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कच्छ के मरूस्थल में महिला सशक्तिकरण की कहानी है गुजराती फ़िल्म हेलारो

‘हेलारो’ की 13 अभिनेत्रियों को विशेष जूरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। भाषा और भूगोल की सीमाओं वजह से हम कई अच्छी चीज़ों से अपरिचित रह जाते हैं।

‘हेलारो’ की 13 अभिनेत्रियों को विशेष जूरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। भाषा और भूगोल की सीमाओं वजह से हम कई अच्छी चीज़ों से अपरिचित रह जाते हैं।

हमेशा से सब कहते आए हैं कि फिल्में हमारे समाज का आइना होती हैं। इसी आइने के ज़रिए पितृसत्तात्मक समाज पर चोट करने वाली फिल्म ‘हेलारो’ काबिले तारीफ़ है। फिल्म 8 नवंबर 2019 में रिलीज़ हुई थी लेकिन चर्चा में आई जब इसे 23 दिसंबर 2019 को 66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया।

‘हेलारो’ को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का सम्मान मिला। इस फिल्म के बारे में काफी कम लोग इसलिए भी जानते होंगे क्योंकि ये एक गुजराती फिल्म है। अक्सर भाषा और भूगोल की वजह से हम कई अच्छी चीज़ों से अपरिचित रह जाते हैं।

हेलारो की कहानी

ये कहानी कच्छ के मरूस्थल में महिला सशक्तिकरण की पृष्ठभूमि पर बनी है। इस फिल्म के निर्देशक अभिषेक शाह की ये पहली फिल्म है। उन्होंने इसकी कहानी कच्छ के एक गांव व्रजवाणी की कुछ असली और कुछ लोक कथाओं से प्रेरित होकर लिखी थी।

एक छोटे से शहर की लड़की मंझरी की शादी रेगिस्तान के पास एक छोटे से गांव समरपुरा में हो जाती है। इस गांव की औरतें सालों से पुरुष प्रधान समाज के अत्याचार और उत्पीड़न से लड़ रही हैं। इन औरतों की ज़िंदगी बस घर की चारदीवारियों तक ही सीमित है।

इस गांव के पुरुष रोज़ रात, देवी को प्रसन्न करने के लिए गरबा करते हैं ताकि बारिश हो जाए। उन्हें देखकर औरतों का मन भी गरबा करने का होता है लेकिन वो मजबूर हैं। घर में फंसी इन महिलाओं के पास पूरे दिन में बस कुछ ही घंटे होते हैं जब वो बाहर निकल पाती हैं। मरूस्थल की गरमी में मीलों पैदल चलकर ये महिलाएं अपने घर के लिए पानी भरने जाती हैं। लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है जो इनके मरुस्थल जैसे जीवन में बरसात बनकर आता है।

एक दिन रास्ते में इन औरतों को रेत में सना थका हुआ सा इंसान दिखाई देता है। वो इंसान पानी मांगता है लेकिन इन डरी सहमी औरतों को किसी अजनबी से बात करने की मनाही है। अचानक मंझरी को उस बेसहारा शख्स पर दया आ जाती है और वो उसे पानी पिलाती है। वो आदमी उसका धन्यवाद करता है और अपना नाम मूलजी बताता है।

उस आदमी के पास ढोलक देखकर मंझरी उसे बजाने को कहती है और नाचना शुरू कर देती है। मंझरी को देखकर बाकी की औरतें भी धीरे-धीरे सब भूल कर उसके साथ गरबा करने लगती हैं। बस ये सिलसिला रोज़ ऐसे ही चलता रहता है। पुरुषों की बनाई बेड़ियों से परे उन कुछ घंटों के लिए ये औरतें आज़ाद हो जाती हैं। लेकिन असली कहानी तब शुरू होती है जब इस गांव के पुरुषों को ये सब पता चल जाता है। विपरित परिस्थितियों में महिला सशक्तिकरण की ये कहानी अद्भुत है।

अवॉर्डस

‘हेलारो’ में काम करने वाली 13 अभिनेत्रियों को विशेष जूरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। यह पहली गुजराती फिल्म है जिसने गोल्डन और सिल्वर, दोनों अवॉर्ड हासिल किए हैं। डायरेक्टर अभिषेक शाह को IFFI में स्पेशल मेंशन अवॉर्ड (विशेष उल्लेख पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था। हेलारो को दिसंबर 2019 में इटली में आयोजित रिवर टू रिवर फ्लोरेंस इंडियन फिल्म फेस्टिवल में आधिकारिक रूप से स्क्रीनिंग के लिए चुना गया था जहां इसे ऑडियंस अवॉर्ड भी मिला।

हम महिला सशक्तिकरण, फेमिनिज़्म जैसी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। लेकिन धरातल पर उतर कर असलियत देखनी बहुत ज़रूरी है। ये कहानी कुछ ऐसी ही है।

मूल चित्र : YouTube  

 

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