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कई बार अपनी मंज़िल पर चलते-चलते कुछ हिम्मत हारने लगें यो याद रखें कि 'चल पड़े हैं लम्बे सफर पे, तो पहुँचेंगे भी, राह में मोड़ अनेक हैं, पर मंजिल तो एक है'...
कई बार अपनी मंज़िल पर चलते-चलते कुछ हिम्मत हारने लगें यो याद रखें कि ‘चल पड़े हैं लम्बे सफर पे, तो पहुँचेंगे भी, राह में मोड़ अनेक हैं, पर मंजिल तो एक है’…
चल पड़े हैं लम्बे सफर पे, तो पहुँचेंगे भी, राह में मोड़ अनेक हैं, पर मंजिल तो एक है, पक्षी सा कैद था, पिंजरे में, मन, आज निकला है, नभ में, आजादी के तिमिर में गुम होकर, कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर, खेल रहा, चंचल मन से, कैसे व्यक्त करूँ, पक्षी से, मन की चंचलता, आज मैं आज़ाद हूँ, हर ख्याल भी आज़ाद है, चल पड़े हैं लम्बे सफर पे, तो पहुँचेंगे भी!
राह में मोड़ अनेक हैं, पर मंजिल तो एक है, फिर पैदा हुई, मन में बिडम्बना, उठती एक हिलोर सी, घबरा जाता पक्षी मन का, उड़ान से, फिर मन ही उसको समझाता, पंख फैलाये पक्षी से मन के, और कहा, चल उड़, फिर चलें नील गगन में, इस पिंजरे की कैद से, चल पड़े हैं लम्बे सफर पे, तो पँहुचेंगे भी, राह में मोड़ अनेक हैं, पर मंजिल तो एक है!
मूल चित्र : Canva
Blogger [simlicity innocence in a blog ], M.Sc. [zoology ] B.Ed. [Bangalore Karnataka ] read more...
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