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क्यों मेरे हृदय पर अपने वर्चस्व का परचम फैलाना चाहती हो, क्यों तुम्हारी वह मुस्कुराहट मेरा पीछा नहीं छोड़ती, जो मेरी हर दर्द की दवा थी?
आज फिर ना जाने कैसे तुम, मेरे मन मस्तिष्क पर छा गयीं।
क्यों करती हो ऐसा मेरे साथ? कौन हो तुम मेरी?
तुम्हारा अपने सर्प से काले लंबे बालों को, नाक के नीचे डाल कर, मूछें बनाने का यत्न करना और बड़ी-बड़ी आँखों को फैलाकर , मुझे भयभीत करने का प्रयास करना, क्यों करती हो ऐसा मेरे साथ? कौन हो तुम मेरी?
जा चुकी हो जब मेरे जीवन से, तो क्यों मेरे हृदय पर अपने वर्चस्व का परचम फैलाना चाहती हो। क्यों तुम्हारी वह मुस्कुराहट मेरा पीछा नहीं छोड़ती जो मेरी हर दर्द की दवा थी? कौन हो तुम मेरी?
वक्त की छाप से तो , अब मैं भी अछूता न रहा पर तुमने तो वक्त से भी पीछा छुड़ा लिया!
आज़ाद कर दो अब मुझे भी, अपनी यादों के बन्धन से। थक गया हूँ , इन यादों से लड़ते-लड़ते। कौन हो तुम मेरी?
मूल चित्र : Pexels
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