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अगर लगन सच्ची हो तो कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

श्वेता का बचपन से एक ही सपना था और संकल्प भी कि, 'मैं जॉब करूं, वो भी एक अच्छी गवर्मेंट जॉब'  और इसके लिए वह जी तोड़ मेहनत करती रही।

श्वेता का बचपन से एक ही सपना था और संकल्प भी कि, ‘मैं जॉब करूं, वो भी एक अच्छी गवर्मेंट जॉब’  और इसके लिए वह जी तोड़ मेहनत करती रही।

शादी हो जाने के बाद भी उसने अपने सपने को नहीं भूलाया और प्रयास करती रही। भाग्य से भगवान ने उसकी लगन और मेहनत का सिला दिया और उसकी एक सरकारी संस्था में जाॅब लग गयी। लेकिन जब ये सुनहरा मौका उसे मिला उस समय उसकी गोद में दो साल की बच्ची थी।

सबसे बड़ी बात ये थी कि उसके इस नौकरी करने के इरादे पर ससुराल से नाम मात्र का सहयोग था। हालांकि सास चाहतीं तो बेटा-बहू के पास सहयोग के लिए आ सकतीं थीं, ताकि बहू अपने सपने को उड़ान दे सके, पर उन्हें बच्चे को घर छोड़कर बहू का बाहर जाना पसंद नहीं था। अतः उन्होने सिरे से श्वेता की भर्त्सना की।

श्वेता के पति अन्वय भी जाॅब करते थे। चाहते तो वो भी नहीं थे कि पत्नी घर से बाहर जाए। आखिर घर कौन संभालेगा? पर शादी के समय श्वेता के पिता से अन्वय ने वादा किया था कि वह श्वेता के हर अरमान पूरा करेगा। यह सब याद करके उसने हाँ कर दी और सोचा कि ऐसे ही इतनी समस्याएं हैं श्वेता के नौकरी करने के रास्ते में कि ये खुद ही जाॅब ज्वाइन करने का ख्याल छोड़ देगी।

और सच में श्वेता के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यही थी कि वो बच्ची को कहां छोड़ कर जाए जाॅब करने। उसने मायके में अपनी समस्या बताई तो उसके मां-पिताजी उसके पास आ गए। कोई साल भर तक कभी माँ तो कभी पिता उसके साथ रहे। पर वह भी कितना समय उसके साथ रहते।

श्वेता की बच्ची किसी तरह तीन साल की हो चुकी थी। पर समस्या अभी भी यही थी की उसके आफिस चले जाने पर बेटी किसके पास रहे। श्वेता ने सासु मां से कहा कि ‘आप कुछ समय के लिए ही आ जाइए गुड़िया को परेशानी हो रही है’, तो उन्होने सिरे से श्वेता को ही डाँट पिला दी, कैसी मां हो! बेटी को छोड़कर आफिस जाने के अरमान पूरे करने की चाहत है तुम्हें? एक साल कर ली नौकरी, अब छोड़कर घर संभालो।”

श्वेता ने कहा, “मां जी आपको मेरी मदद नहीं करनी है तो ना सही, पर मैं न नौकरी छोडूँगी, न अपनी बेटी को अकेला छोड़ूंगी। मैं कुछ न कुछ उपाय ढूँढ लूँगी। आप आराम से रहें।” हालांकि श्वेता भी अब मायूस हो रही थी। कभी-कभी उसे भी लगता कि शायद अब नौकरी छोड़नी ही पड़ेगी। पर फिर उसे एक राह सूझी कि गुड़िया अब तीन साल की हो गई है उसे सुबह 9 से 1 बजे तक स्कूल में रख सकते हैं। शिखा ने फटाफट आफिस के पास में स्थित एक प्ले स्कूल में गुड़िया का दाखिला करा दिया।

अब शिखा जब आफिस जाती गुड़िया को भी साथ ले जाती। उसे स्कूल छोड़कर अपना काम करती। एक बजे  जब उसके आफिस में लंच होता तो, उस समय वह गुड़िया को स्कूल से ले आती। उसको लंच खिलाकर, दो से पांच बजे तक अपने साथ ही रखती। और आश्चर्य ये था कि नन्ही बच्ची भी माँ की मुश्किलें देखकर समझदार बन रही थी। आफिस में चुपचाप माँ के पास बैठी अपना होमवर्क करती, या अपनी किताबें पलटती और कभी क्रेयान्स से चित्र कलर करती। इस तरह श्वेता ने आफिस में एक साल और पूरा किया।

दो साल हो जाने पर आफिस में श्वेता का प्रोबेशन पीरियड समाप्त हो गया। अब वह शिशु देखभाल संबंधी अवकाश भी ले सकती थी, जैसा कि सरकारी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों को मिलता है।

अब शिखा निंश्चित होकर बच्ची के लिए जब भी ज़रुरत हो छुट्टी ले लेती थी। धीरे-धीरे उसकी जाॅब करने की लगन और घर आफिस दोनों संभालने का तालमेल और जज़्बा देखकर अन्वय ने भी श्वेता की खुलकर सहायता करनी शुरू कर दी। वह अक्सर वर्क फ्राम होम लेकर घर से आनलाइन काम कर लेता, और गुड़िया को भी संभाल लेता।

दो-तीन सालों में ही शिखा और अन्वय के रहन-सहन और घर गृहस्थी की तरक्की देखकर श्वेता से उसके ससुर और सास भी बहुत खुश हुए। अब तो सास ने भी आगे बढ़कर श्वेता की मदद करनी चाही पर श्वेता ने साफ इंकार कर दिया, “माँ जी अब ये उपकार आप तो रहने ही दीजिए।”

पर सास द्वारा अपनी गलती महसूस किया जाना ही काफी था। अन्वय के कहने पर श्वेता ने उन्हें क्षमा कर दिया।कुछ सालों बाद तो श्वेता की सास और ननद जब तब उसके पास आ जातीं, उसकी घर गृहस्थी संभालतीं चाहें नहीं संभालतीं, पर श्वेता खुशी-खुशी उन्हें मनचाहे उपहारों से लाद देती। जहां श्वेता की सास बहूओं के नौकरी करने के खिलाफ थीं। वहीं अब तो वह हर किसी को ‘पढ़ी-लिखी और हो सके तो नौकरी करने वाली बहू’ लाने की हिदायत देतीं हैं। इस तरह कुछ शुरूआती मुश्किलों के दौर सहने के बाद भी श्वेता ने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपनों को उड़ान दी।

कैसी लगी आप सबको अपने सपनों को सच करने वाली जुझारू महिला की ये कहानी।

मूल चित्र : Canva

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