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कण कण में बसी क्षण क्षण में रची नारी तेरी ये कहानी!

बचपन बीता सकुचा सिमटा, यौवन आया नई आस लिए, आयी है पार झरोखों के, मन में स्वतंत्र उल्लास लिए नारी की विषम कहानी है।

बचपन बीता सकुचा सिमटा, यौवन आया नई आस लिए, आयी है पार झरोखों के, मन में स्वतंत्र उल्लास लिए नारी की विषम कहानी है।

कण कण में बसी क्षण क्षण में रची,
ये रंग बदलती रवानी है।
वो जिसको कह भी न पाई कभी,
नारी की विषम कहानी है।

बचपन बीता सकुचा सिमटा,
यौवन आया नई आस लिए।
आयी है पार झरोखों के,
मन में स्वतंत्र उल्लास लिए।

वैजन्ती तेजस्वी जननी,
जग की तुम हो दीपशिखा।
शोषण अत्याचार नहीं है,
अब तेरी जीवन रेखा।

स्वछंद धरा स्वछन्द किरण तुम,
सुरमयी अलौकिक जलधारा।
क्या बांध सका था काल कभी,
अवतरित हुई जब रौद्र दुर्गा।

उठ सुप्त कंठ में उपजाओ,
कीर्ति क्रांति के नव अंकुर।
जन जन के प्राणों में गूँजें
तेरी वीणा के मीठे सुर।

मूल चित्र : Canva 

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