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जिस भारत में मैं रहती हूँ, वहाँ मेरी आवाज़ सुनाई देनी चाहिए! हमें 'पॉलिटिक्स करनी चाहिए'... जी हाँ, महिलाओं को अब राजनिति में भाग लेना चाहिए।
जिस भारत में मैं रहती हूँ, वहाँ मेरी आवाज़ सुनाई देनी चाहिए! हमें ‘पॉलिटिक्स करनी चाहिए’… जी हाँ, महिलाओं को अब राजनिति में भाग लेना चाहिए।
अनुवाद : प्रगति अधिकारी
जिस भारत में मैं रहती हूँ, वहाँ मेरी आवाज़ सुनाई देनी चाहिए! हमें ‘राजनीति करनी चाहिए’… जी हाँ, महिलाओं को अब राजनीति में भाग लेना चाहिए, अगर हम अपना प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं तो अब हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है।
दीपिका जेएनयू गईं। जी हां, कुछ का मानना है कि उन्होंने ये सबकी नज़रों में आने के लिए और अपनी फिल्म को प्रमोट करने के लिए किया। मेरे जैसे कई ये मानना चाहेंगे कि वे बहादुर हैं और इस नई दुनिया का हिस्सा भी। और आज के कई युवाओं की तरह, वे ये दावा करने की हिम्मत रखती हैं कि उन्हें अपने देश से क्या उम्मीद है। कि उनका भारत कैसा हो…
भाजपा के राजनेता गोपाल भार्गव ने मुंबई में इस नई और जागरूक दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए विषाक्त पितृसत्ता के पुराने झंडे को लहराते हुए कहा कि “हीरोइन को मुंबई में नाचना चाहिए। उसे जेएनयू क्यों जाना है मुझे नहीं पता। उसके जैसे कई लोग हैं। अगर वो राजनीति करना चाहते हैं तो उन्हें राजनीति में प्रवेश करना चाहिए और चुनाव लड़ना चाहिए।”
बात ये है कि कि अब अधिक महिलाओं को ‘राजनीति करनी चाहिए’ या साफ़ कहें तो, राजनीति में आना चाहिए। महिलाओं के लिए बेहतर प्रतिनिधित्व की दिशा में यह एकमात्र तरीका है। हाँ, मुझे पता है, पुरुष कुछ न कुछ चालाकी करेंगे ज़रूर, लेकिन हमें तब भी अपनी बात रखने का मौका मिलेगा।
हालांकि अधिकांश राजनीतिक दल अल्पसंख्यक मतों की तलाश करते हैं, लेकिन कोई भी महिलाओं के मतों का सक्रिय रूप से अनुसरण नहीं करता है क्योंकि उनका खास मोल नहीं माना जाता। ‘प्याज़ के दाम कम कर देंगे’ जैसे चंद जुमलों के अलावा ऐसा कुछ नहीं होता जो महिलाओं के समर्थन में हो। और ‘प्याज़ के दाम’ और महिलाओं का तो जैसे जन्मों जन्मों का रिश्ता है! हमें उसके अलावा तो जैसे कुछ और नहीं चाहिए!
मुझे बताएं, पुरुषों के मुद्दों के विपरीत महिलाओं का मुद्दा वास्तव में क्या है? मुद्रास्फीति की दर? बच्चे की देखभाल? स्वास्थ्य? शिक्षा? महिला सुरक्षा? क्या ये सभी महिला मुद्दे हैं? ऐसा ही लगता है, क्योंकि ये पुरातनपंथी जो हैं, ये सब तरफ छाए हुए हैं। ये निश्चित रूप से जानते हैं कि उनका ‘बाप’ कौन है और समाज के कुछ वर्गों को ये सबक सिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
महिलाओं के रूप में, क्या संसद में हमारा पर्याप्त प्रतिनिधित्व है? नहीं! केवल संख्या के सन्दर्भ में ही नहीं सोचें, बल्कि इसलिए भी कि सिर्फ उन महिलाओं को पार्टी का टिकट दिया जाएगा, जो पार्टी द्वारा खींची गयी लक्ष्मण रेखा के अंदर रह कर काम कर सकें। ऐसा मेरा विचार है।
हां, ज़्यादा महिलाओं को राजनीति में आना चाहिए। पर ऐसा क्यों नहीं होता? मुझे कारण बताने दें –
पहला, यह सबसे गंदा व्यवसाय है, जिसमें शरीफ़ लोग कम हैं। कुलदीप सिंह सेंगर तो याद होंगे आपको! हां, यह मान सकते हैं कि ऐसा निचले स्तल पर हो, लेकिन यही वह जगह है, जहां से हर किसी (प्रत्येक महिला को पढ़ें) को शुरू करना होगा।
दूसरा, यह कट्टर पितृसत्ता का अड्डा है। हाँ, हमारे पास एक महिला प्रधानमंत्री और एक महिला राष्ट्रपति और कई सीएम थे, लेकिन कोई भी महिला राजनेता आज तक एक भी फेमिनिस्ट एजेंडा को आगे नहीं बढ़ा सकीं।
मैं राजनीति में महिलाओं की प्रशंसा करती हूँ। लेकिन ये हर मायने में सराहनीय नहीं हैं, खासतौर पर तब, जब उनमें से कई बिक चुकी हैं। कई महिलाएं पुरुषों की तरह ही भ्रष्ट हैं, और शायद हमें इस बात पर खुश भी होना चाहिए कि कम से कम इसमें तो वे पुरुषों की बराबरी कर सकीं। इस बात को यहीं छोड़िये। बात ये है कि वे वहाँ वही लड़ाई लड़ती हैं जो हर कामकाजी महिला लड़ती है, पर ऐसे क्षेत्र में, जहां पूरी तरह से पितृसत्ता है और कोई पारदर्शिता या जवाबदेही नहीं है।
मुझे उम्मीद है कि जेन नेक्स्ट पहले से कहीं ज़्यादा बहादुर होगी। मैं उम्मीद करती हूँ कि जब एक स्वतंत्र युवा महिला चुनाव के लिए खड़ी होगी, तो हम में से कई उसे अपना वोट देंगे। मुझे उम्मीद है किपेंडुलम दूसरे छोर तक और तेजी से घूमेगा।
तब तक, मैं राजनीति करूंगी – अपनी आवाज़ का इस्तेमाल करके।
मूल चित्र : YouTube
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