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बच्चा स्लो लर्नर है तो क्या हुआ? उस पर फेलियर का लेबल लगाना बंद कर दें

माना मेरा बच्चा स्लो लर्नर है, वह अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में थोड़ा स्लो है क्यूंकि उसकी मानसिक आयु उसकी शारीरिक आयु से कम है। 

माना मेरा बच्चा स्लो लर्नर है, वह अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में थोड़ा स्लो है क्यूंकि उसकी मानसिक आयु उसकी शारीरिक आयु से कम है। 

अनुवाद : पल्लवी वर्मा 

शिक्षकों और अभिभावकों का सहयोग और प्रेरणा धीमी गति से सीखने वाले बच्चों या स्लो लर्नर्स के विकास में एक जादुई भूमिका निभाता है। ऐसे बच्चों का बौद्धिक स्तर कमज़ोर नहीं होता, केवल उनकी सीखने की गति धीमी होती है।

हमारी दुनिया वास्तव में प्रतिस्पर्धाओं से भरी है। यह एक सच है कि इस निरंतर बदलती दुनिया में जीवित रहने के लिए सभी जीव संघर्ष करते हैं और केवल जो पूरी तरह से फिट हैं, वही जीवित रहते हैं। माता-पिता हमेशा, अपने बच्चे को जीवन की दौड़ में भाग लेने के लिये प्रेरित करते हैं ताकि वे इस दुनिया में फिट हो सकें।

क्या होगा यदि किसी माँ को ये बताया जाए कि उसका बच्चा इस दौड़ में इसलिए भाग नहीं ले सकता क्योंकि वह एक स्लो लर्नर है अर्थात उसके सीखने (ख़ास करके पढ़ने-लिखने) की गति कम है? और यह भी कि वह इसलिए ‘समाज में फिट’ नहीं हो पायेगा?  मुझे पता है! क्योंकि मुझे ऐसा ही बताया गया था! मैं एक 13 वर्षीय किशोर लड़के की माँ हूँ और मेरा बच्चा स्लो लर्नर है। यह मेरे संघर्ष की कहानी है।

स्कूल का पहला दिन

मुझे आज भी अपने बेटे के स्कूल का पहला दिन याद है। जब मैंने उसे एक सीबीएसई पैटर्न वाले इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिल किया। उसी स्कूल में मैंने एक पीआरटी शिक्षक के रूप में जॉईन किया। मेरा बेटा अपने मम्मी के साथ स्कूल जाने के वजह से बेहद खुश और बहुत उत्साहित था। क्या मस्ती भरा दिन था वो! 

दुनिया भर के अधिकांश माता-पिता की तरह, मेरा भी यह सपना था कि अपने सीमित बजट के बावजूद मैं उसे सबसे अच्छी शिक्षा प्रदान करूँ। मैंने सपना देखा कि मेरा बेटा जीवन में एक दिन सफलता प्राप्त करेगा। लेकिन सफलता किस क्षेत्र में? पढाई में? और फिर उसे नौकरी मिल जाए ताकि वह गुजर-बसर कर सके?

लिखने में दिक्कत

हां, मैंने ऐसा ही सोचा था। मेरे बेटे ने अपनी पढ़ाई शुरू की और किंडरगार्टन के पहले तीन साल पास कर लिए। इन वर्षों के दौरान, मुझे उसके कक्षा के शिक्षकों द्वारा बार-बार कहा गया कि यद्यपि, वह मौखिक रूप से पढ़ाई मे ठीक है, पर उसे लिखने में दिक्कत आती है। 

ये सुन कर पहला विचार जो मेरे दिमाग में आया, वह यह था कि शायद समय के साथ वह अपने लेखन को सुधार लेगा। उस समय मैं अपने बच्चे पर किसी भी प्रकार का दवाब नहीं डालना चाहती थी। मुझे लगा बस उसे कुछ और समय देने की ज़रूरत है। मैं चाहती थी कि उसके किंडरगार्टन के साल मज़ेदार हों। मुझे विश्वास था कि वह समय के साथ बेहतर करेगा।

अपनी शिक्षा के सपने

जिस साल मेरा बेटा पहली कक्षा में पहुंचा, उसी साल मैंने अपनी शिक्षिका की नौकरी छोड़ दी और शहर के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पीएचडी में एडमिशन ले लिया। मैं खुश थी पर मेरे स्कूल के प्रिंसिपल नहीं। 

एक गृहिणी और कामकाजी माँ के रूप में, मैंने अपनी ज़िम्मेदारियों को दोगुना कर दिया था। मैं एक गृहिणी थी और पैसे कमाने के लिए बाहर काम भी कर रही थी (घर पर किए गए काम को कर्तव्य के रूप में लिया जाता है और उस काम का कोई भुगतान प्राप्त नहीं होता)। घर में किसी कामवाली की मदद के बिना, अपनी क्षमताओं से आगे जाकर मैंने अपनी पीएचडी शुरू की और उसे पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करने लगी।

स्कूल से बहुत सारी शिकायतें

मेरे बेटे ने अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखी पर धीरे-धीरे उसके स्कूल से बहुत सारी शिकायतें आने लगीं। मेरा बेटा ब्लैकबोर्ड से अपनी नोटबुक में क्लास-वर्क उतारने में असमर्थ था। उसकी नोटबुक अनटाइडी रहती थी और उसकी पुस्तकें फटी और जर्जर रहती थीं। वह अपनी स्कूल ड्रेस अक्सर मैली कर देता था क्योंकि उसे अपने लुक की ज़्यादा परवाह नहीं थी।

हालाँकि उसका लुक और रख-रखाव असंगठित था पर वह बात करने में बहुत तेज़ और मुखर था। शिक्षकों ने इसे मेरे बेटे में दुर्व्यवहार और शिष्टाचार की कमी का संकेत माना। जब भी मैं उनके स्कूल में पैरेंट-टीचर मीटिंग के लिए जाती, मुझे उन शिक्षकों द्वारा ताना मारा जाता था कि वह एकेडमिक ग्रुप की किसी एक्टिविटी में भाग नहीं लेता या कक्षा में शांत नहीं बैठता। टीचर्स को लगता था कि इन सब के लिये मैं ज़िम्मेदार हूँ क्योंकि मैं अपने पीएचडी को में बहुत व्यस्त थी और शायद इसलिए मैने अपने  बेटे पर ध्यान नहीं दिया।

आपका बच्चा स्लो लर्नर अथवा फेल है

मेरा बेटा तीसरी कक्षा में फेल हो गया क्योंकि उसने अपनी उत्तर पुस्तिकाओं में कुछ भी पूरा नहीं लिखा था और व्याकरण मे भी कई गलतियाँ थी। शिक्षकों ने मुझे बताया कि कम मार्क्स के कारण मेरे बेटे को तीसरी क्लास रिपीट करनी होगी। मुझे प्रिंसिपल के ऑफिस में बुलाया गया जहाँ मुझे बताया गया कि मेरे बच्चे को अगली क्लास में प्रमोट नहीं किया जाएगा।

मैं दुखी थी, निश्चित रूप से, मैंने कभी नहीं सोचा था कि चीजें इतनी कठिन हो जाएंगी। हालाँकि, मैं प्रिंसिपल की बात से सहमत थी। मुझे आत्मग्लानि हो रही थी कि शायद मैंने अपने बेटे की उपेक्षा की है उसके इस फेलियर के लिए मैं ही ज़िम्मेदार हूँ। मैं एक माँ के रूप में असफल रही क्योंकि मेरा बच्चा क्लास में पीछे रह गया था। दूसरों के द्वारा बहुत मजाक उड़ाया गया, जब लोगों ने हमें यह कहते हुए ताना मारा, “माँ विद्वान पी.एच.डी. और बेटा कक्षा तीसरी में ही फेल हो गया!” यह हमारे लिए बहुत शर्मनाक था।

मैं अपने बेटे के साथ ज़्यादा मेहनत करने लगी। उसे अपने लेसन अच्छी तरह से याद करने के लिए मैंने ज़ोर दिया। वह तीसरी क्लास को रिपीट कर रहा था, लेकिन मैंने देखा कि वह अभी भी शब्दों को, व्याकरण को, साधारण सी गणित तक को करने में सक्षम नहीं था और वह ज़ोर से पढ़ते समय भी लड़खड़ाता था।

बच्चा स्लो लर्नर है पर ‘बुरा बच्चा’ नहीं 

मैंने डिस्लेक्सिया और एडीएचडी (ध्यान आभाव सक्रियता विकार या अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) के बारे में सुना था लेकिन इन सब के बारे में मुझे केवल सैद्धांतिक रूप से पता था। मुझे नहीं पता था कि मेरा बच्चा सीखने की एसी किसी भी कठिनाई का सामना कर रहा था। मेरे पास पता लगाने का कोई और तरीका भी नहीं था।

मैंने उसके शिक्षकों और प्रिंसिपल को यह समझाने की कोशिश की पर उनकी प्रतिक्रिया ने मुझे निराश कर दिया। मुझे प्रिंसिपल ने कहा, “आपके बच्चे को पास होने के लिए स्कोर करना होगा।” यह ज़रूरी था कि कक्षा में उसका प्रदर्शन बेहतर हो और उसकी मार्कशीट पर स्कोर ठीक ठाक हो ताकि उसे अगली कक्षा में प्रमोट किया जा सके। इतने दबाव के साथ, उसे सीखने के लिए कोई खास मदद नहीं मिली और मेरा बेटा फिर से तीसरी कक्षा में फेल हो गया।

इस बार प्रिंसिपल ने मुझे बेटे का ट्रांसफर सर्टिफिकेट सौंप दिया और कहा, “इससे स्कूल की प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है।” मैंने समस्या पर चर्चा करने और उन्हें हल करने की बहुत कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मुझे सहानुभूति और सलाह के अलावा कुछ भी नही मिला।

 मुझे उसके कैलिबर के हिसाब से स्कूल की तलाश करने’ के लिए कहा गया। मुझे बहुत बुरा लगा, लगा सब ख़त्म हो रहा है। मेरे बेटे ने मुझसे पूछा, “मम्मा, क्या मुझे अपने दोस्तों और मेरे स्कूल को छोड़ना होगा?” मेरे पास उसे देने के लिए कोई जवाब नहीं था।

भारत में सीखने में कठिनाइयों या लर्निंग डिफीकल्टीज़ का सामना करने वाले बच्चों और एडीएचडी के बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं है। मैं एक छोटे शहर में रहती हूं जहां ये कॉन्सेप्ट अभी भी हमारे लिए विदेशी हैं। मेरे लिए खुद को और अपने रिश्तेदारों को यह समझाना कठिन था कि मेरा बच्चा तीसरी कक्षा में दो बार फेल क्यों हुआ?वे सभी सोचते थे कि वह बेवकूफ़, आलसी, बदतमीज़ है और मैंने उसे पर्याप्त समय नहीं दिया क्योंकि मैं काम कर रही थी।

जिस छोटे शहर में मैं रहती हूं, वहां चाइल्ड साइकोलोजिस्ट का मिलना मुश्किल है। डॉक्टरों से परामर्श करने के लिए अन्य शहरों की यात्रा महंगी और समय लेने वाली है। मैं इस तथ्य का सामना करने के लिए हर दिन संघर्ष करती रही कि मुझे अब अपने बेटे को एक सरकारी, हिंदी माध्यम स्कूल में, ‘जो उसके कैलिबर के हिसाब का हो  में दाखिला लेना था, जहाँ शिक्षक छात्रों पर बहुत कम ध्यान देते थे।

प्रयास रंग लाया

मैं केवल अपने आप पर भरोसा कर सकती थी और हर दिन मैंने इंटरनेट पर सर्च किया और सीखने की कठिनाइयों के बारे में और ज़्यादा जानने की कोशिश की। मैंने अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए ऐसे बच्चों के लिए सुझाये गए शिक्षण के तरीकों को शामिल करने की कोशिश की। मेरे लिए घर, अपनी पढ़ाई और अपने बेटे के सीखने की कठिनाइयों से निपटना बहुत कठिन हो चुका था। उसके  बावजूद, मैं प्रत्येक दिन बेहतर करने का प्रयास करती रही।

सौभाग्य से, एक साल के शोध के बाद, मुझे अपने शहर के एक मनोवैज्ञानिक के बारे में पता चला, जिसके साथ मैं अपने बेटे की स्थिति के बारे में चर्चा कर सकती थी। व्यक्तिगत रूप से मेरे बेटे, मेरे और मेरे पति के साथ संयुक्त सत्रों में, डॉक्टर ने कई सेशन लिये। उन्होंने मेरे बेटे के कई मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी किए।

डॉक्टर ने मुझसे कहा, “मैम, आपके बेटे को सीखने में कोई कठिनाई नहीं है, लेकिन वह अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में थोड़ा स्लो है। उसकी मानसिक आयु उसकी शारीरिक आयु से कम है। वह सिर्फ स्लो लर्नर है। वह चीजें सीख सकता है लेकिन अपनी ही गति से। इसमें हम कुछ भी नहीं कर सकते सिवाय इसके कि उसे प्रोत्साहित कर एक आत्मविश्वासी व्यक्ति के रूप मे विकसित करें। अन्यथा उसका व्यक्तित्व विकृत हो सकता है। यहाँ तक कि वह हाईस्कूल पास नहीं कर पाएगा, डिग्री की पढ़ाई तो भूल ही जाइये।” 

दुनिया में कोई भी एसे बच्चों की मां, की भावनाओं को नहीं समझ सकता, जिसका दिल अपने बेटे के लिए आंसुओं, भावनाओं और दुःख से सराबोर था और जो डॉक्टर के चैंबर में बैठी चुपचाप रो रही थी।

समाज में स्लो लर्नर्स का विकास

समाज के जागरूक सदस्यों के रूप में, हम इन बच्चों के विकास के लिए क्या कर सकते हैं? मेरा बच्चा स्लो लर्नर है तो इसके जैसे अन्य बच्चों की मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं? जो या तो डिस्लेक्सिक हैं या स्लो लर्नर्स हैं? क्या विशेष आवश्यकता या स्पेशल नीड्स वाले बच्चों को समाज में या अन्य सामान्य बच्चों के साथ स्कूल में जगह पाने का अधिकार नहीं है? भले ही वे परीक्षा में अच्छा स्कोर न करें लेकिन ‘सभी के लिए शिक्षा’ जैसे नारों और  सरकार के दृष्टिकोण के बारे में क्या?

यद्यपि सरकार ने आरटीई (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम में CWSN (चिल्ड्रन विद स्पेशल नीड्स) के लिए कुछ कानून बनाए हैं, क्या उनके द्वारा कार्यान्वयन सुनिश्चित किया गया है? कौन यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चे की शिक्षा का अधिकार उनसे छीन न लिया जाए?  सीखने की कठिनाइयों, एडीएचडी और ऑटिज़्म के बारे में निजी तौर पर चलाये जाने वाले और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के प्रिंसिपलों, शिक्षकों, और प्रशासकों को कैसे जागरूक और संवेदनशील बनाएं ताकि स्लो लर्नर्स या बाकि बच्चे भी पीछे न रह जाएं।

कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि ऐसे स्लो लर्नर बच्चों से नॉन अचिवर के टैग को हटाया जा सके। वे शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम नहीं हैं, केवल फटाफट सीख नहीं सकते। वे अपने साथियों की तुलना में धीमी गति से सीखते हैं। इनके लिए एक सपोर्टिव और क्रिएटिव वातावरण बनाना ताकि उनके सीखने की गति में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।

मूल चित्र : YouTube (फ़िल्म – तारे ज़मीन पर) 

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