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हर साल दशहरे वाले दिन, बाहर एक रावण का पुतला बनाते हैं उसे जलाते हैं, और खुशियां मनाते हैंकि रावण का अंत हो गया, क्या इतना करना काफी है?
हर साल दशहरे वाले दिन, बाहर एक रावण का पुतला बनाते हैं उसे जलाते हैं, और खुशियां मनाते हैं कि रावण का अंत हो गया, क्या इतना करना काफी है?
दशहरा बड़े जोर-शोर से मनाया सबने। रावण दहन भी हो गया। बाहर के रावण का अंत कर बेहद खुशियां मनाई सबने; पर क्या अपने भीतर छुपे ‘भय’ रूपी रावण का अंत कर सके हम? क्या अपने भीतर छुपे ‘लोभ’ रूपी रावण का अंत कर सके हम? क्या अपने भीतर छुपे ‘ईर्ष्या’ रूपी रावण का अंत कर सके हम? क्या अपने भीतर छुपे ‘अहम’ रूपी रावण का अंत कर सके हम?
ऐसे ना जाने कितने रावण हमने अपने भीतर संभाल कर रखे हैं; पर अपने भीतर के रावण को पुचकारते हैं, दुलारते हैं, और बड़ा करते हैं; और हर साल दशहरे वाले दिन बाहर एक रावण का पुतला बनाते हैं उसे जलाते हैं, और खुशियां मनाते हैं रावण का अंत हो गया। पर क्या सचमुच रावण का अंत कर पाए हैं हम?
मूल चित्र : Canva
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