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अपने प्रियजनों को भरोसा दिलाएं हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारी सफलता असफलताओं से हमारे प्यार में कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, तुम्हारी जिंदगी हमारे लिए अनमोल है।
आज मेरे बेटे की छुट्टी है, छुट्टी होने का मतलब थोड़ी देर से सोकर उठना, नाश्ता-खाना आराम से और कुछ खास होना, कुछ मिलाकर दिन बेफिक्री से चलता है। अप्रत्याशित छुट्टी से बच्चों के साथ माँओं के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ जाती है पर अफसोस आज की ये छुट्टी किसी खुशी का कारण नहीं बनी।
कल उसके स्कूल के एक बारहवीं के छात्र ने स्कूल से घर जाने के बाद आत्महत्या कर ली। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार बच्चे की माँ का देहांत सालों पहले हो चुका था और वह बच्चा डिप्रेशन से जूझ रहा था।
कल से मन में बवंडर सा मचा है, एक काबिल बच्चा जो कि क्रिकेटर भी था, कल ही स्कूल असेंबली में 5 मेडल मिले थे, स्कूल का nicest boy; उसके साथ रहने वाले उसके दो भाई, उसकी नई माँ, पिता, साथ खेलने वाले दोस्त, उसे पढ़ानी वाली अध्यापिकाएं, बस में साथ आने वाले साथी, आस-पड़ोस के लोग क्या किसी ने पिछले दिनों कोई बदलाव महसूस नहीं किया था! क्या इस घटना को रोका जा सकता था!
किशोर वय बच्चों में हार्मोन बदलाव के कारण भी डिप्रेशन होता है। हम जब स्कूल में पढ़ते थे मेरी फ्रेंड के कहे शब्द मुझे आज भी याद हैं। हमारे 12th के प्रैक्टिकल एग्जाम होने वाले थे। उससे कुछ दिनों पहले हाफ इयरली एग्ज़ाम में कम नंबर आने पर एक 8th की लड़की ने स्कूल की बिल्डिंग से कूद कर सुसाइड किया था। उस लड़की के लिए स्कूल प्रिंसिपल, टीचर्स ने संवेदना प्रकट की थी। पढ़ने में कमजोर होने के कारण नेग्लेक्टेड लड़की मरने के बाद अचानक से सबकी दुआओं में शामिल हो गई थी।
इससे प्रभावित होकर मेरी सहेली ने मुझसे कहा था, “इससे अच्छा तो यह है कि सुसाइड कर लें, कम से कम मेरी अच्छाईयां तो दिखेंगी।” आज इस बात को सोचती हूँ तो महसूस होता है कितना प्रेशर होता है। दो अच्छे बोल सुनने के लिए एक किशोरी को मरना बेहतर लगा।
पिछले दिनों कुशल पंजाबी (अभिनेता) के आत्महत्या करने के बाद उनके ढेरों मित्रों ने सोशल मीडिया में दुःख प्रकट किया था। सबको एक ही दुःख था काश! कुशल ने उनसे संवाद किया होता! काश! उन्हें पता चलता कि कुशल के मन में क्या चल रहा है?
अवसाद ग्रस्त इंसान बात करने से बचता है। एक झप्पी से या सोशल मीडिया में फिलिंग मिसिंग से अवसाद दूर नहीं होते। अपने प्रियजनों को भरोसा दिलाएं हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारी सफलता असफलताओं से हमारे प्यार में कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। तुम्हारी जिंदगी हमारे लिए अनमोल है।
कुछ दिनों पहले मैंने यह लघुकथा लिखी थी –
अनमोल ज़िंदगी
पोलिस के सायरन की आवाज से अचानक नींद खुली। माँ मेरे सिरहाने बैठी एकटक मुझे ही देखें जा रहीं थीं। आँखों से आँखें मिलते ही हम दोनों ही नज़रें चुराने लगे।
“माँ! यह सायरन की आवाज कैसी?”
“सामने वाले सोसायटी के किसी लड़के ने आत्महत्या कर लिया है।” माँ ने धीरे से कहा।
धक् से कुछ चटक गया सीने में, “क…क…क्यों?” हकलाते हुए पूछा।
“पता नहीं बेटा, कोई कह रहा है मेडिकल की पढ़ाई में मन नहीं था, कोई कह रहा है पिता से बहस हुई थी, कोई कह रहा है ब्रेकअप हो गया था। पर बेटा जिंदगी तो अनमोल थी ना। सारी समस्याओं का हल है। पर जो दुःख आज अपने माता-पिता को दे गया, क्या वो उससे कभी उबर पायेंगे। वे तो आज जीते जी मर गए।” दुःख और चिंता के मिश्रित भाव थे माँ के शब्दों में।
ऐसा लगा माँ मुझे बता नहीं समझा रहीं थीं।
“चल उठ जा, मैं चाय बनाती हूँ।” कहती हुई माँ कमरे से चली गईं।
एक झटके से उठकर, रात को लिखे सुइसाइड नोट को किताब से निकाला। उसके टुकड़े-टुकड़े करके डस्टबिन में फेंक दिया।
मूल चित्र : Pexels
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