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चाहे रास्ते में कांटे हो हज़ार, लोग तम्हें हर मोड़ पर गिराने को हो तैयार, तुम्हें बस अपने काबिल बनना है, गिरने के बाद खुद संभालना है।
सूखे पेड़ों के पत्तों की तरह बिखरा सा ये वजूद
अपने अस्तित्व की तलाश में निकला था ये वजूद
रास्ते में कांटे हज़ार मिले
कठिनाई के साये हर बार मिले
हर मोड़ पर खड़ा था एक मुसाफ़िर
कुछ जुड़ते गए इस कारवां में
और कुछ ने किये बस शिक़वे गीले
अकेले चलने का मज़ा भी कुछ और है
बीच राह में गिरने का मज़ा भी कुछ और है
उठते नहीं जब हाथ गिरते हुए को उठाने को
उस सबक को सीख लेने का मज़ा भी कुछ और है
जितना आगे चले
उतना जीवन के करीब हो चले
अब जाना कि जिस वजूद की तलाश में हम हर पल भटकते रहे
वो तो मेरे भीतर ही था कहीं
आँखे बंद कर एक कोने में
जब बैठ मैंने उसकी आवाज़ सुनी
मानो जैसे कह रही हो
कि मैं ही तो हूँ वो जिसे तुम ढूंढ़ती हो हर कहीं
यूँही नहीं कहती मैं ये तुमसे बार-बार
कि चाहे रास्ते में कांटे हो हज़ार
लोग तम्हें हर मोड़ पर गिराने को हो तैयार
तुम्हें बस अपने काबिल बनना है
गिरने के बाद खुद संभालना है
अपने वजूद का हाथ थामे अपनी मंज़िल को हासिल करना है।
मूल चित्र : Unsplash
Single mom to a lovely daughter, blogger and Founder at Sanity Daily. An NLP practitioner, advocating Mental health since 2016. Among the top 15 Mental Health Bloggers, read in 60 Countries. Helping you priortise your read more...
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