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श्रृंगार को जहां कुछ लोग सौभाग्य वर्धक समझते हैं, वहीं कुछ लोग इसे सौंदर्य वर्धक भी मानते है और इतिहास इसे खुशियों का प्रतीक भी मानता है।
श्रृंगार नारी जीवन का आधार है, श्रृंगार नारी जीवन का अधिकार है, श्रृंगार नारी जीवन का सम्मान है, श्रृंगार नारी जीवन का अभिमान है।
हमारी संस्कृति में श्रृंगार करना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था, माना जाता है और माना जाता रहेगा।
चलिए, एक बार को आप इसे सौभाग्य का प्रतीक ना भी मानें, तो भी आप ये मानने से इंकार नहीं कर सकतीं कि श्रृंगार को जहां कुछ लोग सौभाग्य वर्धक समझते हैं, वहीं कई लोग इसे सौंदर्य वर्धक भी मानते है। एक औरत के लिये श्रृंगार क्या मायने रखता है, ये एक औरत से बेहतर कोई नहीं समझ सकता।
भले ही जमाना कितना बदल गया हो, कितना आगे निकल गया हो, लेकिन नारी के लिये उसका श्रृंगार आज भी उसके लिए उतना ही सम्मान जनक है जितना सदियों पहले होता था और हमेशा ही रहेगा।
सोलह-श्रृंगार आप सब ने सुना होगा और इसका मतलब तो आप सब समझ ही गये होंगे। वो सोलह-श्रृंगार कौन-कौन से हैं, ये भी आपको पता होगा फिर भी मैं एक बार बता देती हूं कि सोलह श्रृंगार कौन-कौन से हैं।
बिन्दी गजरा मांगटीका सिंदूर काजल मंगलसूत्र हार लाल रंग का जोड़ा मेंहदी बाजूबंद नथ कान के झुमके चूड़ी-कंगन कमरबंद अंगूठी पायल बिछुये
पहले के जमाने में ये सारी चीजें औरतों की प्रतिदिन की दिनचर्या में शामिल रहता थीं। लेकिन आजकल भागमभाग की दुनिया में जहां हम औरतों को घर के साथ-साथ बाहर के भी काम संभालने पड़ते हैं, तो रोज ऐसे सजना-संवरना मुमकिन नहीं हो पाता। फिर भी तीज-त्यौहार में तो हम अपने आपको सोलह श्रृंगार से सुजज्तित कर ही सकते हैं।
तो सजते रहिये, संवरते रहिये और हमेशा खिलखिलाते रहिये, क्योंकि हंसना मुस्कुराना भी किसी श्रृंगार से कम नहीं है।
इन्हीं सोलह श्रृंगार के ऊपर मैंने एक कविता की रचना की है जो कि इस प्रकार है
करके सोलह श्रृंगार, घर पिया के चली, पीछे छोड़ आयी मैं, मेरे यादों की गली।
माथे बिंदिया सजा के, मांग टीका लगा के, लाल जोड़ा पहन कर, घर पिया के चली।
नैन काजल लगा के, बाल गजरा सजा के, हार गले में पहन कर, घर पिया के चली।
मांग सिन्दूर भर के, हाथों मेंहदी रचा के, नाक नथिया पहन कर, घर पिया के चली।
चूड़ी-कंगन सजा के, बाजू-बंद लगा के, कानों झुमके पहन कर, घर पिया के चली।
बिछुओं को सजा के, कमर बंद लटका के, पांव पायल पहन कर, घर पिया के चली।
जोड़ रिश्ता नया, मन को मन से मिला के, उंगली छल्ला पहन कर, घर पिया के चली।
मूल चित्र : Canva
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