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सबरीमाला में बिंदु अम्मिनी पर हमला समाज की किस मानसिकता की ओर इशारा है?

सबरीमाला में बिंदु अम्मिनी पर हमला हमारे पितृसत्तात्मक समाज के बारे में बहुत कुछ कह रहा है और कब तक हम सब कुछ चुपचाप सहते रहेंगे? 

सबरीमाला में बिंदु अम्मिनी पर हमला हमारे पितृसत्तात्मक समाज के बारे में बहुत कुछ कह रहा है और कब तक हम सब कुछ चुपचाप सहते रहेंगे? 

सबरीमाला में बिंदु अम्मिनी पर हमला, तृप्ति देसाई के मंदिर में प्रवेश पर रोक, पुलिस का सुरक्षा देने से इनकार

भारत के दक्षिण भारत में, केरल में स्थित, सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, क्योंकि पुरानी मान्यताओं के अनुसार, अय्यप्पा स्वामी का जन्म 2 देवताओं के द्वारा हुआ था। इसीलिए कोई भी महिला, खासकर जिनका मासिक धर्म शुरू हो चुका हो, और जब तक वह मासिक धर्म से निवृत ना हो, मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती।

पिछले साल, केरल की कन्नूर यूनिवर्सिटी में, लेक्चरर बिंदु अम्मिनी, ने मंदिर में घुसने का प्रयास किया था जिसे रोक दिया गया।

महिलाओं ने सबरीमाला में महिलाओं को भी प्रवेश के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, अब सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना है, कि अधिकार मिलना चाहिए या नहीं।

27 नवंबर 2019 मंगलवार को महिला अधिकार की कार्यकर्ता तृप्ति देसाई, जो पुणे में रहती हैं, संविधान दिवस के दिन सबरीमाला अय्यप्पा स्वामी के दर्शन के उद्देश्य से कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरीं। वहां बिंदु अम्मिनी पहले से मौजूद थीं। अन्य महिलाओं के साथ वे भी तृप्ति जी के साथ जुड़ गई।

सभी महिलाएं पुलिस कमिश्नर के दफ्तर, सुरक्षा मांगने गयीं। पुलिस ने अय्यप्पा भक्तों दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं और भाजपा के प्रदर्शन को देखते हुए, उन्हें जान का खतरा बताया। यही नहीं, उन्होंने सुरक्षा देने से भी इनकार कर दिया। 12 घंटे से अधिक समय तक चले विरोध प्रदर्शन और पुलिस द्वारा सुरक्षा देने से इनकार करने के बाद तृप्ति देसाई को मंदिर जाने का इरादा मजबूरन बदलना पड़ा।

इसी दौरान विरोध करते हुए श्रीनाथ पद्नाभन, नामक अयप्पा भक्तों ने, बिंदु अम्मिनी, के ऊपर मिर्च पाउडर स्प्रे से हमला कर दिया।

मुझे समझ नहीं आता, पुरानी मान्यता की दुहाई देते हुए कब तक हमारा समाज इस पिछड़ी मानसिकता के साथ स्त्रियों को समानता के अधिकारों से वंचित रखेगा। यह निराधार बातें, जिसे लोग आध्यात्मिकता से जोड़ रहे हैं, इनका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। जिन महिलाओं को मासिक धर्म होता है, उन्हें मंदिर में नहीं जाना चाहिए बिलकुल तथ्य रहित है।

स्त्री मानव प्रजाति की जननी है और इस निर्माण और सृजन में ईश्वर की सहायक स्त्री को अय्यप्पा स्वामी भला क्यों कर खुद के दर्शन पूजन से रोकेंगे? हम सब उसी ईश्वर की रचना हैं। जब उन्होंने भेदभाव नहीं किया, तो केवल किंवदंतियों के आधार पर किसी भी स्त्री को पूजा के अधिकार से कैसे रोका जा सकता है? इस तरह की अंधविश्वास रूढ़िवादिता से समाज का केवल पतन होता है, विकास नहीं।

यह केवल किसी मंदिर मैं प्रवेश की बात नहीं है, यह बात है स्त्रियों के अस्तित्व की। कब तक समाज फैसला लेता रहेगा कि वह कहां जाएं, कहां नहीं? क्या पहनें, क्या नहीं? क्या करें, क्या नहीं? क्या स्त्री स्वतंत्र इकाई नहीं है?

समाज के इस ढांचे में स्त्रियों को केवल दोयम दर्जे का ही दर्जा प्राप्त है। बिंदु अम्मिनी के उपर किए गए हमले, तृप्ति देसाई को प्रवेश ना मिलना, 12 घंटों से ज़्यादा समय तक विरोध प्रदर्शन, क्या हमें हज़ारों साल पहले की परिस्थिति से रूबरू नहीं कराता?

इन सब घटनाओं से मेरे जैसे अनेक महिलाएं अपमानित महसूस करती हैं। आज जहां हमें एक छोटे से पूजन पाठ को लेकर विरोध अपमान और हमलों का सामना करना पड़ रहा है, वहां हम महिलाओं की उन्नति, विकास या स्वतंत्रता की बात कैसे करें? कौन जवाब देगा इन सब बातों का, जबकि कोर्ट, पुलिस, सभी इन अय्यप्पा भक्तों से घबरा रही है।

मूल चित्र : Google/YouTube

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