कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

देखा है तेरी आँखों में प्यार ही प्यार बेशुमार

सही ही कहा है कि प्यार और सही समय पर थोड़ा सा झुकना, सब बदल देता है। जहां गुस्सा बातें खराब करता है, वहीं दूसरी ओर प्यार सब मनवा भी लेता है। 

सही ही कहा है कि प्यार और सही समय पर थोड़ा सा झुकना, सब बदल देता है। जहां गुस्सा बातें खराब करता है, वहीं दूसरी ओर प्यार सब मनवा भी लेता है। 

माही की शादी रवि से हुए दस दिन ही हुए थे कि बराबर में वर्मा जी के बेटे की सगाई में जाना था। माही गहरे कॉफी रंग की सुनहरे किनारी की साड़ी पहन कर आई तो उसकी सास माया ने तुरंत बोल दिया, “ये क्या माही बेटा! तुम अभी नयी दुल्हन हो। ये रंग नहीं पहन कर जाना, जाओ लाल, हरी या मेहरून साड़ी बदल आओ।”

माही के चेहरे का रंग उड़ गया। उसने तो क्या क्या सोचा था, कि सब तारीफों के पुल बाँधेगे। एक नज़र रवि पर गयी कि शायद वो कुछ जवाब दे कि ‘माही पर खिल रही है ये साड़ी, बदलने की क्या ज़रुरत?’ पर रवि ने कुछ नहीं कहा। वो साड़ी चली तो गयी पर गुस्से से मुड खराब हो गया। मेचिंग नेलपालिश, गले का सेट, चूड़ियां सब को मैच करने में कितना समय लग गया था और अब दोबारा ये सब बदलना।

तभी रवि ने गले लगाकर कहा, “परी लग रही हो! पर माँँ ये रंग कम पसंद करती है। उन्हें अपनी बहु सबसे सुंदर जो दिखानी है। कोई नहीं, माँ का मन रखने को पहन लो और वह प्यार के आगे गुस्सा भूल गयी।

सगाई में सबसे अच्छे से मिल कर आ गयी। आते ही सासु माँ खुश हो कर बता रहीं थी कि ‘सब माही की तारिफ कर रहे थे। लाल साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी। अच्छा है वो काली सी साड़ी नहीं पहनी।’ बात आई गयी हो गयी।

एक दिन सब डिनर पर जा रहे थे। माही हरी साड़ी पर हरी बिंदी लगा आई। सासु माँ ने तुरंत कहा, “माही हरी बिंदी नहीं लाल लगा लो। लाल या मेहरुन ही अच्छी लगती है।” आज तो माही ने कह दिया, “मम्मी जी, ये ही फैशन है, मैचिंग है।” पर सासु माँ ने अपने पर्स से लाल बिंदी निकाल कर माही को दे दी।

रवि ने इशारे से अपने कानों पर हाथ रख लिया और माफी माँग ली लेकिन जल्दी से हाथ हटा भी दिये ताकि कोई देख ना ले। माही को बुरा लगा। मन मे सोचा कि मुझे सारी कहने की बजाय क्या मम्मी जी को रवि नहीं समझा सकते? पर वह चुप रही। कभी मम्मी आर्टिफिशियल हार निकलवा देती और सोने का पहना देती।

रवि को माही ने ये बात बतायी तो रवि ने एक बात कह दी, “अरे माही मम्मी थोड़े पुराने ख्याल की हैं। कोई बात नहीं बदलने को कह दिया तो।”

माही समझ गयी कोई फायदा नहीं है कहने का। माही की बातों का कभी कभी रवि माँ को समझा भी देता, “माँ  माही के परिवार आज़ाद ख्यालों का रहा है। जो माही करे करने दिया करो।” तो माँँ कहती, “ले भला! मै क्यों मना करूँगी? नयी दुल्हन पर चटक रंग ही जचते हैं। इसलिये कह दिया।”

माही हसँमुख थी। सबको खुश रखती थी। उसे खाना बनाने का शौक़ था इसलिए वह रसोई में लगी रहती। नयी-नयी सब्जी, नये-नये नाश्ते बनाती, सब मेहमानों की खातिर में नाश्ते बनाकर लाइन लगा देती। मेहमान तारीफ करते हुये जाते। सास, ससुर खुशी से फूले ना समाते।

सूट पहनना मना था। बस माही गरमी हो या सर्दी, साड़ी ही पहने रहती। जब की साड़ी की आदत नहीं थी। माही का घर आजकल के जमाने का था। वहाँँ माही की बहने-भाभी जींस-सूट सब पहनते थे। सास ससुर को लगने लगा माही बहुत समझदार है, जवाब नहीं देती, सबका ध्यान रखती है, तो उनका प्यार भी माही के लिये बढ़ने लगा। सासु माँ और सब माही से बहुत ज़्यादा प्यार करने लगे थे।

एक दिन सासु माँ ने रवि से कहा, “रवि इससे तो साड़ी सभँलती नहीं, बहुत बार सही करती रहती है। हमने तो शुरू से ही साड़ी पहनी इसलिए कभी कोई परेशानी नहीं हुयी। जा माही को बाज़ार ले जा और दो-तीन घर के लिये सुट ले आ। पर बाहर जायेगी तो साड़ी पहन लेगी। माही को यकिन नहीं हो रहा था। खुशी से झूम गयी माही। सात-आठ महीने हो गये। माही के लिये घरवालों का प्यार बढ़ता रहा। रवि भी बहुत ध्यान रखता था माही का।

फिर नैनीताल जाने का प्रोग्राम बना। सब तैयार थे जाने के लिये। सासु माँ माही के पास आई और बोलीं, “माही रास्ते में सूट ही पहन लेना । यहाँ कौन से रिश्तेदार हैं हमारे!” और वे मुस्कुरा के चली गयीं। माही और रवि एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिये। चलो! सुट की थोड़ी इज़ाज़त तो मिली।

धीरे-धीरे माही के प्यार ने परिवार वालों को अपना बना लिया था। समय बदलता गया। बहु से बेटी की तरह पहनने, घुमने की छूट मिल गयी। प्यार और थोड़ा सा झुकना, सब समय बदल देता है। जहां गुस्सा बातें खराब करता है, तो प्यार सब मनवा भी लेता है।

रवि के सहयोग और प्यार ने माही को सभाँला और माही के प्यार और व्यवहार ने सबके विचारों को बदल दिया। ऐसा बहुत लड़कियों के जीवन में होता है।

समय बीतता है और ससुराल में सब एक दूसरे को समझने लगते हैं। एक से दूसरे के घर, अलग खाना-पीना, और पहने का भी ढंग अलग होता है। नये घर में समझने में दोनों पक्षों को समय लगता है। एकदम से कुछ नहीं बदलता, ना बहु की सोच, ना ससुराल वालों की। एक चुलबुल लड़की से कुछ दिन में ही दूसरे का घर संभालने की आस लगाना गलत है।

कुछ ही दिनों में प्यार और आपसी समझ से उसूल बदल जाते हैं। जो विचार शादी के समय थे, वो बदलने लगते हैं। बस एक दूसरे को समझिये।

एक लड़के का किरदार भी अहम है, क्यूंकि उसे नये घर से आई लड़की को भी समझना है और अपने परिवार को भी। प्यार और विश्वास से रिश्ते बदलते हैं, अगर ये नहीं है ज़िंदगी में तो रिश्ते टूटते हैं।

मूल चित्र : Canva 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

28 Posts | 176,035 Views
All Categories