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मत देख उन उँगलियों को जो उठती तेरी तरफ हैं, पायल को तू अपना श्रृंगार बना, चूड़ी को तू अपनी आवाज़ बना, न बनने दे बंधन उसे क्योंकि नारी तू बस नारी नहीं।
नारी तू बस नारी नहीं उस नदिया की तू धार है, जिसकी कल-कल छल-छल से मंत्रमुग्ध सारा संसार है।
लड़खड़ा गए कदम तेरे तो क्या हुआ , अब संभाल! खुद को ना लड़खड़ाने दे।
मत देख उन उँगलियों को जो उठती तेरी तरफ हैं, पायल को तू अपना श्रृंगार बना न बनने दे बंधन उसे, चूड़ी को तू अपनी आवाज़ बना न बनने दे बंधन उसे।
चुनर को तू अब अपनी कमजोरी न बनने दे, नारी तू बस नारी नहीं, उस नदिया की तू धार है।
गुड्डे-गुड़िया का ब्याह रचाते-रचाते तेरा कन्यादान जब हो जाता है, पराये उस परिवेश को तू कैसे अपना बनाती है, यह तो सिर्फ प्रकृति ही पहचान पाती है।
अपनी इच्छाओं का त्याग कर, दूसरों के चेहरे पर खुशी ढूंढते-ढूंढते मत भूल अपने व्यक्तित्व को; अवगत करा समाज को अपने इस व्यक्तित्व से मत भूल की तू जननी है, मत भूल अपनी पहचान को नारी तू बस नारी नहीं , उस नदिया की तू धार है।
अधिकार है तुझे भी अपनी गलतियाँ दोहराने का, अधिकार है तुझे भी कभी कुछ भूल जाने का, अधिकार है तुझे भी एक दिन अपने लिए जी जाने का!
नारी तू बस नारी नहीं!
मूल चित्र : Pexels
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