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मानसिक अवसाद या अकेलापन आज के दिन एक बहुत ही गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है, खास कर शहरी अकेलापन, जहां गहरे संवाद की कोई जगह ही नहीं है।
कुछ साल पहले की बात है जब मेरी मेरे हस्बैंड से नई-नई बात होनी शुरू हुई थी तब उन्होंने मुझे अपनी एक दोस्त की एक बात बताई कि उसका एक छोटा सा टेडी बेयर है, जो उसकी दोस्त के साथ बचपन से है। और मुझको सबसे ज़्यादा हैरानी तब हुई, जब मैंने अपने हस्बैंड की दोस्त की शादी के सब सेलिब्रेशन में वो टेडी बेयर हर एक इवेंट में उसके साथ पाया। वो लड़की होन्ग कोंग चीनी है, तो मैंने सोचा शायद उनकी संस्कृति में ऐसा साधरतन होता होगा। ऐसे ही एक जापानी लड़की से मुलाकात के दौरान पता चला कि जापानी लड़के गुड़िया के साथ समय व्यतीत करना पसंद करते हैं, हैरानी भी हुई और अजीब भी लगा, पर बात आई गई हो गई।
कुछ दिन पहले मेरा अमेरिका आना हुआ और मेरी एक भारतीय स्टूडेंट से मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान उसने भी बताया कि उसका भी एक टेडी है जो पिछले ३३ सालों से उसके साथ है। वो दिल्ली के उच्च माध्यमिक परिवार का लड़का है। सोचा ऐसा होता होगा ऐसे उच्च माध्यमिक परिवारों में। मैंने इस वाक्या को भी इतनी गंभीरता से नहीं लिया। ये सब घटनाएं कोई सिर्फ कुछ एक्की-दुक्की बातें नहीं, बल्कि एक गंभीर समस्या की तरफ इशारा करती हैं।
कुछ दिन पहले मैंने एक लेख देखा अख़बार में कि कैसे बचपन के कुछ खास खिलौने, जैसे कि टेडी बेयर, वयस्क लोगों को भी कठिन परिस्तिथि से झूझने का सयम और आराम देतें हैं। मैंने कभी इस विषय को इतनी गंभीरता से नहीं लिया। आज कल शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक रोगों की संख्या भी उतनी ही ज़्यादा है। और मानसिक रोग अब मात्र एक छुपी का विषय नहीं रह गए, बल्कि एक गंभीर सच्चाई के रूप में हमारे सामने उभर के आ रहे हैं।
हाल ही में मैंने गूगल डूडल में डॉ हर्बर्ट क्लेबर के बारें में पढ़ा कि कैसे उन्होनें अपने संशोधन के दौरान पाया कि मानसिक समस्या जैसे एडिक्शन सिर्फ मनोबल या चरित्र की कमी को ही नहीं दर्शाती बल्कि एक गंभीर समस्या है, और इसका इलाज भी उतनी ही गंभीरता से किया जाना चाहिए।
मानसिक अवसाद या अकेलापन आज के दिन एक बहुत ही गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है, खास कर शहरी अकेलापन, जहां गहरे संवाद की कोई जगह ही नहीं है। हम सब को इन विषयों के बारे में सोचने और अपने-अपने स्तर पर कदम उठाने की भी आवश्यकता है। परिवार छोटे हो रहे हैं जबकि हम सब को सामाजिक संपर्क की ज़रूरत है। जहाँ एक तरफ हम लोगों में एक दूसरे पर विश्वास कम हो गया है, वहीं उमीदें सब की सब से बढ़ गयी हैं। सम्पर्क सिर्फ नाम मात्र का रह गया है।
दवाइयें हर समस्या का समाधान नहीं हैं। हमें फिर से लोगों पर विश्वास करना सीखना होगा। रिश्तों को फिर से आहिस्ता-आहिस्ता संजोना होगा। आज का समाज स्वार्थी है, पर आज हमें हमारे भविष्य को सँभालने के लिए, एक सामाजिक दृष्टिकोण को अपनाना ही होगा। हर समय सिर्फ अपना-अपना सोचना हमें एक अकेले अंधकार की तरफ धकेल रहा है, जिसका हमें थोड़ा-थोड़ा आभास तो है पर विश्वास नहीं।
हमारे एकाकी परिवारों में बच्चों को छोड़िये, बड़ों को भी बात करने के लिए लोग नहीं मिल रहे तभी उनका खिलौनों से एक अलग संपर्क बन रहा है और वो अपनी मानसिक और भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे माध्यमों का सहारा ले रहे हैं। आजकल के हमारे संवाद सिर्फ शब्दों तक सीमित रह गए हैं। उनमें कोई गहराई या गंभीरता नहीं है, कारण कहीं पैसों का आभाव, तो कहीं समय का। कारण गिनवाने बैठो तो अनेक हैं, पर समस्या का समाधान भी हमें ही ढूंढना होगा!
बच्चों, बजुर्गों में मानसिक अवसाद एक गंभीरता का विषय है। परिवारों को एक साथ आना होगा और एक दूसरों की भावनात्मक ज़रूरतों का स्थिर स्तम्भ बनना होगा। रिश्ता खून का हो या दिल का, मजबूत होना चाहिए उसमें अविश्वास या चतुराई का ज़हर नहीं होना चाहिए। रिश्ता इतना मजबूत हो, जो दूरियों और समय की परीक्षा में अटूट हो। वो सिर्फ फेसबुक या सोशल मीडिया की एक तस्वीर तक सिमित ना हो।
खिलौनों को खिलौनों की जगह रहने दो, मुझे मेरे रिश्तों की तरफ लौटने दो।
मूल चित्र : Pexels
My name is Indu. I am a computer engineer by profession and qualification. I am also a very analytical person and have interests in analyzing the things from a different perspective which convince me to read more...
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