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ना कोई लड़की अपने घर को पराया मान सकती है और ना उसके माँ-पिता अपनी बेटी को दूसरा समझ सकते हैं, वो उनके कलेजे का टुकड़ा थी और रहेगी।
सुमित की शादी रीना से हुई। रीना दुल्हन बन कर कल ही आई। सुबह जब सासु माँ ने नाश्ता दिया तो पहला कौर खाते ही रीना ने कहा, “मम्मी जी ये इसका स्वाद बिल्कुल मेरे घर जैसा है।”
सासु माँ ने हँसते हुये कहा, “रीना अब ये ही घर तुम्हारा है।” इस बात पर रीना ने ध्यान नहीं दिया।
कुछ दिन बाद रीना ननद और उनकी सहेलियों से बात कर रही थी, “हमारे घर सबको मीठा पसंद है।”
सासु माँ ने फिर कहा, “तुम्हारा घर अब ये है।”
रीना ने हसँते हुये कहा, “मम्मी जी, मैं अपने मायके की बात बता रही हूँ।”
“हाँ-हाँ बेटा, मायका बोलो। अब ये ही घर है तुम्हारा।”
मन में रीना के बहुत जवाब थे, पर मम्मी-पापा ने समझा कर भेजा था, ‘कुछ बुरा लगे तो चुप रहना।’
ऐसे ही पड़ोस की आंटी जी आई, रीना चाय नाश्ता ले आई।
“आओ रीना तुम भी चाय पी लो,” आंटी ने कहा।
“नहीं, आंटी आप लिजिये, मुझे रसोई में कुछ काम है।”
आंटी से मम्मी कह रही थी, “अभी बस मायके में ध्यान है रीना का, हर बात पर मेरा घर ही आता है।” आंटी ने कहा, “सीख जायेगी।”
अभी दिन ही कितने हुये हैं आये हुए। रसोई बराबर में ही थी कमरे के, तो रीना ने सुन लिया। उसे समझ नहीं आया कि इसमे बुरा क्या मानना था, जो आंटी से कहा मम्मी जी ने।
कभी-कभी सुमित भी बहुत बार हँसी में बोल देता, “अब मैं तुम्हारा और ये घर भी तुम्हारा। मायका दूसरा घर है, तुम परायी हो चुकी हो वहाँ से।”
रीना भी कह देती, “वो घर मेरा है और रहेगा और जब मैं या मेरा परिवार नहीं समझते पराया, तो दुनिया को क्या लेना देना। वो गया जमाना था जब लड़कियाँँ परायी होती थीं। अब नहीं!” हमेशा मायका उसका घर था और रहेगा।
एक दिन सब घर में बैठे खाने की तैयारी कर रहे थे, “रीना तुम्हारे घर क्या बनता है दशहरे पर?” रीना ने बताया, ”लौकी का रायता, उड़द की दाल, चावल, और काशीफल की सब्जी। और आपके?” रीना ने तुरंत पूछा।
सासु माँ ने कहा, “हमारे घर भी ये ही बनता है।”
पर माँ आप तो उड़द साबुत वाले बनाती हैं। रीना ने सोचा नहीं था कि ‘आपके घर’ कहने से सासु माँ अपना मायका समझेगींं। रीना ने कहा, “मम्मी जी, मेरा मतलब यहाँ घर में से था। आपने अपने घर के बारे में बताया।” सासु माँ जी का चेहरा देखने लायक था।
रीना ने कहा, “मम्मी जी, जहाँ जन्म लिया, जहाँ पच्चीस साल बिताये, वो घर तो कभी नहीं भूला जा सकता।आप अब तक नहीं भूल पाईं। यहाँँ आये अभी तीन चार महीने ही हुऐ, ये घर भी मेरा है। जिन्होंने जन्म दिया, बड़ा किया, मम्मी-पापा को कभी नहीं भूला जा सकता। जैसे सुमित, आप अपने घर को नहीं भूल सकते,” रीना ने सुमित को देखते हुये कहा।
“हर बात पर उनकी याद आना स्वाभाविक ही है। मैंने अपनी ससुराल को अपना मान लिया, तो सुमित और आप सब भी मेरे घर को अपना लें।” आज जो मन में था रीना ने अच्छी तरह बता दिया कि अपना घर को वो कभी पराया नहीं होने देगी और दोनों घर का अच्छे से ध्यान रखेगी।
हर लड़की को प्यार चाहिये और उसे समझने वाले जो समझें कि मायका कभी नहीं भुलाया जा सकता। ना कोई लड़की अपने घर को पराया मान सकती है और ना उसके माँ-पिता अपनी बेटी को दूसरा समझ सकते हैं। वो उनके कलेजे का टुकड़ा थी और रहेगी। अगर ये दोनों बात समझ लीं जाएँ तो, हर घर खुशहाल होगा।
मूल चित्र : Pexels
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