कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

दोस्ती का बंधन – होते हैं एक और एक ग्यारह

आपने सुना तो होगा कि एक और एक ग्यारह होते हैं, जब खुद से काम न बने, तो किसी और के सहयोग से आगे बढ़ा जा सकता है, बस यही प्रस्तुत करती है ये ख़ूबसूरत कहानी। 

आपने सुना तो होगा कि एक और एक ग्यारह होते हैं, जब खुद से काम न बने, तो किसी और के सहयोग से आगे बढ़ा जा सकता है, बस यही प्रस्तुत करती है ये ख़ूबसूरत कहानी। 

एक गांव में ऋतु और सुगंधा दो सहेलियां रहती थीं। दोनों के घर परिवार बहुत गरीब थे। दोनों पक्की सहेलियां थी और जैसे तैसे करके उन्होंने दसवीं की पढ़ाई पूरी की थी। ऋतु सिलाई का काम जानती थी। काम करके कुछ पैसे मिल जाते थे। वह अपने माता-पिता की सहायता करती थी। सुगंधा भी पास में ही रहती थी और वह कढ़ाई का काम करती। रेशम के धागों से रुमाल बनाती और किसी के कपड़ों पर, चादरों पर कढ़ाई करती। वह भी अपने माता पिता की सहायता के लिए लगी रहती।

एक दिन ऋतु के पिता बहुत बीमार हो गए। डॉक्टरों ने बहुत बड़ी फीस लिखकर उनके सामने रख दी। गरीबी हालात अब कैसे फीस चुकाई जाए, कैसे इलाज कराया जाए? यह सोचकर मां बेटी दोनों परेशान हुआ करती थीं। थोड़ा बहुत पैसा आता पर वह घर के कामकाज में ही लग जाता था।

ऋतु को परेशान देखकर सुगंधा ने कहा, “क्या हुआ ऋतु? तेरे बाबा अभी सही नहीं हुए?”

ऋतु ने अपना दिल का हाल उसे बता दिया, “नहीं सुगंधा अभी नहीं बहुत रूपये की जरूरत है।”

सुगंधा ने कहा, ” मुझे थोड़े से पैसे आज ही मिले हैं, तू यह रख ले। कुछ दिन बाद मुझे दे देना।”

ऋतु ने उसे गले लगा लिया, “शुक्रिया सुगंधा तू नहीं जानती मेरे लिए ये रूपये का सहारा बहुत बड़ा है।”

“मैं और तू अलग नहीं हैं”, ऋतु और ज़ोर से गले लग गयी।

थोड़े दिन के बाद फिर सुगंधा ने थोड़े पैसों का इंतजाम करके ऋतु को दे दिए। ऋतु कहने लगी ,”सुगंधा मैं कब तक तुझसे यह लेती रहूंगी? अब तो बाबा भी काम पर नहीं आ सकते। ऐसा कैसे चलेगा?”

सुगंधा ने कहा,”ऋतु, तू सिलाई का काम जानती है और मैं कढ़ाई का। तू मुझे और मैं तुझे एक दूसरे का काम सिखा देते हैं और मिलकर कुछ नया करते हैं, जिससे कमाई भी आसान हो जाएगी।”

ऋतु को सुझाव अच्छा लगा और उसने सुगंधा को अपनी सिलाई सिखाने का फैसला किया। सुगंधा ने भी कढ़ाई के बहुत तरीके उसको सिखाए। दोनों अपने काम में बहुत निपुण थीं, इसलिए जल्दी ही एक दूसरे का काम भी जल्दी सीख गयीं और मिलकर घर-घर जाकर उन्होंने अपने लिए काम मांगा।

किसी ना किसी ने छोटा-मोटा काम पकड़ा दिया। दोनों मिलकर सिलाई कढ़ाई करतीं। उससे उनको रोजगार भी मिल गया। पहले अकेले इतना काम नहीं मिलता था। कढ़ाई किये कुर्ती, सलवार, कपड़े सब बनवाने लगे और जो पैसे आए उससे उन्होंने कुछ नए कपड़े खरीद के और कुर्तियां बनाईं।

पास में एक शहर था। वहाँ सावन का मेला लग रहा था। चार कुर्तियां ही बन पाई थीं, दो दुप्पटे कढ़ाई करे हुए बने। चार घाघरा बनाये थे। दोनों ने शहर जाकर मेले में उनको दुगने दामों में बेच दिया। क्योंकि काम अच्छा था और शहर के लोग भी आए हुए थे इसलिए सब बिक गया। शहर के लोगों को कम दामों में कुर्तियां मिल गयीं और सुगंधा और ऋतु के लिए वह पैसा भी बहुत था। गाँव मे इसका आधा ही मिलता था। इससे उनका हौसला और बढ़ गया।

कुछ दिन के बाद जो शहर की महिलाएं कुर्तियां खरीद ले गयी थीं, वे गाँव आयीं और उन्होंने ऋतु और सुगंधा के घर का पता लगाया। वह नारी संस्थान ग्रामोद्योग की महिलाएं थी। उन्होंने ऋतु और सुगंधा से अपने लिए काम करने के लिए कहा और बहुत रूपये देने की बात कही। और कुछ कपड़े देखे गए और उन्हें तैयार करने को बोला।

ऋतु और सुगंधा ने दुगनी मेहनत के साथ वह कम समय में पूरा किया और वह काम उन लोगों को बहुत पसंद आया। उससे उन दोनों की बहुत बड़ी आमदनी हुई और धीरे-धीरे वह शहर शहर प्रदर्शनी लगाने लगीं। प्रदर्शनी में उनका काम बहुत पसंद किया गया।

धीरे-धीरे उनके घर के हालात सुधर गए। ऋतु और सुगंधा, दोनों ने मिलकर एक और एक ग्यारह होते हैं, यह साबित कर दिया। सही कहा है, एक से दो भले!

मूल चित्र : Canva

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

28 Posts | 176,237 Views
All Categories