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क्यों आज भी हो टोकते, आगे बढ़ने से हो रोकते, धिक्कारते हो घर में तुम, फिर मूर्ति में पूजते, पहुँच गई शिखर पे मैं, फतेह करी अपनी ध्वजा, मैं नभ भी चीर जाऊँगी।
ना हारी हूँ ना हार पाऊँगी
ये मिथ्या मैं काट जाऊँगी।
ये पाँवों में जो बेड़ियाँ मैं उनको तोड़ जाऊँगी।
बनूँगी मैं वो धाविका जो आ सके पहुँच में ना,
है कांस्य क्या, रजत भी क्या, मैं स्वर्ण जीत लाऊँगी।
ये तोहमतें, नसीहतें हाँ रखना अपने पास तुम,
है धरती की बिसात क्या मैं चन्द्र जीत जाऊँगी।
ये रंग जो मेरा सांवला खटकता तुमको आँख में,
इसी के दम पे आज मैं, विश्व सुंदरी कहाऊँगी।
क्यों आज भी हो टोकते, आगे बढ़ने से हो रोकते,
धिक्कारते हो घर में तुम, फिर मूर्ति में पूजते।
पहुँच गई शिखर पे मैं, फतेह करी अपनी ध्वजा,
के थल नहीं, ये जल नहीं, मैं नभ भी चीर जाऊँगी।
ज़रूरतों का नाम दे जो रोका तुमने अब मुझे,
नहीं सुनूँगी जान लो के अब ना पिसने पाऊँगी।
के ले के अपनी उमंग संग मैं परचम लहराऊँगी,
बस परचम लहराऊँगी।।
मूल चित्र : Unsplash
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