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सिर्फ ‘बाहर वालों’ को ही सज़ा क्यों मिलती है?

सबने बड़े आराम से कह दिया, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, पर कौन बचाए हमें उससे, जो हिफाज़त और प्यार के नाम पर, रूढ़िवाद की फॉंसी चढ़ा दे?

सबने बड़े आराम से कह दिया, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, पर कौन बचाए हमें उससे, जो हिफाज़त और प्यार के नाम पर, रूढ़िवाद की फॉंसी चढ़ा दे?

अपनी मूँछ
ऊँची रखने के चक्कर में,
अपनी औलाद की खुशियॉं
बेचने में कोई ऐतराज़ नहीं….
पर खबरों में
लड़की के साथ हुई दरिंदगी पर
उदास हो जाते हैं।

छाती ठोक कर कहते हो,
“हमारे घर की लड़कियॉं हमारी शान है!”
तो अपनी शान को
कौन
अचानक से किसी गैर के हाथ थमा देता है?

सीना तान कर कहते हो,
“मेरी बेटी मेरी जान है!”
तो कौन जान की
जान लेता है,
जब वो अपने सच्चे प्यार से ब्याह रचाना चाहती है?

सबने बड़े आराम से कह दिया,
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”
पर कौन बचाए हमें
उससे
जो हिफाज़त और प्यार के नाम पर
रूढ़िवाद की फॉंसी चढ़ा दे?

किसी ने ठीक ही कहा है….
लड़कियाँ आजकल
न बाहर
और न ही घर में सुरक्षित हैं।

बाहर हैवानोें का खतरा होता है,
और घर में…
अपने कहलाने वालों की
कट्टर सोच का…

मूल चित्र : Canva 

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