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जी मुझे इंटरनेट और फेसबुक पसंद हैं, और आपको?

सोचिये, अगर आज मैं आपसे कहूं कि अब से आपके पास कोई इंटरनेट-फेसबुक-व्हाट्सप्प, इत्यादि नहीं होंगे, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी और क्यों? 

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सोचिये, अगर आज मैं आपसे कहूं कि अब से आपके पास कोई इंटरनेट-फेसबुक-व्हाट्सप्प, इत्यादि नहीं होंगे, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी और क्यों? 

फ़ोन और बढ़ते इन्टरनेट के उपयोग या दुरूपयोग को मैं नहीं नकारती लेकिन ये भी कहना बेमानी नहीं होगा कि  हमारे रोज़मर्रा के बहुत से काम केवल फ़ोन से हो जाया करते हैं और ये हमें बहुत सुविधाजनक लगता है। 

मैं सिक्के के दुसरे पहलु को नहीं नकार रही हूँ लेकिन इस बात से भी मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि मोबाइल ने हमें नयी दिशा दी है। सपने देखने का हक दिया है, अपने चोले से बाहर निकल खुद को पहचाने का सबक दिया है। 

एक रिसर्च के हिसाब से भारत में सबसे ज़्यादा व्हाट्स अप चलाने वाले लोग हैं। और हो भी क्यूँ ना, इतना काम जो आसान हो गया है सोशल मीडिया से। देश भर में चल रहे विविध मुद्दे और प्रसंगों, चाहे वो राजनीतिक हो या सामाजिक, जनता तक बहुत आसान तरीके से पहुँच रहे हैं। उनकी प्रतिक्रियाएं कितने ज्वलंत मुद्दों को मुकाम तक ले गयी हैं। 

सोशल मीडिया पर होने वाले बवाल कहीं ना कहीं बहरे कानों पर भी पड़ने लगे हैं। जनता का आक्रोश, प्यार, सम्मान, गुस्सा, सब कुछ सरेआम है। सड़क पर चलता कोई गुंडा किसी लड़की को एकाएक छेड़ने से डरने लगा है कि कहीं उसका कोई विडियो ना बना ले और उसे वायरल ना कर दे। 

कितने लोगों को चंद्रयान एक के बारे में जानकारी थी? होगी भी तो उतनी नहीं जितनी मंगल यान के बारे में होगी। कारण? सोशल मीडिया पर उसका छा जाना और देश के हर व्यक्ति का उससे आसानी से जुड़ जाना। ये मिशन पूरे देश का मिशन बन गया। जीत भी साथ मानायी और हार में भी एक दुसरे का संबल बने। 

सोशल मीडिया ने कितने छुपे हीरों को रातों-रात चमका दिया और कितनों की सच्चाई सामने ला दी। 

चलिए, हो सकता है मैं देश जितने बड़े स्तर पर उतना ठीक तरीके से नहीं बता पा रही हूँ, पर मैंने खुद अपने जीवन में, सोशल मीडिया से बहुत कुछ सीखा और बहुत कुछ पाया है। और कहीं ना कहीं आप भी इसे स्वीकारते होंगे। 

सबसे पहले तो अपनी पहचान। शब्द और विचार डायरी के पन्नो में कई सालों से कैद थे, लेकिन ये इन्टरनेट ही है जिसने उन्हें आप सब के समक्ष लिखने का साहस दिया। कितने प्रतिभावान लोगों से मिली हूँ मैं इस इन्टरनेट नामक मंच के ज़रिये। 

फेसबुक की बदौलत हम कॉलेज के १० साल के बैच के सभी दोस्तों से मिल पाए और सब यादें जी पाए, एक बार फिर से।  

पहले, अगर कुछ पूछना है, कुछ सीखना है, तो परिवार, दोस्त, पड़ोसी, सहपाठी, बस इन्ही से कुछ सीखा या पूछा  जा सकता था। लेकिन फेसबुक, व्हाट्स अप, इंस्टाग्राम की इस निराली दुनिया में देश-विदेश के लोगों से जुड़कर नए हुनर सिखाये हैं। 

दूसरों से मिलवाने के अलावा इसने मुझे खुद से भी मिलवाया है। अपनी सेहत को लेकर जागरूक होना, मैंने फेसबुक से ही सीखा है। काम करने के साथ और अपने परिवार का ख्याल रखने के साथ-साथ, महिलाएं कितने निपुण तरीके से अपनी सेहत का भी ख्याल रखती हैं, मैंने सोशल मीडिया के ज़रिये अलग-अलग महिलाओं से मिलके जाना। उनकी कहानियां मुझे प्रभावित करती हैं। 

खुद को कैद कर लेना, घर संसार में झोंक देना ही ज़िन्दगी नहीं है। घर बैठे आमदनी लाने का ज़रिया बना है ये मीडिया महिलाओं के लिए। गृहिणियों के लिए तो है ही, प्रोफेशनल महिलाएं और पुरुष भी अपने बिज़नेस और स्टार्ट अप के लिए सोशल मीडिया को सबसे बड़ा मंच मानते हैं। 

ऑनलाइन शौपिंग ने कितनों की मुश्किलें आसान कर दी है। घर  बैठे किसी अपने के चेहरे पर मुस्कान ला देना, ऑनलाइन प्लेटफार्म से ही मुमकिन हो पाया है। गर्भावस्था में एक बटन पर सारी परेशानियों का हल दे देता है ये फेसबुक और इसके द्वारा चल रहे विभिन्न समूह। एक माँ दूसरी माँ से कितना कुछ सीख जाती है, अपने मन की बात कह पाती है। 

बस यही सब मुझे इसकी ओर आकर्षित किये हुए है।  ये जुड़ाव, ये बंधन, ये सपोर्ट सिस्टम के रूप में बन खड़ा हुआ है। 

पर हाँ ! इसके नुक्सान से भी हमें बचना आना चाहिये। अपना समय कितना देना है और किस चीज़ के लिए देना है ये हमें भली भांति पता होना चाहिए। बच्चों के सामने भी सोच समझ कर इसका प्रयोग करना चाहिए। ज़रूरत और लत के बीच का फासला बने रहना चाहिए। 

और वैसे भी बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं कि ‘अति’ हर विषय में बुरी है। 

सबसे ज़रूरी बात, आप के और हमारे बीच की डोर भी तो इसी से जुड़ी है!

है कि नहीं?

इसलिए मुझे अच्छा लगता है इन्टरनेट। 

मूल चित्र : Canva

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Shweta Vyas

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