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पर नारी पर कुदृष्टि का अंजाम बताती यह रामायण हमें आज भी, दानवों की अपावन नज़रों से क्यों त्रसित है सबला आज भी, कैकई रूप में जीवित क्यों विमाता है आज भी?
खुशियों की सौगात लाई दीवाली आज भी
खिल उठा आंगन, महक उठा उपवन, चहक उठा गगन आज भी
प्रज्वलित दीपों से अमावस की रात
पूर्णिमा जैसी जगमगाई आज भी
राम जी के वनवास वापसी पर दीए जलाते हम आज भी
अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते यह दीए हमें आज भी
अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाते यह दीए आज भी
स्वयं जलकर जग को प्रकाशित करते ये दीए आज भी
पर नारी पर कुदृष्टि का अंजाम बताती यह रामायण हमें आज भी
सब सत्य है, पर मन को झकझोरता एक सवाल हमें आज भी
दानवों की अपावन नज़रों से क्यों त्रसित है सबला आज भी
कैकई रूप में जीवित क्यों विमाता है आज भी
दुष्ट दानव! बदल रूप क्यों छलता नारी को रावण सम आज भी
कर लें अनुसरण रामायण का हम कुछ आज भी
लोभ सत्ता का त्याग कर जुट जाए जग कल्याण में हम आज भी
ज्ञान का मद ले जाता गर्त के ग्रह में यह जान लें हम आज भी
भरत-लक्ष्मण जैसे भाई हो जग में आज भी
उर्मिला के त्याग को नतमस्तक हो हम आज भी
गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र सम वंदनीय हो गुरु आज भी
निभाए मित्रता सुग्रीव, हनुमान सी हम आज भी
गर्भवती जानकी को वनवास न दे कोई राम भी
लव – कुश जैसा ज्ञानी, निर्भीक हो भारत का हर बालक आज भी
दैत्य रूपी आतंकियों का खात्मा कर
कलियुग में राम राज ला दे
राम रूपी मानव कोई आज भी!
मूल चित्र : Pixabay
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