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अपनी प्रदर्शनकारी बेटी को एक माँ का खुला पत्र

मैं एक अभिभावक हूँ और मेरी बेटी अभी व्यस्क नहीं है, ये खुला पत्र मैंने खुद को और अपनी बेटी को उन तमाम युवाओं खासकर युवा महिलाओं और उनके अभिभावकों की जगह रख कर लिखा है।

मैं एक अभिभावक हूँ और मेरी बेटी अभी व्यस्क नहीं है, ये खुला पत्र मैंने खुद को और अपनी बेटी को उन युवाओं, खासकर युवा महिलाओं और उनके अभिभावकों की जगह रख कर लिखा है।

                                   19/12/2019
दिल्ली

प्यारी बेटी, 

मुझे आज तक लगता था कि तुम अभी भी मेरी छोटी से गुड़िया ही हो लेकिन आज जब तुम्हें सड़क पर हथियारबंद पुलिस के सामने विरोध करते देखा, तो एहसास हुआ तुम अब एक ज़िम्मेदार नागरिक हो चुकी हो। हालाँकि सौरव गांगुली ने हाल ही में जैसे अपनी 18 वर्षीय बेटी के व्यस्क अधिकारों की सार्वजनिक अवमानना की है, वैसा करने का मैं कभी सोच भी नहीं सकती, लेकिन उनकी एक अभिभावक होने के नाते बेटी के लिए चिंता को बिलकुल समझती हूँ।

मैंने हमेशा तुम्हें तुम्हारे फैसले लेने सिखाये, चाहे वो जूते का रंग हो या आइसक्रीम का फ़्लेवर, और ये तुम्हारा हक़ है मेरा कोई एहसान नहीं। लेकिन अब अपने ही देश में, अपने आस-पास जैसा माहौल देखती हूँ, आये दिन महिलाओं एवं युवा लड़कियों पर होने वाली यौनिक हिंसा देखती हूँ, तो डर जाती हूँ। 

हैदराबाद में  जो हुआ उसने मुझे झिंझोड़ दिया। एक पढ़ी-लिखी सक्षम महिला भी कैसे यौनिक हिंसा का शिकार हो जाती है, इस ख्याल ने मुझे तुम्हारी सुरक्षा के लिए और चिंतित किया। लेकिन फिर मेरी फेमिनिज़्म और सामाजिक समीकरणों की समझ मुझे ये बताती है कि इसका उपाय महिलाओं और लड़कियों को घरों में क़ैद रखना नहीं है। बल्कि जितनी ज़्यादा महिलाएँ सार्वजनिक स्थानों पर ज़्यादा होंगी, उतनी ही सभी महिलाओं की सुरक्षा बढ़ेगी। 

तुम्हें याद है कुछ वक़्त पहले जब हमने आरुषि के केस पर आधारित फिल्म देखी थी तो तुमने ही मुझसे ये पूछा था, ‘माँ यदि सब निर्दोष हैं तो आरुषि को उसके ही घर में आखिर मारा किसने?’ ये हमारी पुलिस और न्याय व्यवस्था की विफलता तो है ही पर ये हमारे समाज की भी विफलता है कि किसी महिला के साथ अपराध होने पर दोष हमेशा उसे दिया जाता है, अपराधियों और पितृसत्ता को नहीं।  

तुम्हें भी ये समझना होगा की फ़िलहाल हमारे पास ‘बेटी बचाओ’ जैसे नारे तो हैं, लेकिन वास्तविकता में तुम या मैं, या कोई भी महिला सार्वजनिक स्थानों या घरों और कॉलेजों, परिवारों और कार्यस्थलों में भी सुरक्षित नहीं है।  अब जब तक ये नहीं बदलता, हमें स्वयं ही सजग रहना होगा, और यदि कोई दूसरी महिला ऐसी किसी परिस्थिति में हो तो उसका साथ देना होगा।

मैंने कल ही एक न्यूज़ चैनल के प्रोग्राम पर जामिया मिलिया विश्वविद्यालय की छात्राओं को बोलते देखा कि कैसे उन में से कुछ के परिवार उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और उन्हें इस विरोध में हिस्सा लेने से रोक रहे हैं। वे तुम्हारी ही तरह व्यस्क हैं और उन्हें अपने फैसले लेने का पूरा हक़ है। तुम सब इस देश की बराबर नागरिक हो और इसलिए ये भी तुम्हारा लोकतान्त्रिक हक़ है कि तुम अपनी सरकार से सवाल करो। सार्वजानिक विरोध करो।

लेकिन हमारे समाज में अभी भी सुरक्षित और अहिंसात्मक विरोध कैसे किया जाए, इस के बारे में जानकारी और जागरूकता का अभाव है, जिसके कारण अक्सर ये विरोध हिंसक होने लगे हैं और अनेक छात्र एवं नागरिक अपनी जान तक गँवा चुके हैं। आशा करती हूँ, तुम जिस भी विरोध का हिस्सा बनोगी, वहां विरोध को शांतिपूर्ण रखने की हिमायती रहोगी और अपनी तथा अपने सहयोगियों की सुरक्षा, तथा सार्वजानिक सम्पति का भी ख्याल करोगी।

हम एक लोकतंत्र में रहते हैं और मुझे गर्व है कि मैंने तुम्हें इन्हीं लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ बड़ा किया है जिसकी बदौलत तुम ने हमेशा ही अपने विचार दृढ़ता और स्पष्टता से रखना सीखा है। लेकिन, ये अजीब दौर है।आंदोलनों और विरोधों में सम्मिलित विद्यार्थियों को कैसी पुलिस बर्बरता का सामना करना पड़ रहा है वो मुझे डराता है, और फिर तुम्हारी दलीलें याद आती हैं – “सोचो माँ, अगर भगत सिंह अपनी माँ के ऐसे ही किसी डर के कारण रूक जाते? या सोचो यदि वो जर्मन परिवार ऐन फ्रैंक और उसके परिवार को शरण देने से डर जाता!” तुम्हारा मनुष्यता में विश्वास मेरे अनुभवों की कड़वाहट पर भारी पड़ जाता है और मैं तुम्हें भारी मन से विरोध प्रदर्शन के लिए जाने देती हूँ।

चाहूंगी तुम जब भी किसी विरोध में जाओ तो ये याद रखो कि तुम्हें हिंसक नहीं होना है,  तुम एक कलम की सिपाही की बेटी हो इसलिए अपनी भाषा, अपने व्यव्हार में सविनय अवज्ञा करते हुए, तुम्हें इस देश के और अपनी परवरिश के मूल्यों को बचाये रखना होगा।

फ़ैज़ साहेब को याद रखना-

“बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है”

तुम्हारी, 
माँ

नोट: मैं एक अभिभावक हूँ और मेरी बेटी अभी व्यस्क नहीं है, ये खुला पत्र मैंने खुद को और अपनी बेटी को उन तमाम युवाओं खासकर युवा महिलाओं और उनके अभिभावकों की जगह रख कर लिखा है।

मूल चित्र : AmarUjala/YouTube

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Pooja Priyamvada

Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness read more...

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