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निर्भया केस में एक माँ का अथक संघर्ष और हमारी दंड व्यवस्था का न्याय

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि, निर्भया केस ने, जो जागरूकता की मशाल जलाई, जितना लड़कियों को आन्दोलित किया, उतना और किसी केस में सम्भव नहीं हो पाया।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि, निर्भया केस ने, जो जागरूकता की मशाल जलाई, जितना लड़कियों को आन्दोलित किया, उतना और किसी केस में सम्भव नहीं हो पाया।

16 दिसंबर सन 2012 की भयानक सर्द रात में हुआ एक हादसा, जिसमें निर्भया(एक काल्प्निक नाम), एक पैरामेडिकल की छात्रा के साथ ऐसा कुछ हुआ, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इतनी बर्बरता से बलात्कार फिर मौत के घाट उतारने के लिए प्रताड़ना सहती एक लड़की जब हॉस्पीटल में अपनी माँ से घायल अवस्था में कहे, “मैं मरना नहीं चाहती” और  उसकी माँ उसे बचा ना सके। यह सोच कर भी रौंगटे खड़े  हो जाते हैं।

निर्भया तो गयी पर पीछे छोड़ गई एक बेहद मज़बूत माँ

ऐसी बात नहीं है कि ये ऐसा अपने आप में अकेला मामला है, जहां पर किसी लड़की के साथ इतना जघन्य अपराध हुआ हो, मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि, निर्भया केस ने, जो जागरूकता की मशाल जलाई, जितना लड़कियों को आन्दोलित किया, उतना और किसी केस में सम्भव नहीं हो पाया था

निर्भया केस में उनकी माँ की भूमिका

निर्भया की माँ की भूमिका बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण है, खासतौर पर ऐसी परिस्थिति में, जहां पर लगातार अपराधियों को नए-नए तरीके से युक्तियां सूझाकर, सज़ा से दूर किया जा रहा था।

इतना समय लगाया जा रहा है कि, कोई भी इंसान न्याय की गुहार लगाना तो दूर ,न्याय पाने की उम्मीद भी छोड़ देता। मगर उन्होंने जगह-जगह गुहार लगाई, सारे न्याय के दरवाजे खटखटाये। टूट गई, रोईं, पर हिम्मत नहीं हारी।

निर्भया की मां ने साबित कर दिया की मां केवल अपनी जिंदा बच्चों का जीवन ही नहीं संवारती, बल्कि अपनी जान गँवा बैठी बेटी की मौत को भी न्याय दिलाने का माद्दा रखती है।

22 जनवरी 2020, सुबह 7 बजे सज़ा

7 जनवरी को निर्भया के चारों आरोपियों को फांसी की सजा देकर मौत के घाट उतारने का निर्णय आ चुका है। चार फंदे  तैयार हो चुके हैं।

यह केवल निर्भया की मां की जीत नहीं है, यह जीत पूरी नारी जाति की है, न्याय व्यवस्था की है। सुनवाई में जिरह करने वाले वकीलों की है, यह जीत पूरी मानवता की है।

निर्भया को सच्ची श्रद्धांजलि

निर्भया को न्याय दिलाने के लिए उसकी मां का अनवरत प्रयास रंग लाया और दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई, हालांकि इस कार्य में मुट्ठी भर लोगों ने सहायता जरूर की मगर न्याय व्यवस्था का ढीलापन और अपराधियों का खुद को बचाने के लिए कई कानूनी दांवपेच को खेलना निर्भया की मां के लिए बहुत तकलीफ दायक था।

मगर देर में ही सही, निर्भया के आरोपियों को निर्भया की मां ने फांसी के तख्ते तक पहुंचा कर अपनी बेटी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है।

रेप केस में त्वरित न्याय

सबको पता है कि केवल फांसी से ही सब कुछ सामान्य नहीं हो जाता है। कईयों का मत है कि क्या फांसी रेप को रोक देगी?

मैं जानती हूं कि इसका उत्तर देना बहुत कठिन है, मगर दंड देना भी उतना ही ज़रूरी है, और मिसाल खड़ी करना और भी ज़रूरी है।

मेरे हिसाब से यदि हर किसी बलत्कार के अपराधी को फांसी की सज़ा मुकर्रर की जाए, और वह भी त्वरित प्रभाव से, तो शत-प्रतिशत संभावना बढ़ जाती है कि बलात्कार के मामलों में कमी आने की। 

दंड व्यवस्था मे बदलाव

भारतीय दंड व्यवस्था का अति लचीलापन भी बढ़ते अपराध का कारण हो सकता है। यदि दंड व्यवस्था कठोर और त्वरित हो और उसमें आरोपियों की सुरक्षा से ज़्यादा, पीड़िता को न्याय दिलाने की भावना निहित हो, तो ही यह दंड व्यवस्था पूर्ण न्याय कर पाएगी।

आप क्या सोचते इसके बारे में? अपने विचार सबके साथ ज़रूर साझा करें।

मूल चित्र : YouTube

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