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शादी के बाद औरत करियर की कुर्बानी दे, ऐसा ज़रूरी नहीं

शादी से पहले किये हुए वादों को अक्सर लोग शादी के बाद भूल जाया करते हैं... इसका तात्पर्य क्या निकालें? ये हम पाठकों पर छोड़ते हैं और पढ़ते हैं ये कहानी।  

शादी से पहले किये हुए वादों को अक्सर लोग शादी के बाद भूल जाया करते हैं… इसका तात्पर्य क्या निकालें? ये हम पाठकों पर छोड़ते हैं और पढ़ते हैं ये कहानी।  

कल्पना की शादी को 15 साल बीत गए थे। उसके 2 बच्चे थे और एक जेंटलमैन सा पति। प्यारी सी ज़िंदगी चल रही थी और सब ठीक था।

कल्पना पहले नौकरी करती थी, लेकिन बच्चों के बाद दोनों जगह संभालना मुश्किल हो गया था, इसलिए उसने अपना पूरा समय घर को देने का फ़ैसला किया। पर्णिल एक अच्छा पति और पिता तो था लेकिन एक अच्छा दोस्त नहीं बन सका। इतने साल बीत जाने के बाद भी पर्णिल ने कल्पना से कभी ये पूछना ज़रूरी नहीं समझा की क्या तुम फिर से नौकरी करना चाहती हो?

कल्पना ने कभी इस बारे में शिकायत भी नहीं की, लेकिन कभी अकेले होती थी तो अक्सर चाय पीते-पीते सोचती थी कि काश पर्णिल मुझसे एक बार पूछे, काश पर्णिल को महसूस हो कि मुझे भी मेरा काम कितना पसंद था।

कल्पना शादी और बच्चों से पहले एक NGO में बतौर कंसल्टेट काम करती थी। अपनी जॉब के 8 सालों में कल्पना औरतों और बच्चों के लिए कई वेलफेयर प्रोग्राम का हिस्सा भी रही थी। उसे अपना काम बेहद पसंद था क्योंकि वो सिर्फ पैसों या पद के लिए नहीं था, कई लोगों को उससे ख़ुशियां मिल रही थीं।

पर्णिल ऑफिस से आया और उसने आवाज़ लगाई, “कल्पना, कॉफी दे दो प्लीज़।”

कल्पना झट से कॉफी और कुकीज़ ले आई। दोनों बच्चे भी ट्यूशन गए हुए थे। कल्पना ने यूहीं अचानक पर्णिल से पूछा, “मैं फिर से नौकरी करना चाहती हूं।”

थोड़ी देर चुप रहने के बाद पर्णिल ने कहा, “पर अचानक? और ज़रूरत भी क्या है कल्पना? सब सही तो चल रहा है। मैं अच्छा-खासा कमा रहा हूं। घर में किसी चीज़ की कमी नहीं है। और, तुम जॉब करोगी तो फिर बच्चों का ख्याल कौन रखेगा?”

कल्पना की सारी कपोल-कल्पनाएं उस एक पल में चूर सी हो गयीं। शायद इसलिए वो इतने सालों से ये सवाल नहीं पूछ रही थी, क्योंकि अब जिस पर्णिल से वो बात कर रही थी, वो वैसा नहीं था जैसा वो तब था जब कल्पना को देखने उसके घर आया था।

पर्णिल ही कल्पना के घर अपने माता-पिता के साथ रिश्ता लेकर आया था। जिस NGO में कल्पना काम करती थी पर्णिल की कंपनी वहां फंड देती थी। इसलिए काम के सिलसिने में पर्णिल उस NGO में पहुंचा जहां उसने कल्पना को देखा था। काम के लिए कल्पना का डेडिकेशन और उसके बात करने की लहजे से पर्णिल पहले दिन ही प्रभावित हो गया था। तीन-चार बार पर्णिल का वहां आना-जाना हुआ और कल्पना को बिना अपनी भावनाएं बताए वो उसके घर रिश्ता लेकर पहुंच गया।

कल्पना एक मध्यमवर्गीय परिवार की सुंदर और संस्कारी बेटी थी, इसलिए उसके परिवार ने भी बिना कुछ सवाल जवाब किए रिश्ता पक्का कर दिया था। लेकिन उस दिन कल्पना ने पर्णिल से एक सवाल किया था, “क्या आप मुझे मेरे करियर में सपोर्ट करेंगे?”

पर्णिल ने कहा था, “मैं तुम्हारा काम देखकर ही तो तुम से प्रभावित हुआ हूँ, तो वो छोड़ने को क्यों कहूंगा? हम दोनों मिलकर सब संभाल लेंगे। मैं कभी अकेले तुमसे तुम्हारे काम की कुर्बानी नहीं मांगूंगा।”

15 साल बाद अब सब बदल गया था…

कल्पना फिर कॉफी पीते हुए रोज़ की तरह अपनी कल्पनाएं बुनती रही।

मूल चित्र : Canva 

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