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शाहीन भट्ट की किताब सवाल उठाती है – क्या डिप्रेशन हमारे दिखावटी समाज का आइना है?

शाहीन भट्ट की किताब आई हैव नैवेर बीन (अन)हैपिअर  उनकी अपनी जीवनी है जिसमें वे डिप्रेशन के साथ की २० साल लंबी लड़ाई की अपनी दास्तान बताती हैं।

शाहीन भट्ट की किताब आई हैव नैवेर बीन (अन)हैपिअर  उनकी अपनी जीवनी है जिसमें वे डिप्रेशन के साथ की २० साल लंबी लड़ाई की अपनी दास्तान बताती हैं।

शाहीन भट्ट प्रसिद्ध फ़िल्म दिग्दर्शक महेश भट्ट की बेटी ही नहीं एक साहसी नारी भी हैं

हाल ही में शाहीन की प्रकाशित हुई किताब I’ve never been (un)happier काफी चर्चा में है। यह किताब शाहीन के अपने डिप्रेशन के साथ की २० साल लंबी लड़ाई की दास्तान बताती है। इस किताब का विमोचन महेश भट्ट, उनकी पत्नी सोनी राजदान और तीनों बेटियां पूजा, शाहीन और आलिया ने किया। इस विमोचन कार्यक्रम में भट्ट परिवार के हर सदस्य ने शाहीन के डिप्रेशन को समझने, संभालने और इस पर हल निकालने की कोशिश के सफर को बयान किया है। यह वीडियो आपको एक भावनात्मक उतार चढ़ाव का अनुभव करवाता है। एक डिप्रेस्ड लड़की का खुद से संघर्ष अंदर तक हिला देता है।

इस किताब के बारे में जानकारी देते हुए महेश भट्ट जी ने कहा कि दुःख जब इंसान के दिल को छूता है तब साहस की ऐसी कहानियां और दास्तानें पैदा होती हैं। दुख एक बंधन की तरह काम करता है, ये लोगों को बांधे रखता है। गुरु नानकजी ने भी कहा है, ‘नानक दुखिया सब संसार’।

अपनी बेटी शाहीन के बारे में बताते हुए महेशजी भावुक हो कर कहते हैं कि जहां वो खुद को इस समाज में अनुपयुक्त यानि मिसफिट महसूस करते हैं, वहां उनकी अपनी बच्ची इस एहसास के साथ जिये, तो इसमें कोई भी नयी बात नहीं है। वो खुद उदासी के इस एहसास को लंबे अरसे तक दिल में रखे हुए हैं। जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि इस समस्या क्या जवाब है तो महेशजी अपना आपा खो बैठे और उन्होंने कहा कि इसका कोई जवाब नहीं है और हो भी नहीं सकता। डिप्रेशन सिर्फ एक मानसिक रोग नहीं है तो यह एक दिमागी केमिकल डिसऑर्डर भी है और इसे कोई साइकियाट्रिस्ट ठीक नहीं कर सकता। इसका इलाज़ मिलकर ढूंढना बेहद ज़रूरी है। साइकियाट्रिस्ट सिर्फ आपको इस समाज में फिट करना चाहेंगे और वो इस समस्या का हल नहीं है। महेशजी का गुस्सा एक पिता की बेबसी को साफ तौर पर दर्शा रहा था।

सोनी राजदान ने अपना अपराध बोध ज़ाहिर करते हुए कहा कि एक माँ होने के नाते यह जानना कि आपकी १३ साल की बच्ची के मन में आत्महत्या के विचार घर करने लगे हैं ,आपको अंदर से तोड़ देता है।

शाहीन की बड़ी बहन पूजा भट्ट ने बहुत ही बेबाक बातचीत करते हुए कहा कि बॉलीवुड की दुनिया बहुत दिखावटी है, और लोगों को इस से कोई मतलब नहीं कि भीतर कितनी हलचल है। सब लोग यह दिखाना चाहते हैं कि वो कितने खुश हैं। सोशल मीडिया ने लुक हैप्पी सिंड्रोम  यानि ‘खुश दिखिए’ सिंड्रोम से पूरी दुनिया को घेर रखा है। कोई नहीं बताना चाहता कि वो अंदर से कितना बिखरा हुआ है।

इस टिप्पणी के साथ पूजा ने एक और गहरी बात कही कि समटाइम्स जॉय बिकम्स बर्डन यानि कभी कभी ख़ुशी ही बोझ बन जाती है। पूजा भट्ट का जीवन को लेे कर रवैय्या हमको यह सोचने पर मजबुर कर देता है कि हम कितनी दोगली जिंदगी जी रहे हैं। आलिया भट्ट इस अपराध बोध से बाहर नहीं आ पा रहीं थीं कि वो अपनी बहन को ठीक से समझ ही नहीं पाईं।

इस वीडियो को देखकर लगा कि डिप्रेशन के रोगी का खुद से संघर्ष जितना पीड़ादायक है, उतनी ही यह स्थिति उसके परिवार के लिए मुश्किल है।

शाहीन की इस किताब को प्रमोट करने के लिए प्रसिद्ध पत्रकार बरखा दत्त ने उन्हें और आलिया भट्ट को अपने टीवी शो पर बुलाया जिसका नाम है वी द वीमेन। इस शो में शाहीन ने बताया कि इस बीमारी के चलते किसी दिन आपकी शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बहुत अच्छी होती है और किसी दिन इतनी कमज़ोर होती है कि आप को ख़ुद से ही कोफ्त होने लगती है। अचानक आप को लगने लगता है कि यह दुनिया आप के लिए है ही नहीं। आत्महत्या के विचार आने लगते हैं। खुद को असुरक्षित और भयभीत महसूस करने लगते हैं आप। और आप यह स्तिथि किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहते हैं।

शाहीन की बातें सुनते हुए आलिया रो पड़ीं। इस बीमारी का हल बताते हुए शाहीन कहती हैं, कभी आप के घर का कोई सदस्य आपके पास अपनी समस्या लेे कर आए तो उसे सुनें, समझें। कई बार आपकी आवाज़ को सुनने वाला कान बहुत ज़रूरी होता है। डिप्रेशन, चाहे वह स्थिति जन्य हो, चाहे आनुवंशिक हो या फिर किसी और कारण से हो, कोई सुनने वाला हो तो समस्या आधी हो जाती है।

बरखा दत्त के इस कार्यक्रम को देखने के बाद शाहीन के प्रति मन भर आता है। अपनी बीमारी को लोगों के सामने लाना और उनमें जागरूकता पैदा करने की कोशिश को मैं सलाम करती हूं। इसी तरह कुछ महीनों पहले दीपिका पादुकोण ने भी अपने डिप्रेशन को लेे कर के सोशल मीडिया पर खुलासा किया था। दीपिका पादुकोण की पहल और शाहीन भट की इस कोशिश को मैं नारी शक्ति का सही रूप मानती हूं।

मेरा मानना है कि नारी शक्ति सिर्फ वो नहीं जो कैंडल मार्च निकाले, वो भी नहीं जो धरने पर बैठे और आज़ादी के नाम पर सिर्फ मनचाहे कपड़े पहनने की आज़ादी चाहे। नारी शक्ति का एक रूप यह भी है जो अपनी कमज़ोरी को पहचानकर, उसे खुले दिल से दुनिया के सामने स्वीकार करे। अपनी कमज़ोरी स्वीकार करना बहुत साहस का काम है। इसलिए दीपिका पदुकोण और शाहीन भट्ट सच्ची नारी शक्ति का रूप हैं।

गौर तलब बात ये है कि ज़्यादातर पुरुष अभी भी अपनी मानसिक समस्या लेकर खुले तौर पर दुनिया के सामने नहीं आते। और ऐसे में शारुख खान और ऋतिक रोशन का खुल कर अपनी मानसिक समस्याओं की सबके सामने बात करना कबीले तारीफ मानना पड़ेगा। उनकी तरह बाकि सब पुरुषों को भी समझना होगा कि सिर्फ सिक्स पैक दिखानामाचो नहीं होता, अंदर बाहर से एक और सच्चा होना ही माचो होना होता है। हम जिस दिन यह फर्क हम समझ जाएंगे उस दिन हमारा समाज कई मानसिक रोगों से मुक्त हो जाएगा।

वीडियो देखते हुए एक और मुद्दा गौर करने लायक लगा। सही परवरिश पूरी पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है। जब महेश भट्ट जी खुद को उम्र के ७१ वे साल में समाज में अभी भी मिसफिट महसूस करते हैं तो उनके बच्चे खुद को इस समाज में सुरक्षित महसूस करेंगे या नहीं, ये सोचने वाली बात है।

यदि हम समाज के सिर्फ नकारात्मक पहलुओं पर गौर करेंगे और उनका ही बोझ ज़िंदगी भर ढोते रहेंगे तो सकारात्मक जीवन कैसे जी पाएंगे? हम पालक होने के नाते अगर अपने बच्चों को रोशनी और अंधेरे का सही संतुलन नहीं सीखा पाएंगे तो जल्द ही यह दुनिया एक मानसिक और शारीरिक रूप से असंतुलित जगह हो जाएगी। सोशल मीडिया से घिरी इस दुनिया में एक पालक के तौर पर हमारी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई है।

आइए अपने आनेवाली पीढ़ी को लुकिंग हैपी और फीलिंग हैप्पी  यानी ‘ख़ुशी दिखाने’ और ‘ख़ुशी महसूस करने’ के बीच का फर्क सिखाएं और एक बेहतर दुनिया बनाएं!

मूल चित्र : YouTube

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Pragati Bachhawat

I am Pragati Jitendra Bachhawat from Mumbai. Homemaker and an Indian classical vocalist. Would love to explore a new Pragati inside through words and women's web. read more...

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