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मोहब्बत के वादे, सतरंगी ख्वाब और अधिकार की हकीकत, मेरा तिरस्कार, तुम्हारा परिवार, तुम्हारा समाज, तुम्हारी बातें, तुम, तुम बस तुम।
आजकल छिपाए नहीं छिपते साँसों में दबी ज़ुबां जिगर में अटकी एक फांस सिसकियों का अकेलापन और पछतावे की कहानी।
हां, मेरे कुछ दबे जज़्बात।
कितने अफसोस दबाए रखी थी अधूरेपन की लड़ी उस एक बार ‘ना’ कहा होता आज कहानी अलग होती।
क्यों चीख न पाई मैं उस एक दिन जब छोटी कहकर पुचकारा था और आंख तरेर धमकाया था।
ओह, मेरे सहमे जज़्बात।
मोहब्बत के वादे सतरंगी ख्वाब और अधिकार की हकीकत मेरा तिरस्कार, तुम्हारा परिवार तुम्हारा समाज, तुम्हारी बातें तुम, तुम बस तुम।
जीना बेज़ार हुआ था मेरे सब्र का अंजाम था। उठे हाथ के नीचे सिर पकड़कर, फफक-फफक कर रोना छोड़ दिया था।
इज्जत और लांछन के तानों का बाना मेरे नए अवतार का सार था।
टुकड़ों में बंटे मेरे जज़्बात।
अधूरापन समेट, नई रोशनी नई जिंदगी की आस में पंख फैलाना सीख गयी खुली आंखों में स्वप्न सेंकना सीख रही फेंके क्लेश को सींचना छोड़ तो रही थी मैं उस वक्त और छप्पाक!
बचे अब कुछ जले-जले से बोझिल जज़्बात…
मूल चित्र : Canva
A space tech lover, engineer, researcher, an advocate of equal rights, homemaker, mother, blogger, writer and an avid reader. I write to acknowledge my feelings. read more...
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