कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

हां अब…. देह विहीन उसकी आत्मा सुकून से लौट सकेगी अपने घर!

कितनी रातें दर्द से भरी, कितने दिन वेदना से घिरे, सब नोच गए वो वहशी सरफिरे। क्या उसकी मुस्कुराहट ही थी उसका पाप? या उसका यूं स्वछंद घूमना ना आया उनको रास?

कितनी रातें दर्द से भरी, कितने दिन वेदना से घिरे, सब नोच गए वो वहशी सरफिरे। क्या उसकी मुस्कुराहट ही थी उसका पाप? या उसका यूं स्वछंद घूमना ना आया उनको रास?

थी वो अकेली और मर्द थे चार?
चीखी पुकारी न जाने वो कितनी बार,

ना जाना दर्द उसका किसी ने, बस बातें ही बना सके,
उसकी तड़प, उसकी घुटन वो ना पहचान सके।

कपड़ों के साथ नोच ली जान उन गिद्धों ने,
पर घुटन और अपमान क्यों आए सिर्फ उसी के हिस्से में?

कितनी रातें दर्द से भरी, कितने दिन वेदना से घिरे,
सब नोच गए वो वहशी सरफिरे।
क्या उसकी मुस्कुराहट ही थी उसका पाप?

या उसका यूं स्वछंद घूमना ना आया उनको रास?

पर अब जब सूली से लटकेंगे भेड़िए वो चार,
शायद अब, हां अब….

देह विहीन उसकी आत्मा सुकून से लौट सकेगी अपने घर!

मूल चित्र : Canva 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

10 Posts | 28,483 Views
All Categories