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ठीक ही कहा शेखर ने नीलिमा से कि यही हमारे समाज की विडंबना है कि दुःख में अपना सहारा खुद ही बनना पड़ता है और जब मुसीबत की घड़ी गुज़र गयी न फिर काहे का गम?
नीलिमा शहर की भीड़-भाड़, वाहनों की आवा-जाही को पार करते हुए ऑफिस पहुंचती है। वैसे ही सहायक अधिकारी द्वारा उसे काम के सिलसिले में चर्चा करने हेतु बुला लिया जाता है। कुछ सहमी सी, सकुचायी सी वह कैबिन में जाती है। जानते हैं, उस अधिकारी का नाम रहता है, शेखर। शेखर ने उसे हिंदी राजभाषा कार्यशाला आयोजित करने की योजना बनाने हेतु बुलाया होता है, उसी से संबंधित इमला लिखवाते हैं और पूरी कार्यसूची तैयार करने हेतु निर्देशित करते हैं।
शेखर नीलिमा को देखते हुए कहता है, “नीलिमा जी आज कुछ गुमसुम हैं आप, घर पर सब ठीक तो है न? रोज़ आप बिल्कुल क्रियाशील एवं हंसमुख रहती हैं और आपके कार्यों में भी तेजी रहती है। कोई वैसी परेशानी हो, तो बेझिझक साझा कीजिएगा, हमारे साथ या ऑफीस स्टाफ के साथ, आखिर हम भी एक ही परिवार के सदस्य जो ठहरे।”
इधर नीलिमा आज कुछ गुमसुम थी, वह एक असामान्य बेटे वंश की मॉं थी। वह बधिर था और उसका उपचार भी चल रहा था। आज सुबह नीलिमा जब ऑफिस आने के लिए निकली तो वंश ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। वह बोल तो पाता नहीं था और ना ही उसे सुनाई देता। अखिल, नीलिमा के पतिदेव, वंश की देखभाल करते-करते थक जाता।
जी हॉं, दोस्तों विशेष बच्चे की देखभाल करना बहुत ही कठिन कार्य है। नीलिमा की जॉब आर्थिक रूप से अच्छी होने के कारण वह अपनी जॉब करती और अखिल वंश की देखभाल के साथ ही साथ घर से ही कुछ लेखन कार्य करता। चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही वंश की देखभाल की जा रही थी, उसकी दवाईयों का खर्च भी नीलिमा ही वहन कर रही थी। दोनों सोचते कि उनका वंश पूरी तरह से ठीक हो जाए, सो वे पूरी कोशिश कर रहे थे। वंश की परवरिश ठीक से हो, इसलिये उन्होने दूसरे बच्चे के जन्म के बारे में भी विचार करना मुनासिब नहीं समझा।
पति-पत्नी के सामंजस्य से ही गृहस्थी चल रही थी, लेकिन उस दिन वंश की परेशानी अखिल को समझ में नहीं आने के कारण उसने वंश बहुत मारा। सो नीलिमा को ऑफिस में भी मन-मारकर ही काम करना पड़ा।
वंश मासूम सा, बताईए उसकी क्या गलती? नीलिमा के आने के बाद अखिल को अफसोस होता है कि आज गुस्से में मैंने उसे मार दिया, जबकि उसका कोई भी कसूर था नहीं। नीलिमा वंश से प्यार और स्नेह से पूछती है, “मेरे बेटे को भूख लगी है न? चल मैं आज तुझे अपने हाथों से खिलाती हूँ।” आखिर मॉं को बच्चे प्यारे होते ही हैं, चाहे वे कैसे भी हों। वो तो नीलिमा को मजबूरी वश जॉब करनी पड़ती। कहॉं-कहॉं नहीं ले गयी वो वंश को, जहॉं-जहॉं ऐसे बच्चों के उपचार की सुविधा उपलब्ध थी। रात को भी पति-पत्नी बारी-बारी से उसके लिए जगते और देखभाल करते, घर में कोई और था ही नहीं संभालने को और ऐसे विशेष बच्चों की देखभाल करने के लिए कोई आया तैयार होती नहीं।
फिर दूसरे दिन नीलिमा ऑफिस जाती है। शेखर उसे हिंदी राजभाषा कार्यशाला हेतु दिल्ली जाने के लिये निर्देशित करते हैं, परंतु वह कुछ बोल नहीं पाती। नीलिमा मन ही मन सोच रही कि वंश अभी कल ही रो रहा था, तो वह इस कार्य के लिए अकेले अखिल पर जिम्मेदारी सौंप कर कैसे जाए? इतने में नीलिमा की साथी सहेली सीमा, शेखर को नीलिमा की पारिवारिक स्थिति से अवगत कराती है।
फिर शेखर नीलिमा को केबिन में बुलाते हैं, हाल-चाल पूछते हैं और कहते हैं, “नीलिमा जी मैंने आपसे उस दिन भी कहा था कि हम एक परिवार हैं, जो भी समस्या हो बताइयेगा, क्योंकि आपके रहन-सहन से परेशानी बिल्कूल नहीं झलकती, जब तक बताएंगी नहीं, हमें मालूम कैसे हो पाएगा?”
नीलिमा ने कहा, “यह मेरी व्यक्तिगत परेशानी है महोदय और फिर ऑफिस का कार्य तो करना ही होगा न?”
फिर शेखर बताते हैं कि उनकी बेटी भी जन्म से ही बधिर थी और उनकी पत्नी रमा का उसी समय देहांत हो गया, “मैं हैरान-परेशान सा कि इस बच्ची की परवरिश मैं अकेला कैसे कर पाऊंगा? लेकिन वो कहते हैं न कि मुसीबत और परेशानी में एक राह हमेशा खुली रहती है, सो उसी चिकित्सालय में पता चला कि विशेष बच्चों की देखभाल हेतु जागरूकता अभियान के तहत बधिरों के लिए स्कूल भी चलाये जाते हैं और साथ ही पूर्ण देखभाल भी की जाती है। फिर क्या! मैंने अपनी बेटी का नाम रखा राशि और नीलिमा, आपको यह जानकर खुशी होगी कि राशि थोड़ा बहुत बाेल भी लेती है।”
यह जानने के बाद नीलिमा एकदम आश्चर्य से बोली, “शेखर जी आपको भी देखकर लगता नहीं कि इतने दुःख हैं आपकी ज़िन्दगी में, इन सब के बाद भी कैसे ऑफिस संचालन कर लेते हैं आप?”
“जी हां नीलिमा जी, यही हमारे समाज की विडंबना है कि दुःख में अपना सहारा खुद ही बनना पड़ता है और जब मुसीबत की घड़ी गुजर गयी न फिर काहे का गम? मैं कल ही आपके पति अखिल जी से बात करता हूं। हम वंश का भी वहां दाखिला करवाएंगे और मुझे पूर्ण यकीन है कि वंश भी वहां पढ़ेगा-लिखेगा तो तकलीफ से ध्यान परिवर्तित होगा और धीरे-धीरे ही सही, ठीक होगा वंश।”
“सच में महोदय, दुनिया में अभी आप जैसे लोग भी हैं, मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मानो शरीर में नई जागृति आ गई हो। अब मैं अपनी जॉब और वंश की परवरिश और बेहतर तरीके से कर पाऊंगी महोदय।”
जी हां दोस्तों, नीलिमा और अखिल को तो एक नई जागृति की दिशा मिल गई और आप? आप इस दिशा में पहल कब करेंगे। सोचियेगा ज़रूर।
मूल चित्र : Canva
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