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नीना गुप्ता क्या कह रही हैं और क्यों कह रही हैं, हम समझ सकते हैं, लेकिन ये बात उन्हें सिर्फ अपने सन्दर्भ और बीते हुए समय को ध्यान में रखते हुए करनी चाहिए।
अनुवाद : प्रगति अधिकारी
नीना गुप्ता ने हाल ही में मुंबई मिरर को दिए एक इंटरव्यू में अपने बिन-ब्याही माँ बनने के संघर्षों के बारे में बात की। उनकी बेटी, मसाबा गुप्ता, पूर्व वेस्ट इंडीज क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स से हैं, जो 80 के दशक में पहले से ही शादीशुदा थे। तब नीना ने अपनी बेटी को अकेले ही पालने का फैसला किया। यह पूछे जाने पर कि क्या वे समय में वापस जा कर कुछ बदलना चाहेंगी, उन्होंने कहा, “मैं बिना शादी के माँ न बनती। हर बच्चे को माता-पिता, दोनों की ज़रूरत होती है। मैं मसाबा के साथ हमेशा सच्ची रही, इसलिए इससे हमारे रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन मैं जानती हूँ कि उसे बहुत कुछ सहना पड़ा।”
हम समझ सकते हैं कि वे क्या कह रही हैं और क्यों कह रही हैं, लेकिन ये बात उन्हें सिर्फ अपने सन्दर्भ में, बीते हुए समय को ध्यान में रखते हुए, कहनी चाहिए। ये जानते हुए कि उस दशक में उन्हें समाज की रूढ़िवादी सोच का अकेले सामना करना पड़ा होगा, उनकी ये बात आज के माता-पिता के लिए मानदंड नहीं हो सकती।
मसाबा अब भारत में एक फैशन डिज़ाइनर हैं और नीना बॉलीवुड में एक अभिनेत्री हैं। इस सफल मां और बेटी की जोड़ी का एक आदर्श अभिभावक और संतान का रिश्ता है और मसाबा को पालने का श्रेय अकेले नीना को जाता है।
फिल्म निर्माता पति मधु मंटेना के साथ पिछले साल मसाबा के तलाक के बाद, उनकी माँ नीना ने इस बात पर चिंता जताई थी क्यूंकि टूटे और बिखरे रिश्ते महिलाओं को प्रभावित करते हैं। नीना ने पिछले साल एक साक्षात्कार में कहा था, “मैं जानती हूँ कि मुझे एकस्ट्रॉन्ग वुमन माना जाता है। और मुझे यह भी पता है कि ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि मैंअनमैरिड मदर बनी।”
उसी इंटरव्यू में मसाबा ने अपनी मां को एकशॉक दिया जब उन्होंने ये बताया कि कैसे उन्हें लव चाइल्ड होने के वजह से बुली किया गया था। वह कहती हैं, “मुझे स्कूल में बहुत सताया गया, वो भी सिर्फ इसलिए कि मैं एक लव चाइल्ड थी। मुझे अपने एक सहपाठी द्वारा बा*** कहे जाने की बात स्पष्ट रूप से याद है। मैं तब 7 वीं कक्षा में थी।”
मसाबा ने पहले भी जीवन आसान नहीं होने की बात कही है। वह अपने अफ्रीकीजींज़ की वजह से अलग दिखती थीं और उन्होंने कहा था, “एक तो प्रसिद्ध माता-पिता और फिर, मैं जिस तरह दिखती थी…मेरी कक्षा में कुछ ऐसे लड़के थे जो मेरे कर्लज़ में पेंसिल फँसा देते थे, और कहते थे कि ‘येकुशन की तरह हैं’ और वे मुझ पर हँसते थे। यहां तक कि मेराबॉडी टाइप मेरे स्कूल की अन्य लड़कियों से बहुत अलग था। मैं यह सोचकर बड़ी हुई कि मैं अच्छी नहीं दिखती। मैं इस बात से दुःखी थी और मेरी सेल्फ एस्टीम बहुत कम थी। ये ऐसी बातें हैं, जो बहुत लंबे समय तक आपका साथ नहीं छोड़तीं।”
हाल ही में 2017 के रूप में मसाबा कोनाजायज़ वेस्ट इंडियन के रूप में ट्रोल किया गया और उनका प्रतिशोध उनके मजबूत व्यक्तित्व और अच्छी परवरिश का प्रतिबिंब था। उन्होंने कहा, “और बुलाओ मुझे इस नाम से…अगर इससे तुम्हें ख़ुद पर गर्व होता है। लेकिन यह याद रखना…मैं एक प्राउड इंडो-कैरिबियन लड़की हूं, और समाज की इन फ़ालतू बातों के लिए मैं बदलनी वाली नहीं। मेरेनाजायज़ जींज़ ने मुझे ऐसा ही बनाया है।”
आजहेट्रोजिनस फॅमिली, यानि दो विषमलैंगिक माता-पिता वाले परिवार, को एक आदर्श के रूप में पेश करना कई स्तरों पर गलत है। अब तो समान यौन के माता-पिता या एकल माता-पिता भी होते हैं, जिनके पास वैकल्पिक यौन पहचान है। यह कहते हुए, मैं इस तथ्य को कतई नहीं नकार रही कि इन परिवारों के लिए रोज़मर्रा की जिंदगी आज भी बहुत कठिन है, क्यूंकि ये एकआदर्श परिवार यानिमाता-पिता-संतान, के अनुरूप नहीं हैं।
भारत में एकल माँ वाले परिवारों के बारे मेंरिसर्च अभी भी अल्प है। अभी भी संबंधित अनुसंधान इस बात पर ज़ोर देता है, “….यह सवाल करना महत्वपूर्ण है कि क्या एकल-अभिभावक परिवारों में बच्चे वाकई मनोवैज्ञानिक जोखिम में हैं? जैसा कि पहले भी कहा गया है, ये बच्चे भीबैलेंस्ड और वेल अडजस्टेड होते हैं और हो सकता है किजोखिम केवल हमारे दिमाग में हो, क्योंकि ये पुरानी धारणा है कि टूटे परिवार बच्चों की अच्छे से देखभाल करने में असफल होते हैं।”
एकल माता-पिता, विशेष रूप से माताओं, को भारतीय समाज में अभी भी बहुत भेदभाव और असमर्थन का सामना करना पड़ता है और पूर्व-वैवाहिक यौन संबंध अभी भी गलत माना जाता है। इन सब के रहते नीना के दु:ख को, इतने वर्षों में संघर्ष के परिणाम के रूप में, अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
विशेष रूप से ’80 के दशक के समाज में, अधिकांश एकल माताओं को बच्चों की परवरिश के लिए समर्थन चाहे नहीं मिला होगा, लेकिन सौभाग्य से नीना के लिए बॉलीवुड सप्पोर्टिव औरटॉलरेंट रहा है। उनके जैसी महिलाओं की संख्या अब बढ़ रही है – सुष्मिता सेन, एकता कपूर और बाद में करण जौहर और तुषार कपूर जैसे पुरुषों में भी अंतर्निहित चुनौतियों के बावजूद सिंगल पेरेंटहुड को एक विकल्प के रूप में चुना है।
जब से नीना गुप्ता ने ये साक्षात्कार किया है, तब से उनके इसपॉइंट ऑफ़ व्यू का समर्थन और निंदा हो रही है। श्रीमोयी पिऊ कुंडू ने एक फ़ेसबुक पोस्ट में, विशेष रूप से एकल मातृत्व के बारे में नीना के इस प्रतिगामी रुख की निंदा की है :
“गुप्ता के इस कबूलनामे से मैं व्यक्तिगत रूप से निराश हूं। मैं कई ऐसी महिलाओं को मैं जानती हूँ, जिनसे मैं रोज़ाना बात करती हूं, जो चुपचाप सब सहती रहती हैं और अपमानजनक रिश्तों में रह रही हैं। वे अपने धोखेबाज़ पार्टनर को वे सहन करती हैं। वे भावनात्मक रूप से पीड़ित रहती हैं और आर्थिक रूप से गैर-जिम्मेदार पतियों को सिर्फ इसलिए सहती हैं क्यूंकि उनका मानना है कि एक बच्चे को एक माँ और एक पिता की ज़रूरत है।”
दूसरी ओर इस तरह के ट्वीट हैं जैसे कि वे नीना के इस निर्णय से आज भी खुश हैं :
“… नीना गुप्ता आपऑरिजिनल फैमिनिस्ट हैं आपने जो किया वह कई मायनों में एक ऐतिहासिक कदम था…… हमें आप पर गर्व है।”
हालाँकि, नीना गुप्ता और उनकी बेटी के व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों को नाकारा नहीं जाना चाहिए, लेकिन उन्हें दूसरी एकल माताओं और उनके बच्चों के लिए आदर्श भी नहीं माना जाना चाहिए। सामाजिक बाधाएँ होने के बावजूद, यह समय है एकल मातृत्व/माता-पिता जैसे जीवन-विकल्पों की आलोचना के बजाय उन्हें अधिक से अधिक स्वीकारने का।
मूल चित्र : YouTube
Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness read more...
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