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फ़िल्म छपाक का सोशल एक्सपेरिमेंट क्या है और ये क्या दर्शाता है, आइये जानें

फ़िल्म छपाक का सोशल एक्सपेरिमेंट, जिसमें दीपिका पादुकोणे और टीम ने जगह-जगह लोगों का एसिड अटैक सर्वाइवर्स के प्रति रवैया जाना, क्या कहता है!

फ़िल्म छपाक का सोशल एक्सपेरिमेंट, जिसमें दीपिका पादुकोणे और टीम ने जगह-जगह लोगों का एसिड अटैक सर्वाइवर्स के प्रति रवैया जाना, क्या कहता है!

शरीर ही तो झुलसा है,
रूह में जान अब भी बाकी है
हिम्मत से लड़ूंगी ज़िंदगी की लड़ाई
आत्मसम्मान मेरा अब भी बाकी है -इंदु वर्मा

कुछ नज़र के सामने है पर दिखता नहीं…नज़रिया बदलना ज़रूरी है

कुछ दिन बाद मेघना गुलज़ार की फ़िल्म छपाक आने वाली है जो एसिड अटैक सर्वाइवर, लक्ष्मी अग्रवाल की असल कहानी पर आधारित है। इस फिल्म की टीम ने अपनी मुख्य अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के साथ आम लोगों के बीच एक सोशल एक्सपेरिमेंट किया ये जानने के लिए कि लोग एसिड अटैक सर्वाइवर्स को देखकर उनके साथ कैसा बर्ताव करते हैं।

फ़िल्म छपाक का सोशल एक्सपेरिमेंट के दौरान, दीपिका फिल्म के अपने किरदार मालती के रूप में लोगों के बीच पहुंची जिसे कोई नहीं जानता। दीपिका के साथ कुछ और एसिड अटैक सर्वाइवर्स भी थीं। वीडियो की शुरुआत में दीपिका कहती हैं, ‘जब दीपिका बाहर जाती है तो सब पहचान जाते हैं, कभी-कभी लगता है मैं छिप जाऊं…लेकिन आज मैं चाहती हूं कि सब मालती का चेहरा देखें…’

इस एक्सपेरिमेंट के दौरान लोगों की प्रतिक्रिया को सही से समझने के लिए कुछ जगहों पर पहले से ही गुप्त कैमरा लगाए गए थे ताकि ये पता लगाया जा सके कि वो असल में इन चेहरों को देखकर कैसा चेहरा बनाते हैं।

मोबाइल स्टोर में 

सबसे पहले ये टीम मोबाइल स्टोर पर जाती है जहां दीपिका यानि मालती एक लड़की से सेल्फी लेने को कहती है और वो बहुत प्यार से क्लिक भी करती है, लेकिन अगल-बगल में खड़े लोग उन्हें घूर रहे होते हैं और घृणा की नज़र से देखते हैं।

सुपरमार्केट में 

कभी-कभी हमें लगता है हम बहुत पढ़-लिख गए हैं और हमारी सोच सबसे अच्छी है, लेकिन इस सोशल एक्सपेरिंमेंट के दौरान जब दीपिका (मालती के रूप में) और बाकी लड़कियां सुपरमार्केट में जाती हैं, तो लोग उन्हें देखकर हैरान से हो जाते हैं। कुछ दूर भागते हैं, तो कुछ नज़र ही फेर लेते हैं। अजीब तो ये था कि कुछ महिलाएं ही उन्हें देखकर मुंह बना रही थीं। एक भाईसाहब तो मदद मांगने पर जवाब तक नहीं देते। तो कहीं इस भीड़ में चंद ऐसे भी थे जो इन लड़कियों को अपने जैसा ही समझकर उनसे अच्छे से बात करते हैं।

कपड़ा बाज़ार में 

यहां तो कुछ दुकानदारों ने एसिड अटैक सर्वाइवर्स को कपड़े दिखाना तक सही नहीं समझा। यही वो दुकानदार हैं जो बहनजी-बहनजी इधर आइए, यहीं से कपड़े लेकर जाइए कहते हैं लेकिन अब तो जैसे इन्हें सांप ही सूंघ गया हो।

इसी तरह पूरा दिन छपाक टीम ने जगह-जगह ये सोशल एक्सपेरिमेंट किया और लोगों का एसिड अटैक सर्वाइवर्स के प्रति रवैया जाना। ज्यादातर लोग मुंह फेरते ही नज़र आए जिससे एक बात तो समझ आ गई कि भले ही हम बड़ी-बड़ी बातें कर लें, सोशल मीडिया पर अपने ‘उच्च विचारों’ को साझा कर लें, लेकिन जब तक हम चीज़ों को देखने का रवैया नहीं बदलेंगे तब तक बदलाव नहीं आ सकता। हमें ये समझना होगा कि हम जैसा लिख या बोल रहे हैं वैसा ही अमल में ला रहे हैं भी या नहीं।

इन एसिड अटैक सर्वाइवर्स को इस हाल में पहुंचाने वाले शायद खुले बाज़ारों में घूम रहे होंगे, लेकिन हम उन्हें देखकर मुंह नहीं बनाते क्योंकि हम उन्हें पहचानते नहीं है। लेकिन हम उनके करतूतों का सामना करने वाली इन औरतों को हिम्मत देने की बजाए गलत बर्ताव करते हैं। क्या आपके परिवार या किसी अपने के साथ कोई दुर्घटना हो जाए तो आप उसके साथ भी ऐसा ही करेंगे? अगर आप के साथ ही ऐसा हो जाए तो क्या आप ये चाहेंगे कि लोग आपसे मुंह फेर लें?

मुझे ये समझ नहीं आता कि हम कतराते क्यों हैं? मैंने अपने कुछ दोस्तों को भी ये वीडियो दिखाया और उनसे पूछा कि वो क्या करते अगर एसिड अटैक सर्वाइवर्स उनके पास आते और बात करते। कुछ ने कहा कि वो बहुत अच्छे से बात करते लेकिन कुछ का ये मानना भी था कि उन्हें शायद थोड़ी हिचकिचाहट होती। सवाल ये है कि ऐसा क्यों? और जवाब सीधा सा है….हमारी सोच छोटी है। हम अपने दकियानूसी और हिप्रोकेट समाज में इतना धंसते जा रहे हैं कि दूसरों के दुख और परेशानियों से मुंह फेर लेते हैं।

हम भूल जाते हैं कि समाज किसी एक से नहीं सब से बनता है। नज़रिया बदलेंगे तो सब बदल जाएगा।

मूल चित्र : YouTube

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