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हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है ये तो यह लेख कहता ही है। लेकिन ऐसा नहीं कि दुनिया में बस औरत ही है जिसके सपने कुचले जाते हैं।
मेरी शादी को एक साल ही हुआ था और इस एक साल में घर-परिवार, पति, सास-ससुर, सबको जान गई। एक जो बात मुझे पता लगी वो थी मेरे पति का एक शौक जो उनके घर में सबको खटकता था। मुझे तो कोई दिक्कत नहीं लगती, लेकिन मम्मी जी और पापा जी हमेशा टोकते।
पेशे से मेरे पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। लेकिन रुचि किसी और काम में थी। वो काम तो कर रहे थे लेकिन बेमन से। शाम होते ही सासु माँ बोलती, “जल्दी-जल्दी खाना बना लेते हैं। रवि आएगा तो किचन में घुस जाएगा लड़कियों की तरह।”
मैंने कहा, “मम्मी लोग तो चाहते हैं कि उनके बेटे काम करें।आप मना करती हैं।”
वो बोलीं, “अरे तो आदमियों वाले काम करे ना। ये क्या लड़कियों की तरह किचन में खाना बनाने आ जाता है।”
मैंने कहा, “मम्मी दुनिया के सबसे अच्छे और बड़े शेफ आदमी ही हैं। अगर उनको शौक है ये बुराई क्या है?
वो बोलीं, “अरे बेटा कितनी मुश्किल से किचन से उसका पीछा छुड़वाया है। तुझे नहीं पता, वो तो बेकिंग क्लास भी जाना चाहता था। हमने करने नहीं दी। भला अच्छा लगता है? अब तू बता तेरे माँ-बाप ने भी तो ये देख के शादी की ना कि लड़का सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। कल को हम कहते कि खाना बनाता है तो कर देते माँ-बाप शादी?”
मुझे तो उनकी बातें अच्छी नहीं लग रही थीं। ये क्या बात हुई भला? ये काम लड़की का वो लड़के का और घर पे खाना बनाना और बाहर शेफ होना दो अलग बातें हैं। वैसे अगर एक अच्छी जगह शेफ होते तो करती मैं उनसे शादी। ये उनका जॉब होता। मैंने मम्मी से कहा,”मम्मी अच्छी खासी तनख्वाह होती है शेफ की। आप आगे बढ़ने देते तो शायद वो भी उस मुकाम पे होते और खुश होते।”
सासु माँ ने कहा अरे सब कहने की बात है और कह कर चलती बनीं वो। रात को मैंने रवि से जानना चाहा। वो चहक उठे। उनको लगा कि कोई तो है जो उनके शौक को समझता है। बच्चे सी मुस्कान थी चेहरे पर। भाग कर गए और एक डायरी लाए जिसमें दुनिया भर की रेसिपीज़ थीं। मुझे दिखाने लगे। कभी-कभी माँ-बाप बच्चे के सपनों को कैसे रौंद देते हैं। उनपे दया सी आ गई।
उनको देख कर दुःख हुआ। वो चहक-चहक कर बता रहे थे, “मैं रेस्टॉरेंट खोलना चाहता था निशा। ये देखो मैंने मेनू भी बना रखा है। लेकिन अब सब खत्म। अब तो 9 से 5 की चाकरी करने में ही रह गया हूँ।”
भारी मन से हम दोनों सो गए। अगले दिन मैंने उनसे कहा, “मम्मी जी की किटी है और वो तो किटी वाले दिन ही दिल्ली से आएँगी। मुझे सारी तैयारी करनी है। आप बताओ मैं क्या बनाऊँ।”
वो बड़े खुश हो गए कि उनकी राय माँगी मैंने। वो बोले,”कब है? मैं उस दिन छुट्टी ले लूंगा और तुम्हारी मदद कर दूंगा।” मुझसे ज़्यादा वो खुश थे।
किटी वाले दिन हुम दोनों लग गए किचन में। मैं क्या सब रवि ने किया। मैं देख कर हक्की-बक्की थी। 2 घण्टे के अंदर टेबल सज गई थी। ऐसी खाने की प्रेजेंटेशन कि जिसको भूख ना हो उसे भी लग जाए। सासु माँ भी आ गई थीं। इससे पहले कि खाने पे नज़र जाती, उससे पहले ही सब किटी की सहेलियाँ आ गईं।
टेबल वे नज़र पड़ी तो सब आश्चर्यचकित। तारीफ़ कर कर के नहीं थक रहीं थीं। सब बोल रहे थे, “क्या सुगढ़ बहु पाई है। भाग खुल गए।”
मैंने सबको कहा, “जी सब रवि ने बनाया है।”
ये सुन कर सब हैरान रह गए। सासु माँ का मुँह फूल गया। सब रवि को गले लगा-लगा के बोल रहे थे, “क्या बात है बेटा! पहले तो लगा कि खाना बाहर से आया है या बहू ने बनाया होगा। पर तुम तो लाजवाब हो।” रवि बड़े खुश थे।
उसमें से एक आंटी बोली, “रवि बेटा, केटरिंग वगेरह भी लेते हो क्या?”
रवि घबरा गए, “बोले अरे नहीं नहीं आंटी, शौकिया तौर पे करता हूँ।”
आंटी बोलीं, “अरे फिर तो कर लो बिज़नेस दौड़ पड़ेगा। हम सबको भी आसानी हो जाएगी।” सब हंस पड़े।
सासु माँ का भी गुस्सा शांत था। वो भी बेटे पर गर्व कर रही थीं। लेकिन फिर भी कुछ बोली नहीं। रात को मैंने देखा कि रोज़ ऑफिस से आकर रवि दुःखी ही दिखते लेकिन आज इधर-उधर फुदक रहे थे।
मैंने चुटकी ली, “रवि केटरिंग खोल लो आप। आंटी सही बोली थी।”
वो कूद के आए मेरे पास और बोले, “सच निशा? कर पाऊंगा क्या?”
मैंने कहा, “क्यों नहीं?”
वो बोले, “बाकी सब आता है मुझे, बस थोड़ी बेकिंग की बारीकियां सीखनी होंगी।”
मैंने कहा, “आप क्लास कर लो।” मम्मी जी को बाद में बता देंगे। ऑफिस के बाद चले जाया करना।
वो खुशी से बोले, “मेरा सपना सच होगा क्या?”
मैं बोली, “मैं हूँ ना।” अब तो मैंने भी देख लिया था कि कितने गुणी हैं वो।
उन्होंने क्लास जॉइन कर ली। थोड़े महीनों बाद वे केटरिंग के छोटे-मोटे आर्डर लेने लगे। सासु मां का पारा चढ़ गया, “नौकरी का क्या होगा?”
मैंने कहा, “अभी ज़्यादा नहीं है आर्डर। अगर बहुत बढ़े तो तब छोड़ेंगे।”
वो और गुस्सा हुईं। लेकिन इस बार मैं भी रवि की तरफ थी। आर्डर आने लगे। धीरे-धीरे काम और आमदनी बढ़ गई। अब बात नौकरी की आई। रवि उदास थे। असमजन्स में फंस गए। मैंने कहा, “आप छोड़ दो। मैं भी तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। मैं कर लेती हूं। आप इस पर ध्यान दो। आप जियो अपने सपने को।”
सासु माँ ने चिलाना शुरू किया, “अब बेटा घर बैठेगा और बहू बाहर जाएगी?”
मैंने कहा, “मम्मी जी वो नौकरी से ज़्यादा कमा रहे हैं। अब पूरा वक़्त देना होगा। हेल्पर भी चाहिये। काम बढ़ रहा है। मम्मी प्लीज उनका साथ दो। देखो कितना खुश हैं। ये उनका पैशन है। आप माँ हो, आप तो समझो।”
सासु माँ ने रवि की ओर देखा। अपनी बनाई हुई डिश को सजा रहे थे। एक सुकून था उनकी आंखों में।
माँ ने कहा, “ठीक है। जो ठीक लगे।”
बस हमारी गाड़ी चल पड़ी। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद आज था हमारे छोटे से फ़ूड ट्रक का उद्घाटन। मम्मी जी ने नारियल फोड़ा। सब बहुत खुश थे। रवि का सपना पूरा हुआ।
पूरे महीने की सारी कमाई रवि ने मुझे दी और कहा, “तुम मेरे बिज़नेस की मालकिन हो। जो प्रॉफिट होगा सब तुम्हारा। बस मुझे तनख्वाह देना।”
मैं हंस पड़ी। वो बोले, “मज़ाक नहीं। मुझ पैसे नहीं चाहिये। मेरा सपना जीना चाहता हूँ बस। तुम देखना अगले 5 साल में कहाँ से कहाँ ले जाता हूँ। शुक्रिया निशा। सच्ची जीवनसाथी के मायने सीखा दिए मुझे। तुम ना आती तो शायद ज़िंदगी भर अफ़सोस लिये बैठा रहता।” मैं उनके गले लग गई।
दोस्तों हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है ये तो यह लेख कहता ही है। लेकिन ऐसा नहीं कि दुनिया में बस औरत ही है जिसके सपने कुचले जाते हैं। कितने ही आदमी भी परिवार के लालन पोषण के चलते या कई मज़बूरियों के रहते अपने सपने पीछे कर देते हैं और परिवार को आगे रखते हैं। जैसे कई बार हमारे पति हमारा होंसला बढ़ाते हैं वैसे ही हमको भी अपने पतियों का हौसला बढ़ाना चाहिए। सपने तो सपने हैं चाहे औरत के हों या आदमी के।
मूल चित्र : Canva
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