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एक स्त्री के अपने सपनों को पूरा करने, अपनी शर्तों पर जीवन जीने और अपनी मुश्किल बीमारी और हालात से जूझकर भी हार ना मानने की कहानी।
शर्मिंदगी का अहसास, डर, खुद से ही एक बार तो घृणा सी हुई, पर क्या दोष है मेरा ये सोचकर पँखुड़ी ने खुद को ही ढ़ाँढ़स बँधाया। आज कोई भी तो नहीं है साथ उसके, जन्म देने वाले माँ-पापा तक ने उससे मुँह फेर लिया है। सात जन्मों तक साथ निभाने वाले आदित्य ने एचआईवी पॉजिटिव की रिपोर्ट्स देखते ही पँखुड़ी से हर तरह से रिश्ता तोड़ लिया।
खुद वो भी तो डर ही गई थी जब डॉक्टर ने कन्फर्म किया कि वो एचआईवी की शिकार हो चुकी है। सबसे बड़ी चुनौती तो नन्हे से ध्रुव को बताने, समझाने की थी, कैसे सँभालूँगी उसे? पर आदित्य ने उसे ध्रुव को छूने तक की इज़ाज़त नहीं दी और उसे घर से जाने पर मजबूर कर दिया था।
सोचती है तो बचपन से अब तक की सभी बातें दिमाग में फिल्म रील की तरह घूमती चली जाती हैं। पढ़ने-लिखने में हमेशा से होशियार पँखुड़ी जब भी बचपन में किसी लेडी को कंपनी लीड करते देखती बस यही सोचती, मुझे भी ऐसे ही बनना है। मैं किसी को फॉलो करने के लिए नहीं बनी बल्कि एक पूरी कंपनी को लीड करने के लिए बनी हूँ। और इसके लिए उसने मेहनत भी बहुत की और सच में कई तरह के मैनेजमेंट कोर्सेज करने के बाद अपनी खुद की ही कंपनी खड़ी की।
शुरुआत में छोटी सी टीम से शुरू करके वो पिछले आठ सालों में वो कंपनी को तरक्की के उस मुकाम पर ले आई थी जहाँ के कई लोग सिर्फ ख्वाब ही सजाते हैं। इसी दौरान उसकी मुलाकात आदित्य से हुई जो उसी की तरह आत्मविश्वास और ऊर्जा से भरपूर था और फिर आदित्य ने भी अपनी बढ़िया जॉब छोड़कर पूरी तरह से पँखुड़ी की कंपनी को सपोर्ट किया।
बस कब काम के तरीकों के साथ दिल भी मिले दोनों ही जान ना सके और फिर जल्द ही विवाह बंधन में भी बँध गए। एक साल बाद ही ध्रुव गोद में आ गया। सपनों सी ज़िन्दगी चल रही थी और पँखुड़ी को तो लगता था कि उससे ज्यादा खुशनसीब तो कोई होगा ही नहीं जिसके पास दुनिया भर की सारी खुशियाँ हैं।
पर जब ऊपरवाला इतना सब देता है, तो कहीं न कहीं एक ऐसी कमी कर देता है कि उस व्यक्ति के पैरों तले जमीन ही खिसक जाती है। आज पँखुड़ी कुछ इसी स्थिति में थी। पर अब भी जी जान से खड़ी की गई मेरी कंपनी तो है ना मेरा सपना उसे अब जीना है मुझे। यही सोच कर अगले दिन सुबह ऑफिस पहुँची पर देखा तो आदित्य पहुँचा नहीं था और ऑफिस का हर व्यक्ति उससे दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रहा था। शायद भय से कि उसको भी ये बीमारी ना हो जाए। ये खबर उसके पहुँचने के पहले ही ऑफिस में पहुँच चुकी थी।
खैर, बहुत मुश्किल था इस तरह से काम करना, फिर भी पँखुड़ी अपने केबिन में पहुँच कर काम में मन लगाने की कोशिश करने लगी। थोड़ी देर में ऑफिस बॉय आकर कॉफी रखकर गया, पर आज दूर से ही। पँखुड़ी को बहुत बुरा लगा पर बोली कुछ नहीं। थोड़ी देर में उसकी सेक्रेटरी अपना इस्तीफा लेकर आई, जिसे पँखुड़ी ने टेबल पर ही रखा रहने दिया। अभी कई और इस्तीफों की उम्मीद थी उसे। पर कोई बात नहीं वो हिम्मत नहीं हारने वाली, अकेले ही शुरू किया था अब भी अकेले ही सही। आदित्य ने मेल भेजकर इतिश्री कर दी थी कि अब वो इस कंपनी में और काम करने में इच्छुक नहीं है।
डॉक्टर की सलाह, हिदायतों और दवाइयों से अपना पूरा ख्याल रखती पँखुड़ी कभी कभी थकने लगती थी शरीर से, मन से भी। ध्रुव की याद आती और आँखे झर-झर बहने लगतीं कि सब कुछ कोई ले ले पर एक बार नन्हे से बेटे को बस उसे गले से लगा लेने दे। हर बात बर्दाश्त थी पर ध्रुव, अपने बच्चे से अलग होना उसकी हिम्मत तोड़ने लगता था। एक माँ की खुद की जिंदगी जीने, बीमारी से लड़ने और खुद की पहचान बनाए रखने के सफर को उसकी ज़िद नहीं उसका ख्वाब समझ कर पूरा करने वाला एक भी हाथ आज उसके साथ नहीं था। काश उसके अपने समझते उसने कुछ गलत नहीं किया है और ये बीमारी उसने जान बूझकर तो मोल ली नहीं थी। इतना सब होने पर भी हौसला जुटा ही लेती थी पँखुड़ी और कुछ भी कर दिखाने की क्षमता भी उसमें भरपूर थी।
हाँ, वो माँ है और साथ में स्त्री का पूरा एक अस्तित्व भी तो उसी के भीतर साँस लेता है, तो माँ होना उसे कमज़ोर कैसेे बना सकता है। अपनी लड़ाई तो लड़नी ही है उसको और जिंंदगी भी अपनी शर्तों पर जियेेेगी वो। उसने अपना ख्याल रखने और कंंपनी को बढ़ाने के साथ ही एक एनजीओ भी खोला, जो लोगोंं को जागरूक बनाने का काम करता है कि एचआईवी संक्रमण से ग्रसित लोगों को अछूत ना समझें वो भी समाज का एक हिस्सा हैं और उनके छूने से या पास रहने भर से यह बीमारी नहीं हो जाती है।
आखिर पँखुड़ी ये नहीं चाहती थी कि कोई और भी उसकी ही तरह अपनों के साथ के लिए तरसे, इसलिए लोगों में इस बात की जागरूकता पैदा करना बेहद जरूरी था। धीरे-धीरे पँखुड़ी अपनी कंपनी को फिर से ऊँचाईयों पर ले आई और उसे बिजनेस वुमन के तौर पर उसे कई अवार्ड भी मिले। किसी अपने ने नहीं बल्कि उसके सपनों की उड़ान भरने में और सपने को जीने के इस संघर्ष में, कई अनजाने लोगों ने उसका साथ दिया। ना उसने अपने सपनों की तिलांजलि दी और ना ही हताश और निराश होकर हार मान ली।
आज पँखुड़ी भी अनजान लोगों की मदद करती है। कई अनजानों की वो बेहद अपनी बन गई है। उसने अपना सपना पूरा किया। आज अपनी आकाँक्षाओं को जीकर वो खुश भी और अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जी रही है। कोई कमी ना होते हुए भी उसके अपनों की कमी उसे कभी-कभी सालती है। मुकम्मल जहाँ तो कभी किसी को मिलता नहीं, यही सोचकर अपने सपनों की राह पर वह चलती जा रही है। उसे मालूम नहीं, जिंदगी कितनी बची है। उसके पास बहुत लंबी ज़िंदगी की आस भी नहीं, बस अपने सपने को बढ़ता देखती रहे और लोगों को सही तरह से जागरूक करती रहे ताकि कोई अपनों से ना बिछड़े। पर वो अपने जैसी एक ही मिसाल भी है जो कभी हार नहीं मानती। अपना अस्तित्व और अपने सपनों को पूरा करने का पूरा साहस और हौसला वो रखती है।
तो सखियों एक स्त्री के अपने सपनों को पूरा करने, अपनी शर्तों पर जीवन जीने और अपनी मुश्किल बीमारी और हालात से जूझकर फिर भी हार ना मानने वाली पँखुड़ी की कहानी आपको कैसी लगी कमेंट्स के ज़रिए बताना ना भूलें।
मूल चित्र : Pexels
Hi, I am Smita Saksena. I am Author of two Books, Blogger, Influencer and a Freelance Content Creator. I love to write Articles, Blogs, Stories, Quotes and Poetry in Hindi and English languages. Initially, it read more...
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