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कल मेरी एक सहेली रिया मुझसे मिलने आई। बहुत उदास थी। पूछा तो उसने जो मुझे जो कहानी बताई, वह मैं आप सबको बयान करती हूँ। सच में ऐसा भी होता है?
है तो बहुत आम लेकिन जिसके साथ यह घटना हुई है उसकी तो पूरी जिंदगी उजड़ गई। और उसके परिवार वालों का इस पूरे प्रकरण से कोई लेना देना नहीं है, उल्टा वो तो बहुत खुश हो गए कि उन्हें सज़ा मिल गई।
रिया ने बताया कि उनके पड़ोस में रहेने वाली शुभी दी जो किसी लड़के से प्यार करती थी और उसके बिना जीना वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी। लेकिन उन्हें यह पता था कि उनके परिवार वाले इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेंगें।
इस कारण से शुभी दीदी ने भागकर उस लड़के से, जिसका नाम शुभम था, शादी कर ली और अपनी नई दुनिया, किसी नये शहर में अपना घर भी बना लिया। शुभम के परिवार वाले भी इस रिश्ते से खुश नहीं थे और उन्होंने ने भी उन दोनों को अपनाने से इंकार कर दिया।
दोनों एक साथ काफी खुश थे और दूसरी ओर दोनों के परिवारवाले एक दूसरे को दोषी मान रहे थे और आपसी रंजिश बढ़ती जा रही थी। अब ऐसा मौहाल था कि यदि शुभम और शुभी वापस आ जाते तो उनके परिवार वाले झूठी शान के लिए दोनों को मार भी डालते।
धीरे धीरे समय बदला। अब भी दोनों के बीच गहरा प्यार था और उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उनके परिवारवाले अभी भी उनको ढूंढ़ रहे थे।
अभी कुछ दिन पहले पता चला कि दोनों की एक्सिडेंटल डैथ हो गई। हुआ ऐसा कि शुभी दी प्रेगनेंट थी। अभी आखिरी महीना ही था कि कुछ प्रॉब्लम हो गई। तो उन्हें अचानक से हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। अब शुभम ही थे उसका ख्याल रखने के लिए। डॉक्टर्स ने कहा कि आप कुछ दवाइयां ले आओ। अब बच्चे को बचाने के लिए उन्हें ऑपरेशन करना पड़ेगा, नहीं तो माँ और बच्चे की जान को खतरा है। फिर क्या था वही हुआ जो नियति को मंजूर था।
शुभम दवाई लेने चला गया और दूसरी तरफ ऑपरेशन के बीच में ही शुभी दी कि हालात खराब हो गई और उनकी डैथ हो गई लेकिन उनका बच्चा बच गया। उधर शुभम की तेज़ रफ्तार बाइक की टक्कर तेज़ रफ्तार से आ रहे ट्रक से हो गई और उसकी भी वहीं मौत हो गई। पता नहीं भगवान को भी क्या मंजूर था अब उनके बच्चे को देखने वाला कोई नहीं है।
पुलिस वालों ने उनके परिवाजनों को बताया तो दोनों के परिवार वाले बहुत खुश हैं और अब बच्चे को भी अपने साथ रखने को राज़ी नहीं हैं। इस सबमें उस नवजात बच्चे की क्या गलती है? उसकी तो पूरी ज़िन्दगी उजड़ गई, जन्म लेते ही मां-पिता का साया हमेशा के लिए उठ गया। नियति के खेल में उस बच्चे ने अपना सब कुछ गवां दिया।
रिया से सारी कहानी सुनकर बहुत बुरा लगा कि कैसे परिवार वाले अपने ही बच्चों को पराया कर देते हैं। प्यार करना कोई अपराध तो नहीं है। अपनी शान को बनाए रखने के लिए खुद ही अपने बच्चों के दुश्मन बन जाते हैं।
मेरा मानना है कि अपने बच्चों के साथ हमेशा दोस्त की तरह रहो ताकि वो आपसे अपनी हर बात कर सकें। और अपने बच्चों पर विश्वास रखो। एक समय ऐसा भी आता है जब बच्चे किशोर होते हैं, तब उस समय माता-पिता ही उन्हें समझा सकते हैं। उन्हें बांधकर मत रखिए, उन पर अपनी नज़र रखोे लेकिन अपने उसूलों में उन्हें कैद मत करो। आप अपने बच्चों के लिए दोस्त बनिए दुश्मन नहीं।
आप सब का क्या कहना है इस बारे में??? अपने विचार भी व्यक्त करें।
मूल चित्र : Canva
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