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खड़ा तो मुझे खुद ही होना था, बस थोड़ी देर कर दी, पर अब जब खड़ी हो गई हूँ, तो फिर अब बैठना नहीं है, अभी-अभी तो चलना सीखा है, अभी तो पूरी ज़िंदगी बाकी है!
अभी-अभी तो चलना सीखा है, अभी तो पूरी ज़िंदगी बाकी है, मेरे मौन मैं भी, एक ऊँची सी आवाज़ थी, सोचा, सुनूँ, मैं उस अनसुनी आवाज को, तो ज़िंदगी और भी खूबसूरत होगी अभी-अभी तो चलना सीखा है, अभी तो पूरी ज़िंदगी बाकी है।
धीरे-धीरे अंदाज़ बदलेगा, और बदलेगा मेरे जीने का सलीका, ज़िंदगी की हकीकत से और रूबरू हो जाऊँगी, तमाम जद्दोज़हद से ज़िंदगी का तजुर्बा होगा, और मैं और मजबूत हो जाऊँगी, क्योंकि सादगी से जीना, शायद जीना नहीं, और सुना है, सादगी से लोग जीने नहीं देते, अभी-अभी तो चलना सीखा है, अभी तो पूरी ज़िंदगी बाकी है।
Blogger [simlicity innocence in a blog ], M.Sc. [zoology ] B.Ed. [Bangalore Karnataka ] read more...
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