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उम्र के एक पड़ाव पर पहुंच कर जब हम पीछे पलटकर देखते हैं, तो हमारे अंदर छिपा वही मासूम बच्चा बार बार हमें फिर से बचपन में लौटकर चलने को कहता है।
“यहां हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम सा बच्चा बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है अजब ये ज़िन्दगी की क़ैद है दुनिया का हर इंसान रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है।”
राजेश रेड़्डी जी की यह कविता आप सभी ने कहीं न कहीं सुनी या पढी़ तो अवश्य ही होगी और कहीं न कही अपने दिल के अंदर से आती उस मासूम बच्चे की आवाज़ को सुना और महसूस भी जरूर किया होगा।
बडे़ होने पर हम और हमारा जीवन कितना बदल जाता है न, कितनी ही ज़िम्मेदारियों का बोझ हमारे कंधे पर जो आ जाता है। तब एक उम्र के पड़ाव पर पहुंच कर जब हम पीछे पलटकर देखते हैं, तो हमारे अंदर छिपा वही बच्चा बार बार हमें फिर से बचपन में लौटकर चलने को कहता है। तब जाकर हमें अहसास होता है कि बड़े होने की कीमत हमने क्या-क्या खोकर चुकाई है।
क्या आपको नहीं लगता है कि कभी-कभार अपने अंदर वाले इस बच्चे की बात सुन लेनी चाहिए और इसके साथ मिलकर वो बचपन वाली जिंदगी फिर से जीनी चाहिए? अपनी उम्र, पोजीशन, संजीदगी और ज़िम्मेदारियां भूलकर बस बच्चा बन कर देखना चाहिए और वही बचपन वाले सभी काम करने चाहिए जो हमें खुशी देते थे। यकीन मानिए कि ज़्यादा बड़ा बनकर हर बार किसी का ख्याल रखना क्यों जरूरी है?
खुद को 6-7 साल का बच्चा समझिए, जो थोड़ा सेल्फिश भी हो क्योंकि, कभी-कभी थोड़ा सेल्फिश होने में भी मासूमियत छुपी है। जब भी अपनी फेवरेट डिश सामने आए तो बिना किसी को आफर करे, खा लीजिएगा। कसम से दुगुना स्वाद आ जाएगा।
अपने पुराने दोस्तों के साथ मिलकर समय बिताइए, अपनी पुरानी दोस्ती को फिर से कुट्टी-अब्बा करने दीजिए, पुराने किस्से और अनगिनत, अनकही बातें शेयर कीजिये। यकीन मानिए, दोस्ती का ये रंग फिर से आप पर चढ़ कर आपकी दुनिया रंगों से सरोबार कर देगा। राह चलते अजनबियों को मुस्कुरा कर देखिए, उनसे बात कीजिए, जैसे मासूम बच्चा करता है।
जब मन में कोई सवाल उठे तो बिंदास, बिना सोचे, पूछ डालिए, क्योंकि कहा जाता है कि एक बुरा सवाल वही है, जो कभी पूछा ही नहीं गया। तो फिर क्या सोचना… बस पूछ डालिए जो भी मन में आ रहा है। याद कीजिए कि बच्चे कितने सवाल करते हैं।
जब भी रूठने का जी करे तो बिल्कुल ठुनक कर रूठ जाइए, देखिएगा आपके प्रिय कैसे आपको मनाने के लिए दौड़े चले आएंगे।
मासूम बच्चों के साथ खुले मैदान या गार्डन में खेल खेलिए और देखिए कि आप कितना ऊंचा कूद सकते हैं। पानी में जी भर कर खूब छप्पा-छप्प कीजिए, गीले होने की परवाह किए बगैर पाईप से फुव्वारा बना कर बागीचे में बारिश कीजिए और फिर देखिए, ये तनमन कैसे ख़ुशी से भीग जाएगा।
जीवन की आपाधापी में दौड़ते भागते, आप अपनी कितनी ही हौबीज़ और शौक भूल गए थे। याद कीजिए, वो बचपन, जब आप बड़े होकर क्या-क्या बनना चाहते थे – कभी राइटर, कभी सिंगर, कभी टीचर, कभी डांसर, कभी पेंटर या कुछ और …अब वही दोबारा शुरू कीजिए… मस्ती में केवल अपने लिए नाचिए, गाइए, पेंटिंग बनाइए, बिन बात मुस्कुराइए।
रोने का जी करे तो जी भर रोइए, किसी भी भावना को अंदर मत दबाइए। बच्चे इसलिए ही खुश रहते हैं क्योंकि वो बिन सोचे अपनी भावनाएं जाहिर करते हैं। हंसिए जब भी हंसने का मौका मिले, बिंदास हंसिए। किसी से मन मुटाव हो जाए, तो ज़्यादा देर दिल से लगाकर न रखें, जैसे मासूम बच्चे एक ही पल में पिछली बातें भुलाकर वापिस पहले जैसे रिश्ते बना लेते हैं। देखा जाए तो शायद इन्ही सब बातों और व्यवहार के चलते ही, ये बच्चों वाली दुनिया इतनी सरल, सुखी, सच्ची, भोली और बेफ़िक्री वाली होती है।
इसीलिए प्लीज़, एक बार ही सही, अपने अंदर वाले मासूम बच्चे की बात सुनिए और बचपना करके देखिए, कसम से अच्छा लगेगा!
मूल चित्र : Canva
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