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अब गुलाबी गैंग के तर्ज़ पर एक होकर बुलंद आवाज़ उठाने का समय, ताकि सो कॉल्ड घर की इज़्ज़त के नाम पर महिलाएं शोषित ना होती रहें।
सामान्यतः भारतीय पारिवारिक व्यवस्था के अंतर्गत पुरुष ही घर का मुखिया होता है। इस व्यवस्था के चलते स्त्री की भूमिका परिचारिका के स्तर की होती है। इसमें स्त्री के साथ घरेलू हिंसा होना आम बात है। कम पढ़े-लिखे, गरीब वर्ग में तो पुरुष का शराब पीकर स्त्रियों के ऊपर हाथ उठाना, घर से बेघर कर देना लगभग रोज़ की ही बात है।
उत्तर प्रदेश के अंदरूनी इलाकों में स्त्रियों की दशा बहुत ही दयनीय है, ना तो वे खुद के निर्णय ले सकती हैं और ना ही घर की चौखट पार कर सकती हैं। जब स्थिति, बदतर होने लगी, तब संपत पाल नामक महिला ने महिलाओं का एक समूह बनाया ताकि वे स्त्रियों के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोक सकें।
इस समूह की स्त्रियां, गुलाबी कलर की साड़ी पहनकर, हाथ में डंडा लेकर झुंड में निकलती हैं। इस झुंड में 18 से लेकर 60 वर्ष की महिलायें सदस्य होती हैं। सन 2010 से गुलाबी गेंग का प्रसार बड़े स्तर पर हुआ।
माना एक महिला की आवाज़ सुनी नहीं जा सकती, मगर समूह अगर बोले तो हर एक व्यक्ति, समाज और कानून मजबूर होगा उसको न्याय देने के लिए।
नशा करके पति यदि स्त्री पर हाथ उठाता है हिंसा करता है, गाली-गलौच करता है, यौन प्रताड़ना देता है, तो इसकी सूचना मिलते ही यह गैंग पीड़िता की मदद के लिए पहुंच जाती है। पहले एक साथ कई स्त्रियां उस आदमी पर धावा बोलती हैं, फिर उसको धमका कर अथवा समझा कर स्थिति नियन्त्रित की जाती है।
संपत पाल के अनुसार, ‘प्रशासन के द्वारा दिया गया, कोई भी आश्वासन पूरा नहीं किया जाता। वह केवल फाइलों में बंद होकर रह जाता है, इसलिए मैंने सोचा कि कब तक दूसरों की तरफ दयनीय नज़रों से देखते रहेंगे? जब तक हम अपने लिए आवाज़ नहीं उठाएंगे, तब तक कोई हमारी तरफ देखने वाला नहीं।’
‘आज बड़े-बड़े लोग गुलाबी गैंग से थर्राते हैं। हमारी गुलाबी गैंग इतनी मजबूत है कि सभी प्रकार के छोटे-बड़े मामले निपटा लेते हैं। इसका मुख्यालय अनौपचारिक रूप से उत्तर प्रदेश के बडौसा में बनाया गया है। अब तो कई राज्यों में इस तरह से गुलाबी गैंग बन गई है।
अपने गृहकार्य निपटा कर ये महिलाए अपने गुलाबी यूनिफॉर्म (साड़ी) बाँध कर और हाथ में एक डंडा पकड़ कर गश्त पर निकल जाती हैं।
आज इस गैंग का अन्दरुनी इलाकों की महिलाओं को बहुत फायदा मिला है। वे काफ़ी सशक्त महसूस करती हैं। इससे महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन हुआ है और उनके ऊपर घर में हिंसा का प्रतिशत थोड़ा कम हुआ है।
मै छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहती हूँ। मैंने देखा, यहाँ के अन्दरूनी इलाकों में महिलाएं रात को डंडा पकड़ कर गश्त लगाती हैं। छोटा ही सही पर यह साहसी कदम कबील-ए-तारीफ है। वे एकजुट हो अपनी और अपने जैसी पीड़ित महिलाओं के हक व सुरक्षा के लिए मुहिम चला रही हैं, जिससे महिलाओं की जागरुकता बढ़ रही है और वे आत्मनर्भर बनने की ओर अग्रसर हो रही हैं।
देखा जाए तो केवल गरीब परिवारों में ही नहीं, मध्यम वर्गीय और उच्च वर्गीय परिवारों में भी महिलाएं इसी तरह से शोषित हो रही हैं। इस लिए गुलाबी गैंग की आज और भी ज़्यादा ज़रूरत है।
समाज को बढ़ते बलात्कारों के केस को रोकने हेतु मजबूत कदम उठाना होगा। हमें गुलाबी गेंग का विस्तार करना होगा। देश में चारों तरफ जितनी ज़्यादा बलात्कार के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है, उतनी ही तेज़ी से बलात्कार और हत्या के केस बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए गुलाबी गैंग केवल घरेलू हिंसा, नशा मुक्ति तक ही सीमित ना रहे, उनको एक कदम आगे बढ़कर उनको सुरक्षा घेरा और बढ़ाना होगा। इसमें हम सबको उनका साथ देना होगा।
हम सबको पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिए कि वृहद स्तर पर महिलाएं एकत्रित हो, संगठित हो और पेट्रोलिंग करें।सुनसान इलाकों, दूर-दराज क्षेत्रों में नाइट शिफ्ट में लौटती हुई लड़कियों की सुरक्षा का इंतजाम देखें। सीसीटीवी कैमरा, पुलिस चौकी आदि का इंतजाम करें। अपने वालंटियर, वहां तैनात करें।
हम सब को भी गुलाबी गैंग के साथ मिल कर लड़कियों के लिए आत्म सुरक्षा ट्रेनिंग कैंप की व्यवस्था करनी चाहिए। वे चारों तरफ जागरूकता फैलाएं कि कैसे किसी विपत्ति का सामना करना चाहिए।
बढ़ते हुए अपराध को और बलात्कार को रोकने की कोशिश पूरे समूह को मिलकर करनी चाहिए ताकि ‘पावरफुल ‘ लोग इतने बड़े समूह के सामने टिक न सकें। मैं तो कहूँगी कि उन्हें उनके क्षेत्रों में पहले से हो चुके बलात्कार को रजिस्टर करना चाहिए और पीड़िता को न्याय दिलवाने के लिए एक मुहीम चलानी चाहिए।
अब शक्ति प्रदर्शन का समय है, गुलाबी गैंग के तर्ज़ पर एक होकर बुलंद आवाज़ उठाने का समय। ताकि सो कॉल्ड घर की इज़्ज़त के नाम पर महिलाएं शोषित ना होती रहें। महिलाएं एक जुट हो कर अपनी शक्ती बढ़ाएँ।
अब बलात्कार जैसे अन्य अन्याय रोकने का प्रयास हमें अपने ही ही स्तर पर करना होगा।
मूल चित्र : YouTube
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