कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

आज से हो ये नारा – ‘बेटा पढ़ाओ, बेटे को संस्कार सिखाओ!’

दूसरे पहलू पर गौर करना होगा कि बेटे को तमाम व्यसनों और बुरी सोहबत से अधिक सुरक्षित रख कर हम कितनी ही बेटियों को सुरक्षित रख सकते हैं!

दूसरे पहलू पर गौर करना होगा कि बेटे को तमाम व्यसनों और बुरी सोहबत से अधिक सुरक्षित रख कर हम कितनी ही बेटियों को सुरक्षित रख सकते हैं!

सरकार से लेकर लोकल सामाजिक कार्यकर्ता तक सभी ‘बेटी पढ़ाओ’ की रट लगा हलकान हो रहे हैं!
सड़क किनारे राह चलते, अस्पताल, रेलवे स्टेशन, सिनेमाघर, स्कूल, दफ्तर, बैंक, एयरपोर्ट, जहां कहीं देखो वहीं होर्डिंग, रंगी पुती दीवारें बस यही संदेश दे रही हैं कि बस ‘बेटी पढ़ाओ!’

मन में एक विचार आ रहा है कि बेटी पढ़ाओ तो कैसे पढ़ाओ?
उसे घर से बाहर पढ़ने भिजवाओ तो कैसे भिजवाओ?
क्योंकि बाहर तो न जाने कितने ही अनपढ़, उजड्ड लड़के उसे दबोचने को घात लगाए बैठे हैं!

जो पढ़े लिखे हैं भी या नहीं, नैतिकता और शर्म उनमें कभी थी या नहीं, मुझे संशय है!
मुझे तो अब बेटी पढ़ाने की बजाय बेटे पढ़ाना ज़्यादा ज़रूरी लग रहा है!

एक अभियान चलाकर और स्लोगन लिख कर दीवारें पाट देनीं चाहिए कि-
बेटा पढ़ाओ, बेटी अपने आप ही बच जाएगी!

बेटे को नैतिकता सिखाओ, बेटी अपने आप ही बच जाएगी!
बेटे को बुरी आदतों से बचाओ, बेटी अपने आप ही बच जाएगी!
बेटे को नारी का सम्मान करना सिखाओ, बेटी अपने आप ही बच जाएगी!

क्या कभी कोई विज्ञापन बनेगा कि ‘बेटे को तमीज़ सिखाओ, संस्कार सिखाओ, देर रात बाहर रहने पर लगाम लगाओ?’
लड़कों के दोस्तों के फोन नंबर लेकर क्यों नहीं रखे जाते?
लड़कों के साथ भी कभी कभार बाहर जाकर मालूम क्यों नहीं किया जाता कि वे किस संगत में रहते हैं और कहां कहां जाया करते हैं?

सिर्फ बेटियों को बांध कर रखने की बजाय अब हम बेटों को भी बांध कर रखें!
मुझे लगता है वक्त के साथ जब सब कुछ बदल रहा है तो बरसों से चली आ रही बेटे-बेटियों के पालन-पोषण के तरीकों और मान्यताओं में भी परिवर्तन करना आवश्यक है!

लड़कों के हमेशा सुरक्षित और लड़कियों को हमेशा असुरक्षित समझने की बजाय सिक्के को उल्टा कर दूसरे पहलू पर गौर करना होगा कि बेटे को तमाम व्यसनों और बुरी सोहबत से अधिक सुरक्षित रख कर हम कितनी ही बेटियों को सुरक्षित रख सकते हैं!

‘बेटी छोड़ो, बेटा पढ़ाओ, उसको हर संस्कार सिखाओ!
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर नारी का सम्मान सिखाओ!’

नोट – और यदि कोई पुरूष अपने माता-पिता को बताकर या पूछकर हर कार्य करने की आदत डाल ले, तो उसे उपहास का पात्र भी न बनाया जाए! क्योंकि यदि यह आदत शुरू से उसके माता पिता ने उसमें डाली है फिर जाएगी नहीं, जो कुल मिलाकर उसे ज़िम्मेदार भी बनाकर रखेगी हमेशा! ऐसा मैं मानती हूँ।

मूल चित्र : Canva

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

98 Posts | 300,160 Views
All Categories