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अपने स्तर पर जितना दबाव हम बना सकते हैं, बनाएं, ताकि अपराधी ऐसी घिनौनी हरकत को अंजाम देने के पहले थर-थर कांपने लग जाए कि अब उसकी दर्दनाक मौत निश्चित है।
विधायक कुलदीप सेंगर को उन्नाव दुष्कर्म मामले में दिल्ली कोर्ट के द्वारा दोषी ठहराया गया है। उसे 18 दिसंबर, 2019 को सजा सुनाई जा सकती है। तीस हजारी कोर्ट के जज धर्मेश शर्मा ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि पीड़िता नाबालिक थी, उसकी गवाही सही और बेदाग थी। सेंगर ने ना केवल पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया, बल्कि वह पीड़िता के अपहरण, आपराधिक षड्यंत्र और पीड़िता के परिवार जनों को झूठे केस में फसाने का भी दोषी पाया गया है।
क्यूंकि पीड़िता नाबालिग थी इसलिए इस केस में पॉक्सो एक्ट लगाया गया है। कयास लगाया जा रहा है कि सेंगर को उम्र कैद हो सकती है।
भाजपा का कद्दावर नेता होने के कारण क्या उसे सजा में रियायत दी जा सकती है, जबकि यह वारदात किसी सभ्य समाज में एक बदनुमा दाग की तरह है। कहाँ एक तरफ तो देश में बड़ी-बड़ी योजनाएं बन रही हैं, शिक्षा, रोज़गार स्वास्थ्य, खेल, पुरस्कार, आर्थिक सहायता और जाने क्या-क्या। मगर मुझे यह बताइए, क्या यह सारी योजनाएं धरी की धरी नहीं रह जाएंगी यदि बेटियां सुरक्षित ही नहीं रहेंगी।
काफी समय से यह बात बहस का विषय बनी हुई है कि रेप के आरोपी की सज़ा क्या होनी चाहिए? जब लड़की को घेरकर, क्रूरता से मारा गया हो, कई साल तक उसका शोषण होता रहा हो, शादी का प्रलोभन दिया गया हो, ऐसे में कोई भी सज़ा कम ही लगती है।
जिंदा जला देने वाले अपराधी को क्या केवल उम्र कैद देने से दंड पूरा हो जाएगा? क्या वह जेल के अंदर सरकार का दामाद बनकर नहीं बैठ जाएगा? अपनी पावर का इस्तेमाल नहीं करेगा?
आपको बता दें कि सेंगर ने 2017 में पीड़िता को अगवा कर, उसके दुष्कर्म किया था। भाजपा ने सेंगर को पार्टी से तभी निकाल दिया। लेकिन सवाल ये है कि क्या केवल इतना काफी होता है? महज़ खाना पूर्ति के बिना दंड दिये, उसको खुला छोड़ देने का नतीजा आज उसके मां-बाप भुगत रहे हैं।
हमारे देश की रक्षा करने और सेवा करने की कसम खाने वाले तथाकथित नेता अपने पावर का उपयोग मासूम बच्चियों की इज्जत लूट कर करते हैं।
अपहरण, दुष्कर्म फिर हत्या के आरोपी हमारे देश के प्रतिनिधि हैं, जिन्हें हमने पूर्ण विवेक से चुना है। आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे नेताओं में 10% ऐसे ही गुंडे बदमाश भरे हुए हैं और यह हमारे प्रतिनिधि हमारे वोटों के द्वारा ही सत्ता मैं बैठे हैं।
इतना ही नहीं, पीड़ित के परिजन पर कई झूठे केस दर्ज कराए गए, उसे तोड़ने और सबक सीखने को मजबूर किया गया। विधायक के भाई के शिकायत पर लड़की के को चाचा जेल में डाल दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने बाल यौन अपराध निरोधक (पॉक्सो) अदालतों के गठन में देरी को लेकर राज्य सरकार के रवैए पर नाराज़गी जताई। जबकि यह केस पॉक्सो के अंतर्गत आता है, फिर भी इसके प्रावधानों को ठीक तरह से लागू नहीं किया गया।
पीड़ित के पास जाकर बयान लेने के बजाय उसे कई बार जांच एजेंसी के दफ्तर बुलाया गया। ऐसी ही वजह से न्याय में देरी हुई और पीड़िता असुरक्षित हो गयीं।
आजकल हमारे देश की सामाजिक स्तिथि देखते हुए मेरा सभी लोगों से निवेदन है कि सख्त विरोध प्रदर्शन करके उम्र कैद को फांसी की सजा में तब्दील करें। ऐसे केस में गुनहगार को कोई और सज़ा देना का मतलब ही नहीं है। मेरी अपील है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट इस सज़ा को संज्ञान में लेकर तुरंत सख़्त से सख़्त, चाहे तो फाँसी की सज़ा सुनाए।
मैं सभी से आवाहन करना चाहूंगी, अपने-अपने स्तर पर जितना दबाव हम बना सकते हैं, बनाएं, ताकि अपराधी ऐसी घिनौनी हरकत को अंजाम देने के पहले थर-थर कांपने लग जाए कि अब उसकी दर्दनाक मौत निश्चित है।
मूल चित्र : Canva
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