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आज ज़रूरत है कि माता-पिता अपने बच्चों को आवश्यक रूप से समय देते हुए उन्हें प्रारंभ से ही अच्छा-बुरा, सही-गलत इत्यादि के बारे में नैतिक शिक्षा अवश्य दें।
सरिता और सीमा दोनों बहुत अच्छी दोस्त थीं। पुराने ज़माने में प्राईवेट विद्यालय कम ही हुआ करते थे, तो माता-पिता अधिकतर सरकारी विद्यालय में ही अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाते। सरिता और सीमा हमेशा ही अपने अध्ययन की तरफ ज्यादा ध्यान देती और एक-दूसरे के घर भी समयानुसार मिलकर ही पढ़ाई भी करतीं। सीमा के माता-पिता दोनों ही नौकरी करते थे और उसके दो छोटे भाई भी थे।
सरिता के पिताजी अकेले ही नौकरी करते थे। मॉं घर के सारे काम देखती और उसकी छोटी बहन भी थी। उस समय ट्यूशन क्लास या कोचिंग की उपलब्धता कम होने के कारण स्वयं ही अध्ययन करके विद्यालय में संबंधित शिक्षक या शिक्षिका से पूछकर कठिनाई को हल किया जाता था। माता-पिता सिर्फ घर खर्च ही किसी तरह चला पाते थे।
माता-पिता बच्चों की वह धुरी होते हैं जो उनको सही-गलत का ज्ञान करातें हैं ताकि उनके बच्चे पढ़-लिखकर संस्कारी बनें। सरिता और सीमा के माता-पिता द्वारा दोनों को ही बचपन से ही नैतिक संस्कारों से वाकिफ कराते हुए शिक्षा प्रदान की गई थी। उन्हीं के आधारों पर वे अमल कर रहीं थीं।
विद्यालय में भी शिक्षक-शिक्षिकाएं बहुत ही सहायक थीं। जो बच्चों को किताबी अध्ययन के साथ ही साथ नैतिक शिक्षा का पाठ भी पढ़ातीं थीं। यह जो सरकारी विद्यालय था, वो छात्र-छात्राओं का था, जहां दोनों एक साथ टाट-पट्टी पर बैठकर शिक्षा पाते। छात्र होते हैं, थोड़े नटखट, शरारती किस्म के। कक्षा में भी एक छात्र, एक छात्रा ऐसे ही बिठाया जाता।
एक दिन कक्षा में शिक्षिका का गणित का पीरियड़ शुरू होने वाला था। इतने में हरिशंकर एवं राजेन्द्र नामक छात्र छात्राओं को देखते हुए छेड़ने के उद्देश्य से गाना गाने लगे, “जानु मेरी जॉं मैं तेरे कुरबॉं………. ” और पूरी कक्षा के विद्यार्थी जोर-जोर से हंसने लगे।
उनके लिए यह हंसी की शरारत थी, लेकिन सरिता और सीमा भी वहीं थीं। उनके मन को यह नहीं भाया। अभी तक शिक्षिका आई नहीं थी कक्षा में। इतने में शिक्षिका आईं और पूरी कक्षा एकदम से शांत, जैसे कुछ हुआ ही न हो। सरिता को लगा आज ये हरकत हुई है कक्षा में कल को कुछ और भी कर सकते हैं। कुछ छात्र-छात्राओं के माता-पिता ‘ये घर पर शरारत करते हैं या मस्ती करते हैं’, यूं कहकर हॉस्टल में रखते हैं अध्ययन करने के लिए। ये हरिशंकर और राजेन्द्र उन्हीं में से थे।
सरिता और सीमा को उनकी यह शरारत मन ही मन बहुत कचौट रही थी। पहले के ज़माने में बेटियों को सीधा-साधा, रहन-सहन, उच्च विचार और माता-पिता के आदर्शों पर अध्ययन करते हुए सफलता की ओर कदम बढ़ाना इतना ही मालूम था। ना ही माता-पिता कुछ इस तरह का ज्ञान देते थे।
वे सातवीं कक्षा में पढ़ रहीं थीं और आठवी बोर्ड़ की परीक्षा का भी एक अलग ही तनाव था। विद्यालय की प्राचार्या ने गोपनीय मुलाकात के लिए सरिता और सीमा को अपने कक्ष में बुलाया और अध्ययन की कठिनाईयों के संबंध में चर्चा होने लगी। प्राचार्या ने उनके हुलिए से पहचान लिया कि कुछ तो बात है, इन दोनों के मन में, क्योकि उनका ध्यान पूरी तरह से चर्चा में नहीं लग पा रहा था। उनका भी मन विचलित हो, बार-बार कह रहा था कि आज अगर शिकायत नहीं कर पाए तो यह मौका हाथ से निकल जाएगा।
प्राचार्या ने पूछा, “सरिता और सीमा बताओ तो सही तुम्हारी दुविधा है क्या? बताओगी तो उसका हल निकलेगा।” फिर उन्होने प्राचार्या को कक्षा में घटित घटना से पूर्णतः अवगत कराया। तत्पश्चात प्राचार्या ने कहा, “तुम लोगों ने बताकर अच्छा किया बेटियों। यह ज्ञान रूपी शिक्षा के मंदिर में इस तरह की हरकतें या शरारतें नीति के तहत माध्यम नहीं है। तुरंत ही हरिशंकर और राजेंद्र के माता-पिता को बुलवाया गया और हिदायत दी गई कि इस तरह की हरकतें या शरारतें पुनः करते हुए पाते जाएंगे तो विद्यालय से निष्कासित कर दिया जाएगा।
हरिशंकर और राजेंद्र के माता-पिता को बहुत ही अफसोस हो रहा था कि वे अपने छात्रों को यह नैतिक शिक्षा ठीक तरह देने में असमर्थ रहे। फिर प्राचार्या ने दोबारा से दोनों छात्रों को बुलाया और कहा कि उन्हें उनके माता-पिता के सामने ही सातवीं कक्षा की समस्त छात्राओं से माफी मांगनी पड़ेगी। आदेशानुसार दोनों छात्रों ने माफी मांगी और शिक्षा के इस मंदिर में सभ्य बनकर एक साथ अध्ययन करने के लिए राज़ी हुए।
इसीलिए आज समाज में ज़रूरत है कि माता-पिता अपने बच्चों को आवश्यक रूप से समय देते हुए उन्हें प्रारंभ से ही अच्छा-बुरा, सही-गलत इत्यादि के बारे में नैतिक शिक्षा अवश्य ही दें ताकि समाज हर छात्र-छात्राएं सर्वप्रथम घर से सुशोभित प्रेरणा को साथ लिए विद्यालय में शिक्षारूपी ज्ञान पाकर सर्वत्र प्रकाशवान हों।
मूल चित्र : Canva
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