चेहरे की चमक
हाँ प्यारी बिटिया
आज दुल्हन बनी है।

बाहर, मंडप की छाँव में
आस्तीन को तान के
पैसे की चाह और
एक गाड़ी आलीशान
इतने की ख्वाहिश
की दंभ में चूर
उछाल कर पगड़ी
धमकी स्वरूप
‘दो या रहने दो।’

सिहर गई रुह
हाथ जोड़कर मैं
पशोपेश में खड़ा
लालच के भेड़िए को
दूँ कैसे लाडली
स्वाभिमान तार और
पार कर
अपने आंगन की बावली।
शर्त पूरी जो हों
तो लालच के जुए
चढ़ जाए न मेरी लाडली।

जड़वत जड़ा
पशोपेश में खड़ा
बिटिया का प्यार
मेरे संस्कार
किसकी दूँ बलि
पृथक कैसे कर दूँ मैं,
बात से व्यवहार।

जड़वत जड़ा
अवाक जम सा गया
जो आ गयी थी वह
लाल डोरे अंगार के
आंखों में उतार के
टीके की दमक
और नथ के मोती।

दिव्य थी
कुछ उग्र सी
शेरनी सी दहाड़ गयी
“सुन ओ पिशाच
तू रोग है
और दाग भी
तुझ घटक भेड़िए दलों पर
आज है समाज
शर्मसार भी।
संभल और संभाल
अपने शब्द
और मांग को
कानून है आज
मेरी रक्षा में खड़ा।”

जड़वत जड़ा
गर्व से खड़ा
पीड़ा की फांस
और प्रफुल्लित मन
आंसुओं संग
बह गया।
ओह, मेरी बिटिया
आज दुल्हन बनी थी।

मूल चित्र : Canva 

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Shilpee Prasad

A space tech lover, engineer, researcher, an advocate of equal rights, homemaker, mother, blogger, writer and an avid reader. I write to acknowledge my feelings. read more...

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