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बात तब की है जब मैं स्कूल में थी, तब इमली बेचने वाली अम्मा रोज़ हमारे स्कूल के पास आती और सारी लड़कियां उससे इमली खरीदतीं।
उम्र सत्तर की होगी, पता नहीं उससे मुझे इतना लगाव क्यों हो गया था, रोज़ उसके आने का इंतज़ार करती। वो भी मुझे प्यार करती और कभी कभी मुझे बिना पैसों के ही इमली दे देती।
एक दिन मैंने पूछा, “अम्मा आपके परिवार में कौन-कौन हैं?”
“सभी हैं बेटा-बहू, पोता-पोती, भरा-पूरा परिवार है मेरा”, अम्मा ने कहा।
“फिर भी आप इस उम्र में इतना कष्ट क्यों उठाती हो? बिटिया तू बहुत छोटी है इन बातों को समझने के लिए। तुम इतना ही समझो कि सब हैं पर मैं इस दुनिया में अकेली हूँ। ये बातें छोड़। ये ले इमली।”
“लेकिन अम्मा आज मेरे पास पैसे नहीं हैं।”
“कोई बात नहीं, तू तो मेरी पोती जैसी है।” मैंने इमली ले ली और क्लास में चली गई।
कुछ दिन बाद मुझे पीलीया हो गया और डाॅक्टर ने बेड रेस्ट बोल दिया। पन्द्रह-बीस दिन लगे मुझे ठीक होने में। अम्मा से मिलने का बड़ा मन हो रहा था और मन ही मन गुस्सा भी थी कि वो मुझसे मिलने, मेरा हाल पूछने क्यों नहीं आईं। स्कूल जाने के लिए मैं बेसब्र हो रही थी। आखिर माँ ने स्कूल जाने की इजाज़त दे ही दी।
दूसरे दिन स्कूल गई और लंच होने का इंतजार करने लगी। लंच होने के बाद इमली बेचने वाली अम्मा को बड़ी ही बेसब्री से ढूंढ रही थी, ‘रोज तो लंच होने से पहले ही गेट के पास बैठी रहती हैं आज क्या हुआ? शायद उसकी तबियत खराब हो गई होगी’, मैनें बुदबुदाते हुए खुद से कहा।
तभी मेरी क्लासमेट मीरा आई और उसने मुझसे पूछा, “तु यहाँ क्या कर रही हैं? चल अब तो बेल बज गई, क्लास में चलते हैं।”
मैने कहा, “इमली वाली अम्मा का इंतजार।”
मीरा ने मुझसे कहा, “अब वह कभी नहीं आएगी। तुम्हें नहीं मालूम तीन दिन पहले उसका देहांत हो गया।”
मुझे यकीन नहीं हुआ। वह अच्छी भली थी, अचानक ये…
“बेचारी! बहुत ही दुःख झेले जब तक जिंदा रही। चार बेटे-बहू और पोते-पोतियों से भरा संसार था फिर भी अपना बोझ खुद उठाती थी। सारी संपत्ति अपने नाम करवाने के बाद उन्होंने बेचारी को धक्के खाने के लिए घर से निकाल दिया। वो बहुत दिनों से बीमार थी और इलाज कराने के पैसे उसके पास न थे। उस दिन चिर निद्रा में सो गई। खुशी इस बात की है कि भगवान ने सुकून भरी मौत दी। अरे हां, जब तू बीमार थी और स्कूल नहीं आ रही थी, तो वो रोज तुझे पूछा करती थी और तेरे जल्दी ठीक होने की प्रार्थना भी करती थी। ये सब सुन मेरा कलेजा मुंह को आ गया।”
“अम्मा के बारे में तुम्हें इतनी बातें कैसे पता चली?” मैंने जिज्ञासा पूर्वक पूछा।
“अरे मेरी कामवाली उसी बस्ती में रहती हैं, उसी ने मुझे बताया”, मीरा ने कहा।
अम्मा के बारे में जानकर बहुत दुःख हुआ और उनका हंसता हुआ चेहरा आंखों के सामने घूम गया।
मूल चित्र : Pixabay
This is Pragati B.Ed qualified and digital marketing certificate holder. A wife, A mom and homemaker. I love to write stories, I am book lover. read more...
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