कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

खनक – एक नई जगती उम्मीद!

"कितने नादान हो कि जानते भी नहीं कि लांघ कर तुम्हारी सारी लक्ष्मण रेखाओं को...ध्वस्त कर तुम्हारे अहं की लंका, कब से घुल चुका है वो उल्लास इन हवाओं में..."

“कितने नादान हो कि जानते भी नहीं कि लांघ कर तुम्हारी सारी लक्ष्मण रेखाओं को…ध्वस्त कर तुम्हारे अहं की लंका, कब से घुल चुका है वो उल्लास इन हवाओं में…”

हंसती खिलखिलाती
ठहाके लगाती हुई औरतें
चुभती हैं तुम्हारी आँखों में
कंकर की तरह…
क्योंकि तुम्हें आदत है
सभ्यता के दायरों
में बंधी दबी सहमी
संयमित आवाज़ों की…

उनकी उन्मुक्त हँसी
विचलित करती है तुम्हें,
तुम घबराकर बंद करने लगते हो
दरवाज़े खिड़कियां…
रोकने चलो हो उसे
जो उपजी है
इन्हीं दायरों के दरमियां…

कितने नादान हो कि
जानते भी नहीं
कि लांघ कर तुम्हारी सारी
लक्ष्मण रेखाओं को…
ध्वस्त कर तुम्हारे अहं की लंका
कब से घुल चुका है
वो उल्लास इन हवाओं में।

पहुँच चुकी है ‘खनक’
हर उदास कोने में
जगाने फिर एक उम्मीद
उगाने थोड़ी और हंसी।

और हां तुम्हारी आंख का वो पत्थर
अब और चुभ रहा होगा…

मूल चित्र : Canva 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

19 Posts | 53,638 Views
All Categories