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मैं ही तो वह कुंजी हूँ, जो घर आँगन महकाऊँ, पर मेरे भी, कुछ सपने हैं, जिनका तुम सम्मान करो, सिर्फ औरत ही क्यों करे समर्पण, तुम भी कुछ योग्यदान दो।
मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, क्या मेरा अस्तित्व नहीं? कहने को तो सीधी साधी, दुर्गा भी यहीं, काली भी यहीं, मुझसे ही ये संसार सजा है, व्यक्तित्व मेरा सबसे ऊँचा, पुरुषों के क़दमों की धूल नहीं।
मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, क्या मेरा अस्तित्व नहीं, सीता सी पवित्र आत्मा ममतामयी हूँ उमा सी दुर्गा सी नरसंहारिणी , जिस रूप में मिलना हो मुझसे , हर रूप मेरा विशाल है।
मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, क्या मेरा अस्तित्व नहीं? मेरा प्रेम उज्जवल दीपक सा , हर घर उजियारा होता है, मेरा प्रेम अथाह सागर सा, कभी नहीं कम होता है, मेरी है यही प्रकृति, दुःख में पतझड़ सी झड़ जाऊँ, फिर खिल उठूं बसंत सी।
मैं कौन हूँ ,मैं क्या हूँ , क्या मेरा अस्तित्व नहीं? मुझ बिन जीवन का मोल नहीं, मैं सबसे अनमोल , मुझसे ही तो पूरे हो तुम!
मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, क्या मेरा अस्तित्व नहीं? मैं ही तो वह कुंजी हूँ, जो घर आँगन महकाऊँ, पर मेरे भी, कुछ सपने हैं, जिनका तुम सम्मान करो, सिर्फ औरत ही क्यों करे समर्पण, तुम भी दो योग्यदान।
मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, क्या मेरा अस्तित्व नहीं? मुझ बिन न पूरे हो तुम, मैं भी तुम बिन अधूरी हूँ, तो क्यों न मिलकर साथ चलें हम, तुम मेरा सम्मान करो, और मैं तुम पर अभिमान करूँ।
मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, क्या मेरा अस्तित्व नहीं?
मूल चित्र : Unsplash
Blogger [simlicity innocence in a blog ], M.Sc. [zoology ] B.Ed. [Bangalore Karnataka ] read more...
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