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खुशनसीब हैं वो जिन्हें दो माओं का प्यार मिलता है…

मुझे कोई समस्या नहीं, मेरे लिए तो अच्छा है मुझे दो-दो मांओं का आशीर्वाद मिलेगा और तुम भी बेफिक्र रहोगी। बच्चे भी खुश रहेगें दादी-नानी का साथ पाकर।

मुझे कोई समस्या नहीं, मेरे लिए तो अच्छा है मुझे दो-दो मांओं का आशीर्वाद मिलेगा और तुम भी बेफिक्र रहोगी। बच्चे भी खुश रहेगें दादी-नानी का साथ पाकर।

“क्या हुआ कोई परेशानी है क्या?” सुमन को खामोशी से खाना खाते हुए देखकर रोहित ने पूछा।

“क्या हुआ सुमन, कुछ हुआ है क्या? मैं भी सुबह से तुम्हें परेशान देख रही हूँ।” इस बार सुमन की सास ने कहा।

“मुझे मम्मी की बहुत चिंता हो रही है, कई दिनों से उनसे बात नहीं हुई। कितनी बार रवि को कहा, एक मोबाइल दिलवा दो मगर सुनता ही नहीं, कहता है सिर्फ तुमको फोन करना होता है, मेरे पास कर लिया करो, बात करवा दूंगा।”

“तो कर लो बात!” रोहित ने कहा।

“कितनी बार फोन कर चुकी हूँ, न तो उसका न उसकी पत्नी का फोन लग रहा है। मैं क्या करुं?” सुमन रोने लगी थी। एक साल हो गया था मम्मी से मिले हुए, उनकी याद भी बहुत आ रही थी।

“आस पड़ोस का नंबर नहीं है क्या?” मांजी ने पूछा।

“नहीं मां! जब रवि ने घर बदला था मैं एक ही दिन के लिए गई थी, किसी से बात ही नहीं हो पाई थी।” सुमन ने मायूसी से कहा।

“एक काम करो तुम दोनों चले जाओ, मैं बच्चों को मैं संभाल लूंगी।” मम्मी जी ने कहा।

“जी! ठीक है हम चले जाते हैं। मैं आज ही छुट्टी के लिए अर्ज़ी दे देता हूँ।”

” नहीं! मैं चली जाऊंगी, हो सकता है मुझे वहाँ कुछ दिन रुकना पड़ जाए। आप लोग फिक्र न करिये।”

सुमन जब वहाँ पहुंची, घर में ताला लगा था। उसे लगा शायद सब बाहर घूमने गए हैं। उसने फिर से रवि का फोन मिलाया, मगर फ़ोन लगा ही नहीं। वो परेशानी से इधर-उधर चक्कर लगाने लगी, तभी बगल से कोई महिला आई और बोली, “आप शायद आंटी जी की बेटी हैं?”

“जी! आपको पता है वो लोग कहां गए हैं? ये घर भी खाली कर दिया क्या? या कहीं घूमने गए हैं?”

“नहीं, घर खाली नहीं किया है, उन लोगों के बारे में तो मुझे नहीं पता, मगर आंटी जी तो अंदर ही होंगी।”

“मगर घर में तो ताला लगा है?” सुमन हैरानी से बोली।

“वो लोग रोज़ ताला लगा देते हैं, कहते हैं कहीं चली गई तो कहाँ ढूंढेंगे?”

“मम्मी!” सुमन ने दरवाजा खटखटाया तो माँ की हल्की सी आवाज आई।

“मम्मी! आप ठीक तो हैं?” उसने फिर पूछा।

“नहीं” की आवाज आई, फिर कुछ गिरने की भी, शायद उठने की कोशिश की होगी, तो कोई चीज गिर गई होगी।

“प्लीज ताला तोड़ने के लिए कुछ ले आइये”, सुमन ने घबरा कर कहा तो वो हथौड़ा ले आईं।

ताला तोड़कर दोनों अंदर पहुंचे तो उनके तो होश ही उड़ गए, मम्मी जमीन पर पड़ी थी। एकदम हड्डी का ढांचा हो गई थी।

सुमन को देखते ही रो पड़ीं, “मेरी बच्ची मेरी बेटी आ गई” और फिर बेहोश हो गयीं। सुमन उनको हॉस्पिटल लेकर भागी, डाक्टर ने बताया, “ठीक से खाना न मिलने की वजह से वे कमज़ोर हो गई हैं और ब्लडप्रेशर भी बहुत कम है। एक-दो दिन हास्पिटल में रहने दीजिये, आराम मिल जाएगा।”

एक दिन बाद सुमन मम्मी का कुछ सामान लेने आई, दरवाजा रवि ने ही खोला था। सुमन को देखकर रवि उस पर बरस पडा़, “एक बार पूछ तो लेती। हमारे आने का इंतज़ार भी नहीं किया। हम कहीं छोड़ कर थोड़ी ही गए थे। वापस तो आते ही न? तब ले जाती। मोहल्ले में नाक कटवा दी, क्या क्या बोल रहे हैं सब।”

“रवि! माँ बेहोश हो गई थी और इतनी कमज़ोर कैसे हो गई? टाइम से खाना नहीं देते थे कि खाती नहीं थी?” सुमन तो माँ की हालत देखकर ही गुस्से में थी और ये उल्टा-पुल्टा सवाल कर रहा था, मम्मी के बारे में एक बार पूछा भी नहीं।

“हम दोनों काम करते हैं! जब मुझे टाइम मिलता है तब मैं बनाती हूँ। हमने हाथ नहीं पकड़ा है। खुद बना कर खा सकती हैं। सारा दिन तो घर में पड़ी रहती हैं, इतना भी नहीं कर सकतीं क्या?” ये रवि की पत्नी बोल रही थी और रवि आराम से खड़ा हो कर सुन रहा था। “उनकी वजह से हम कहीं छुट्टी भी प्लान नहीं कर पाते, क्या बाहर खा भी नहीं सकते?”

“उनकी तबीयत ठीक रहे तो क्यों नहीं घूम सकते वो तुम्हें रोकेंगी थोड़ी ना, मगर तुम लोग!”

“प्लीज यार! लेक्चर न दो, हमें पता है हम कैसे उनको संभालते हैं। हर वक़्त तो चिल्लाती रहती हैं। मैं इतना थक कर आता हूँ अब आराम भी न करुं? उन्हीं के पास आकर घुस जाऊँ?”

रवि बोल रहा था और सुमन को वो पल याद आ गया अगर वो मम्मी की गोद सर रख कर लेट जाती थी तो कितना लड़ाई होती, फिर बाद में कहता तेरी शादी हो जाएगी तो मैं ही मम्मी के पास रहूंगा, फिर देखना सारा प्यार मेरा। मम्मी भी उसी की साइड लेती। सच ही तो कह रहा है तू तो शादी कर के चली जाएगी, सहारा तो रवि ही बनेगा। और वो गुस्से में बाहर निकल जाती थी। अब ये कैसे बात कर रहा था।

“रवि प्लीज! डाक्टर ने कहा है वो बहुत कमज़ोर हैं, बहुत देखभाल की जरूरत है उनको।”

“मैं साफ-साफ बता रहा हूँ, मैं देखभाल नहीं कर सकता। तुम क्यों नहीं ले जाती उनको अपने साथ?”

“रवि! तुझे पता है तू क्या बोल रहा है?”

“हाँ सच तो है, तुम ले जाओ मैं पैसे भिजवाता रहूंगा उनको भी आराम हो जाएगा।”

“हाँ तो ले आओ। मुझे कोई समस्या नहीं, मेरे लिए तो अच्छा है मुझे दो-दो मांओं का आशीर्वाद मिलेगा और तुम भी बेफिक्र रहोगी। बच्चे भी खुश रहेगें दादी-नानी का साथ पाकर। और हाँ रवि से कहना पैसे भेजने की ज़रूरत नहीं है, वो मेरी भी माँ हैं। वो मेरे साथ रहेगी तो उसके पैसे मुझे नहीं चाहिए। जब मेरी माँ के साथ तुम्हें कोई समस्या नहीं है, तो तुम्हारी माँ के साथ मुझे क्या दिक्कत हो सकती है? बदनसीब है वो जो माँ के लिए टाइम नहीं निकाल सकता।”

और आज रोहित के लिए सुमन के दिल में उनकी और इज़्ज़त बढ़ गई थी।

मूल चित्र : Canva 

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