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उठा हिम्मत की मशाल तू, बन खुद ही अपनी पतवार तू, दौड़ जा मंजिल के उस पार तू, क्योंकि वक़्त को भी है इंतजार, दे अपने वजूद का कोई तो प्रमाण
ना जकड़ इन बेड़ियों में खुद को तोड़ दे इन सलाखों को सहनशीलता के चादर तले ना ढक अपने इन ज़ख्मों को हुँकारा भरने दे सोए हुए अरमानों को उड़ जाने दे इन्हें उमंगों के पंख लगा क्योंकि वक़्त भी है इसी ताक में कब तेरे वजूद का होगा आमना–सामना इस जग में
तू है अग्नि तू है ज्वाला क्यों है पिए ग़म का प्याला समझ ना स्वयं को कमजोर तू उठा हिम्मत की मशाल तू बन खुद ही अपनी पतवार तू दौड़ जा मंजिल के उस पार तू क्योंकि वक़्त को भी है इंतजार दे अपने वजूद का कोई तो प्रमाण
तू नहीं है कोई कल्पना तू है ऊपर वाले की सबसे सुंदर रचना सुलझाते सुलझाते दुनिया की इस पहेली को बन एक पहेली खुद में क्यों इतना उलझी है तू कर खुद पर एक बार एतबार डर को जीत हार को कर इंकार और गौरव से यह सर उठा क्योंकि वक्त भी करता है इशारा अब चमका दे अपने वजूद का सितारा
मूल चित्र : Canva
Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild Again' and 'Alfaaz - Chand shabdon ki gahrai' Rashmi Jain is an explorer by heart who has started on a voyage read more...
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