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बच्चेदानी निकालने के ऑपरेशन में क्या परेशानियां होती हैं?

बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन क्या है और इसमें क्या परेशानियां होती हैं, आइये जानते हैं एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के शब्दों में...

बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन क्या है और इसमें क्या परेशानियां होती हैं, आइये जानते हैं एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के शब्दों में…

अनुवाद : समिधा नवीन

“अगर आप चाहें तो आप अपने गर्भाशय का उपयोग कर सकते हैं – यदि आप चाहें, तो ये यह सबसे सुंदर काम है – लेकिन इस धरती पर हमारे होने का यह एकमात्र कारण नहीं है।” ~ Aisling Bea

भारत में प्रतिवर्ष 30-49 वर्ष की आयु के बीच की लगभग 3.2- 6% महिलाओं का बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन हो जाता है। गर्भाशय को हटाने के लिए सबसे आम कारण, मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव/ दर्द है (56%), जिसके बाद एक कारणफाइब्रॉएड/सिस्ट (20%) भी होता है। 

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) के अनुसार इस प्रक्रिया के लिए औसतन उम्र लगभग 34 वर्ष पाई गई जो वैश्विक रुझानों(ग्लोबल ट्रेंड्स) से काफी नीचे है। ग्लोबल ट्रेंड्स के अनुसार यह प्रक्रिया रजोनिवृत्ति के करीब की जाती है।

गर्भाशय को हटाने/हिस्टेरेक्टॉमी/बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन की जटिलताएं क्या हैं? (bachedaani nikalne ka operation me kya hota hai)

बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन (bachedani nikalne ka operation) में संभवतया एक या दोनों अंण्डाशय भी हटाने पड़ सकते हैं। वैसे यह रोगी की उम्र और डिम्बग्रंथि के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। जहां एक तरफ यह रोगी के जीवन को बचा सकता है, वहीं दूसरी और यह रजोनिवृत्ति (मीनोपॉज) की ओर जल्दी ले जा सकता है। 

यह सर्जिकल रजोनिवृत्ति के रूप में जाना जाता है लेकिन ये प्राकृतिक रजोनिवृत्ति (natural menopause) की तुलना में कहीं अधिक कष्टदायी है क्यूंकि नेचुरल मीनोपॉज में शरीर को एडजस्ट होने के लिए समय मिल जाता है। इससे एस्ट्रोजन और उससे मिलने वाली सुरक्षा ख़त्म हो जाती है।

ओवरी के बिना एक महिला को हड्डियों से संबंधित परेशानियों का खतरा अधिक हो जाता है, जिससे पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर और हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा अन्य थोड़े बहुत, लेकिन गंभीर, साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं।

अपर्याप्तता और डिप्रेशन की भावना

32 साल की महिला ममता के केस पर नज़र डालते हैं, जिनको बार-बार गर्भपात झेलना पड़ा।

4 गर्भपात होने के बाद गर्भावस्था के दौरान उनके गर्भ में, रुग्ण प्लेसेंटा (morbidly adherent placenta) पाया गया। इसका सीधा सा मतलब है कि नाल (placenta) गर्भाशय की दीवारों में गहरा जा चुकी थी। अधिकतर मामलों में डॉक्टर के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, इस तरह की नाल स्वाभाविक रूप से नहीं निकल सकती।

क्योंकि ममता को गर्भावस्था से संबंधित उच्च रक्तचाप का सामना करना पड़ रहा था, जो कि प्रसव के बाद अक्सर ठीक हो जाता है, उनका आपातकालीन सिजेरियन करना पड़ा जिससे उनका रक्तचाप एकदम बढ़ गया, और उनके मस्तिष्क क्षति (इमिनेंट ब्रेन डैमेज) के संकेत मिलने लगे।

बच्चे के प्रसव के बाद, सर्जनों ने नोट किया कि नाल गर्भाशय की दीवार से स्वाभाविक रूप से अलग नहीं हो रही थी। तब उन्होंने इसे मैन्युअली हटाने का प्रयास किया, उसमें भी अत्यधिक मात्रा में रक्तहानि की संभावना थी।

इंजेक्ट किए गए ड्रग्स काम नहीं कर रहे थे। उनके जीवन और उनके गर्भाशय को बचाने के लिए एक प्रसूति संबंधी हिस्टेरेक्टोमी (obstetric hysterectomy) का निर्णय लिया गया। उनके परिवार के सदस्यों को सूचित किया गया और इस प्रक्रिया को किया गया। उन्हें रक्त की 1 यूनिट दी गई, और अब वे सुरक्षित थी। उनके अंडाशय स्वस्थ थे, इसलिए उनको छेड़ा नहीं गया।

सर्जरी के लगभग 2 महीने बाद, उनके पति उन्हें ले कर आये। उनका बच्चा ठीक था। सर्जरी के बाद ममता शारीरिक रूप से ठीक हो गयीं थीं। हालांकि, उन्हें जल्दी से उच्च तनाव, चिंता, घबराहट, अच्छी तरह से सोने में असमर्थ या कभी-कभी, अच्छी तरह से खाने में परेशानी हो रही थी।

उनके पति ने भी कई बार उन्हें बिना किसी कारण के रोते हुए पाया। उनका वज़न भी काम होने लगा। उन्हें बिस्तर से उठने, नहाने, बालों में कंघी करने में कठिनाई होती थी। वे हमेशा उदास रहती थीं। यहां तक ​​कि बच्चे के साथ खेलना भी उनको खुश नहीं कर सका। 

अच्छी बात यह थी कि ममता को समय पर लाया गया। उनके स्त्री रोग विशेषज्ञ ने उन्हें मनोचिकित्सक के पास भेजा। उनकी समस्या अवसाद ग्रसित सामान्य चिंता(anxiety disorder with depression) का निदान किया गया। उन्हें इसके लिए दवाइयाँ दी गईं, और उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ होने में लगभग 2 सप्ताह लग गए।  

ममता में इस गंभीर अवसाद का कारण क्या था?  वह अपने गर्भाशय को खोने के कारण बेहद दुःखी थीं और इस बात का उन्हें बेहद दुःख था कि अब वे कभी दोबारा माँ नहीं बन पाएंगी। उन्हें भय था कि उनका पति और समाज सामान्य रूप से उन्हें एक सम्पूर्ण महिला नहीं समझेगा। यहां तक ​​कि इस कारण उनकी कामेच्छा भी गंभीर रूप से कम होती जा रही थी। कुछ परामर्श, कुछ दवा के साथ, वे ठीक हो गयीं।

यह एक गलत धारणा है कि गर्भाशय को हटाने से कामुकता (सेक्सुएलिटी) कम हो जाती है। हालांकि कुछ मामलों में तो ऐसा भी होता है कि अनचाहे गर्भ का डर न होने के कारण कामेच्छा वास्तव में बढ़ जाती है।

ऐसा तब होता है जब आप मानसिक स्वास्थ्य के मामलों को जल्द से जल्द पहचान लें और उनका समय रहते इलाज ले लें। इससे रोगी और उनके परिवार, दोनों को लाभ होता है। 

मूत्राशय (ब्लैडर) के साथ संबंध के कारण योनि से रिसाव होना 

एक अन्य केस में 56 वर्षीय मीना ने, जिन्होंने 5 बच्चों को जन्म दिया, 50 वर्ष की आयु से अपने गर्भाशय को योनि से बाहर निकलते पाया। जब वह 56 वर्ष की थीं, तब उनके अंदरूनी अंग सचमुच बाहर की निकल रहे थे।

उन्होंने वजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी करायी। इस विधि में नीचे से ही गर्भाशय को हटाया जाता है, पेट पर कोई चीरा नहीं लगाया जाता। सर्जरी आसान रही और वे जल्दी ही स्वस्थ हो गयीं।

एक महीने बाद उनके परिवार के सदस्य उन्हें वापस ले कर आये। उनकी योनी से लगातार पानी सा स्राव बाह रहा था जिसकी दुर्गन्ध अमोनिया की तरह लगातार थी, और अगर वह समय पर बाथरूम पहुंच भी जाती थीं, तो भी उन्हें ठीक से पेशाब करने में असमर्थता की शिकायत थी। उनका परिवार एक लम्बे समय के लिए वयस्क डायपर का खर्च उठाने में असमर्थ था, और यह जानना चाहता था कि उनको वास्तव में क्या समस्या थी।

शारीरिक परीक्षण, और एक स्वैब परीक्षण के बाद, मीना कावैसिकोवैजाइनल फिस्टुला का इलाज किया गया। आम भाषा में कहें तो मीना के मूत्राशय और योनि के बीच एक मार्ग बन गया था। जिससे मूत्राशय से योनि तक बने इस मार्ग में उसकी योनि से लगातार मूत्र का रिसाव हो रहा था।

यह उनके और उसके परिवार के लिए दुर्भाग्यपूर्ण एक असुविधा का कारण बन रहा था, जो दुर्गंध के कारण, उनके दैनिक जीवन की गतिविधियों और सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रहा था। वे निराश थीं और ऑपरेशन कराने पर पछता रहीं थी। योनि से मूत्र के रिसाव की तुलना में एक लम्बाई में बढ़ा हुआ गर्भाशय (prolapsed uterus) क्या था?

आखिरकार उन्हें एक मूत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजा गया, फिस्टुलस ट्रैक्ट का इलाज किया गया, और उन्हें अपना खुशहाल और मिलनसार जीवन वापिस मिल गया। यह भी एकसक्सेसफुल सर्जरी की ज्ञात जटिलता है। हालांकि यह निराशाजनक है, यह भी इलाज योग्य है और समय रहते इलाज से एक महिला के जीवन में काफी सुधार हो सकता है। और उनकी जीने की इच्छा और बढ़ जाती है।

सर्जिकल मेनोपॉज, अचानक होने वाले कष्टदाई लक्षणों के साथ

40 वर्षीय समांथा का जीवन बहुत अच्छा था, जैसा कि वह हमेशा चाहती थीं। एक अच्छा पति,  एक घर, 2  बच्चे, एक प्रगतिशील करियर। फिर भी वे दुःखी थीं। किसी को भी दुःख होगा यदि वे एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें गर्भाशय का टिश्यू गर्भाशय के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में मौजूद होता है, जैसे कि, अंडाशय में।

वह अपने मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द से रोती थीं, काम से छुट्टी लेतीं, स्ट्रोंग दर्द-निवारक गोलियां लेतीं। यह उनके स्त्री रोग विशेषज्ञ से नियमित उपचार लेने के बाद की स्थिति थी। 

कंज़र्वेटिव मेडिकल मैनेजमेंट भी अब उन्हें आराम नहीं पहुंचा पा रहा था। इसलिए उन्होंने गर्भाशय के साथ-साथ ही दोनों अंडाशय को भी हटाने का विकल्प चुना, क्योंकि अंडाशय में लगातार रक्त से भरे सिस्ट बन रहे थे। वे पहले से ही इन सिस्ट को हटाने के लिए कई लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करा चुकी थीं और उसके बावजूद सिस्ट बनती जा रही थीं। उनमें दर्द भी बहुत था।

तो लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से उनके गर्भाशय के साथ, उनके अंडाशय भी हटा दिए गए। वे 2 दिनों में अस्पताल से बाहर आ गयीं। अब वे स्वस्थ थीं, यहां तक ​​कि 2 सप्ताह में उन्होंने फिर से काम करना भी शुरू कर दिया। 

फिर अचानक हॉट फ्लैशेज़, पसीने, घबराहट और धड़कन के बढ़ जाने के लगातार अटैक से उसे लगता कि जैसे खुद को फ्रीजर में डाल दें। उन्हें योनि में सूखापन, संभोग के समय होने वाले दर्द, और इस दर्द के कारण कामेच्छा में कमी का अनुभव हो रहा था।

अब, जबकि यह पहले दोनों केस जितनी महत्वपूर्ण समस्या नहीं है, यह पीड़ित व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। इस से काम पर ध्यान देना मुश्किल हो सकता है, और रोगी के वैवाहिक जीवन में भी तनाव पैदा कर सकता  है। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर, समांथा ने लगभग 2 वर्षों के लिए हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) ली। उन्होंने धूम्रपान छोड़ दिया, अपनी जीवन शैली बदल दी, अधिक सोया खाया और व्यायाम किया। उन्होंने जितना संभव हो सका, गर्म भोजन और स्थानों से परहेज किया। इस थेरेपी के दौरान दवाओं की खुराक कम रखी गई थी और जब तक उनके शरीर ने इस कठोर बदलाव को एडजस्ट नहीं कर लिया, तब तक उसने खुद को पतला रखने की कोशिश की। फिर, बस थोड़े बहुत साइड इफेक्ट थे, जिसे दवाइयों से ठीक किया जा सकता था।

एस्ट्रोजेन के नुकसान के कारण हड्डियों का जल्दी कमजोर होना

50 वर्षीय अनीता की अपने गर्भाशय और अंडाशय को हटाने के 4 साल बाद, एक दिन दाहिने कूल्हे की हड्डी टूट गई। 2 साल तक लगातार ज्यादा खून बहने के कारण उनकी सर्जरी की गई थी। गर्भाशय की एक बायोप्सी से कैंसर के शुरुवाती लक्षण दिखाई दिए और इसलिए, तुरंत इलाज शुरू कर दिया गया।

वह एक दिन सीढ़ियों से फिसल गयीं और उनके कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया। उन्होंने हड्डियों के डॉक्टर को समझाया कि वह वास्तव में इतनी जोर से भी नहीं गिरी थीं कि हड्डी टूट जाए, लेकिन हड्डी टूट गयी। ऑर्थोपेडिशियन ने उनकी बोन डेंसिटी की जाँच से पता चले उनके ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज किया। यह रजोनिवृत्ति(मीनोपॉज) का ही एक साइड इफ़ेक्ट है।

एक बार कूल्हे की टूटी हड्डी सेट हो जाने के बाद, उनके डॉक्टर ने ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए उन्हें सप्लीमेंट देने शुरू किये। उन्हें कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाने, धूम्रपान और शराब छोड़ने, दैनिक व्यायाम करने और समय पर उनकी खुराक लेने की भी सलाह दी गई।

इसके बाद उन्होंने ऐसा ही किया और डेक्सा स्कैन द्वारा नियमित बोन मिनरल डेंसिटी की जाँच कराती रहीं।

बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन की ऐसी जटिलताओं को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? 

सामान्य सर्जरी और विशेष रूप से गर्भाशय को हटाने की सर्जरी के बहुत सारे दुष्प्रभाव हैं। इस विषय पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गई हैं। शल्य चिकित्सा विशेषज्ञ और संवेदनाहारी तकनीक(anesthetic technology) के साथ और बढ़िया दवाओं को नहीं भूलते हुए, अब हम बहुत कम दुष्प्रभाव देख पाते हैं।

आमतौर पर जब एक मरीज़, जो बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन (अंडाशय को हटाये या बिना हटाये) से गुज़रता है, तो उसे उपरोक्त समस्या से बचने के लिए सप्लीमेंटस और जीवन शैली में बदलाव के बारे में सलाह दी जाती है। चाहे वह अत्यधिक गर्मी लगने की समस्या हो या सूखी योनि या हृदय संबंधी समस्याएं। पूछने के लिए पर्याप्त समय लें और अपने सभी प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर प्राप्त करें। अपना शोध खुद करें। तब तक सर्जरी करवाने की हड़बड़ी न करें जब तक आपके डॉक्टर आकस्मिक सर्जरी की सलाह न दे। जितनी ज़रूरत लगे उतनी राय लें।

सबसे महत्वपूर्ण बात, सर्जरी के बाद शॉर्ट और लॉन्ग टर्म में अपना बहुत अच्छे से ख्याल रखें। परेशानी बढ़ने से पूर्व के संकेतों को समझें। लंबी अवधि में किस तरह की जीवनशैली में बदलाव की ज़रूरत है, इस पर चर्चा करें। फिर, उन परिवर्तनों को अमल में लायें। 

अंत में, मुझे जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में स्त्री रोग विशेषज्ञ, दिवंगत Professor Rachad W Te Linde  और स्त्री रोग सर्जरी पर सबसे विस्तृत सर्जिकल पाठ पुस्तकों में से एक लेखिका के विचार साझा करने की अनुमति दें –

औसतन हिस्टेरेक्टॉमी जिस आसानी से हो सकती है, वह महिला के लिए एक आशीर्वाद और अभिशाप दोनों साबित हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उचित संकेत के साथ की गयीहिस्टेरेक्टॉमी एक महिला के स्वास्थ्य को बेहतर कर सकती है, यहां तक ​​कि उसके जीवन को भी बचा सकती है।

हालांकि, स्त्री रोग के अभ्यास में, ऐसी अनगिनत महिलाओं को देखने का पर्याप्त अवसर मिलता है, जिन्हें उचित संकेत के बिना ही हिस्टेरेक्टोमी करने की सलाह दे दी जाती है…मुझे विश्वास है कि अनावश्यक हिस्टेरेक्टॉमी/बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन (bachedani nikalne ka operation) को बढ़ावा देने में सबसे बड़ा एक कारण स्त्री रोग संबंधी विकृति की अपर्याप्त जानकारी है। जो लोग पैल्विक सर्जरी कर रहे हैं, उनमें गायनोकॉलोजी पैथोलॉजी के बेहतर ज्ञान की सबसे बड़ी ज़रूरत है।” 

मूल चित्र : Canva Pro

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